बुधवार, 11 नवंबर 2009

प्रेम या स्नेह सिर्फ़ इंसान की ही बपौती नहीं है.

इटली का केंप्गलिया रेलवे स्टेशन। सुबह का समय, गाड़ियों की आने-जाने की आवाजों, यात्रियों की अफरा-तफरी के बीच "एल्वियो बारलेतानी" सर झुकाए अपने काम में मशगूल था। तभी उसे अपने पैरों के पास किसी चीज का एहसास हुआ। उसने चौंक कर नीचे देखा तो एक मरियल सा कुत्ता, जिसके शरीर तथा पंजों में जगह-जगह घाव हो गये थे, उसके पैरों में लोटने की कोशिश कर रहा था। तभी एल्वियो ने उसे पहचान लिया और वैसे ही उसे अपनी गोद में उठा लिया। उसके आंसू थम नहीं रहे थे। उसकी यह हालत देख उसके सहयोगी भी उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गये। फिर तो पूरा स्टेशन ही "लैंपो वापस आ गया" की आवाजों से गूंज उठा।

यह सत्य कथा है एक कुत्ते "लैंपो" की वफादारी और प्रेम की जो बत्तीस दिनों के बाद पूरे बारह सौ कि.मी. की यात्रा, पता नहीं कैसे, पूरी कर वापस अपने मालिक के पास आ पहुंचा था।

एल्वियो के बच्चे एक दिन कहीं से एक पिल्ला घर ले आये, जिसे घर में रखने की इजाजत उन्हें अपने अभिभावकों से भी मिल गयी। उसका नाम रखा गया "लैंपो"। अब बारलेतानी परिवार में एक और सदस्य की बढोतरी हो गयी थी। समय के साथ-साथ वह घर के बाहर भी सबका दुलारा बनता गया। एल्वियो को अपने कार्यालय आने के लिये अपने घर से ट्रेन पकड़नी पड़ती थी। एक दिन जब एल्वियो अपने बच्चों को स्कूल छोड़ स्टेशन आया तो लैंपो साथ ही था। ट्रेन के आते ही वह पहले ही अंदर जा एक सीट पर बैठ गया। अचभे से भरे एल्वियो को उसका भी टिकट लेना पड़ा। फिर तो यह रोजमर्रा की बात हो गयी। लैंपो रोज एल्वियो के साथ स्टेशन पर ट्रेन में चढ कर आने-जाने लगा। यहां भी अपनी खूबसूरती, चपलता और बुद्धीमानी के कारण एल्वियो के सहयोगियों की आंखों का तारा बन बैठा था।
पर एल्वियो के बास को यह सब पसंद नहीं था। उसे कुत्तों से चिढ थी। एक दिन उसने साफ-साफ कह दिया कि यदि लैंपो का स्टेशन आना नहीं रोका गया तो वह उसे म्युन्सपैलिटी के हवाले कर देगा। अधिकारी को मनाने की तथा लैंपो घर में ही रखने की बहुत कोशिशें की गयीं पर दोनों ही जैसे मानने को तैयार नहीं थे। दोनों ही अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे। तो एक दिन यह फैसला किया गया कि लैंपो को किसी दूर की गाड़ी में चढा दिया जाए, जिससे यह रोज-रोज की तकरार खत्म हो सके। । और एक दिन इटली की सबसे दूरगामी गाड़ी में लैंपो को भीगी आंखों और दुखी मन से चढा दिया गया। उस दिन एल्वियो के घर ना खाना बना ना किसी ने कुछ खाया। धीरे-धीरे दिन बीतते गये और लैंपो की याद धुंधली पड़ती गयी। एल्विनो परिवार भी आहिस्ता-आहिस्ता उसकी याद भुलाने की कोशिश में अपने काम से लग गया था कि अचानक लैंपो फिर उनकी जिंदगी में लौट आया और इस बार सुपर हीरो बन कर।
और अब तो वह बॉस का भी दुलारा था।

5 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

ऐसा भी होता है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यह सत्य कथा है एक कुत्ते "लैंपो" की वफादारी और प्रेम की जो बत्तीस दिनों के बाद पूरे बारह सौ कि.मी. की यात्रा, पता नहीं कैसे, पूरी कर वापस अपने मालिक के पास आ पहुंचा था।

यह गुण तो कुत्तों में ही है!
वफादार जो हैं।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

हां ये वफ़ादारी केवल कुत्तों में ही होती है.

Chetan ने कहा…

G A J A B

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी कही आप ने, काश यह गुण हम इंसानो मे भी होता, हमारा हेरी भी ऎसा ही है, कई बार रात को उस पर पेर चढ जाता है तो बेचारा सह लेता है.

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