करीब बीस साल पहले श्री बालकवि बैरागीजी ने, जो उस समय संसद सदस्य थे, चेताया था कि भाषा के साथ-साथ बोलियों का एक दुराग्रह तैयार किया जा रहा है। इससे सावधान रहने की जरूरत है। यह एक बहुत लंबी मार करने वाली साजिश है, देश तोड़ने की। उन्होंने इस षड़यंत्र की कार्यप्रणाली का भी खुलासा किया था। उनके अनुसार, भारत विरोधी अभियान के तहत उन महानुभावों को, उनके जाने अनजाने, शामिल कर लिया जाता है जो भाषा शास्त्र पर शोध आदि कर रहे होते हैं। उन्हें विदेश भ्रमण करवा, फैलोशिप वगैरह दिलवा कर और उनके लेखों आदि को बड़े पैमाने पर छपवाने का प्रलोभन दिया जाता है। यह काम होता है भारत के विभिन्न अंचलों में बोली जाने वाली आंचलिक बोलियों पर शोध एवं अनुसंधान के नाम पर। हमारे यहां वैसे ही हजारों बोलियां तथा उपबोलियां हैं जिनको लेकर आये दिन आंदोलन खड़े किए जाते रहते हैं। बात बिगड़ती जाती है। इसी को लेकर विदेशी कूटकर्मियों ने भारत के नक्शे में बोलियों के आधार पर सैंकड़ों दरारें ड़ाल दी हैं। बोलियों के अंचलों को रेखांकित कर भारत के टुकड़े नक्शों में कर दिये हैं। पहले भाषा के नाम पर लड़ता झगड़ता देश अब बोलियों के लिये उलझने लगा है। इसके लिये कितना विदेशी पैसा बरसात की तरह बरसाया जा रहा है उसकी कल्पना भी आम आदमी नहीं कर सकता।
पता नहीं हमारी आंख कब खुलेगी। देश का एक बहुत बड़ा तथाकथित बुद्धिवादी वर्ग आंखें बंद किए बैठा है। बोलियों के दायरे बहुत छोटे पर अत्यंत संवेदनशील होते हैं। यह सब सोचा समझा षड़यंत्र है भारत को छोटा और छोटा कर कमजोर करने का। कोई भी देश भूगोल में बाद में टूटता है पर पहले दिमाग में टूटता या तोड़ा जाता है। एक बार दिमाग में टूटन आ जाये तो फिर वह बाहर भी आकार लेना शुरु कर देती है। पर बीस साल पहले चेताने के बावजूद क्या हम चेत पाये हैं।
अपने व्यक्तिगत बैर के बदले को लोग कैसे अलग रंग देते हैं, देखिये भास्कर के श्री राजकुमार केसवानीजी द्वारा दी गयी एक जानकारी के द्वारा :-
1916 में लहौर के एक फोकटिया तथाकथित पत्रकार, लालचंद, को जब एक नाटक का टिकट मुफ्त में ना देकर उपकृत नहीं किया गया तो उन महाशय ने पूरी नाटक मंडली के विरुद्ध विष वमन करना शुरु कर दिया और उसका मुख्य निशाना बनी नाटक की नायिका, मिस गौहर, जो कि नाटक में सीता का किरदार निभा रही थी। लालचंद ने लोगों की भावनाओं को उभाड़ने के लिये लिख मारा कि मुस्लिम औरत का सीता बनना कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। नतीजा लालचंद के मन मुताबिक ही हुआ, थियेटर पर हमला कर जबर्दस्त नुक्सान किया गया। कंपनी के मालिक कवास जी की सदमे से मौत हो गयी।
पता नहीं हमारी आंख कब खुलेगी। देश का एक बहुत बड़ा तथाकथित बुद्धिवादी वर्ग आंखें बंद किए बैठा है। बोलियों के दायरे बहुत छोटे पर अत्यंत संवेदनशील होते हैं। यह सब सोचा समझा षड़यंत्र है भारत को छोटा और छोटा कर कमजोर करने का। कोई भी देश भूगोल में बाद में टूटता है पर पहले दिमाग में टूटता या तोड़ा जाता है। एक बार दिमाग में टूटन आ जाये तो फिर वह बाहर भी आकार लेना शुरु कर देती है। पर बीस साल पहले चेताने के बावजूद क्या हम चेत पाये हैं।
अपने व्यक्तिगत बैर के बदले को लोग कैसे अलग रंग देते हैं, देखिये भास्कर के श्री राजकुमार केसवानीजी द्वारा दी गयी एक जानकारी के द्वारा :-
1916 में लहौर के एक फोकटिया तथाकथित पत्रकार, लालचंद, को जब एक नाटक का टिकट मुफ्त में ना देकर उपकृत नहीं किया गया तो उन महाशय ने पूरी नाटक मंडली के विरुद्ध विष वमन करना शुरु कर दिया और उसका मुख्य निशाना बनी नाटक की नायिका, मिस गौहर, जो कि नाटक में सीता का किरदार निभा रही थी। लालचंद ने लोगों की भावनाओं को उभाड़ने के लिये लिख मारा कि मुस्लिम औरत का सीता बनना कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। नतीजा लालचंद के मन मुताबिक ही हुआ, थियेटर पर हमला कर जबर्दस्त नुक्सान किया गया। कंपनी के मालिक कवास जी की सदमे से मौत हो गयी।
6 टिप्पणियां:
शर्मा जी आप ने सही लिखा है, ओर हमारे देश मै यही सब हो रहा है, विदेशियो के अलावा हमारे ने६ता भी कुछ कम नही कर रहे, धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
1916 में लहौर के एक फोकटिया तथाकथित पत्रकार, लालचंद, को जब एक नाटक का टिकट मुफ्त में ना देकर उपकृत नहीं किया गया तो उन महाशय ने पूरी नाटक मंडली के विरुद्ध विष वमन करना शुरु कर दिया और उसका मुख्य निशाना बनी नाटक की नायिका, मिस गौहर, जो कि नाटक में सीता का किरदार निभा रही थी। लालचंद ने लोगों की भावनाओं को उभाड़ने के लिये लिख मारा कि मुस्लिम औरत का सीता बनना कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। नतीजा लालचंद के मन मुताबिक ही हुआ, थियेटर पर हमला कर जबर्दस्त नुक्सान किया गया। कंपनी के मालिक कवास जी की सदमे से मौत हो गयी।
सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई!
धन्यवाद राजकुमार केसरवानी जी का भी, जो खोज-खोज कर ऐसी बातों से अवगत करवाते रहते हैं।
तीन काल खंड़, 1916 / 1988 / 2009, कोई फर्क पड़ा है क्या ?
hamara desh bhasha ke naam par ladta rehta hai...kabhi hindi banam angrezi to kabhi hindi banaam shetriya bhasa aur hamare neta hame ladwaate rehte hai, kyunki unke liye to yeh ek saral tareeka hai hamare dhyaan gareebi, mahangaayi aur bhrashtachaar jaise muddo se bhatkaane ka.
मुन्ना भाई ब्लाग चर्चा मे आपका इंतजार कर रयेले हैं. जल्दीईच पधारने का और आपकी राय भी देने का.
मैं आपका इंतजार कर रयेला है.
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