सोमवार, 27 जुलाई 2009

कुल्लू के बिजलेश्वर महादेव, एक अनोखा शिव मन्दिर.

बिजलेश्वर महादेव , जिनके दर्शन करते ही आँखें नम हो जाती हैं, मन भावविभोर हो जाता है। जिव्हा एक ही वाक्य उच्चारण करती है - त्वं शरणम ।

हमारा देश विचित्रताओं से भरा पड़ा है। तरह-तरह के धार्मिक स्थान, तरह-तरह के लोग, तरह-तरह के मौसम। यदि अपनी सारी जिंदगी भी कोई इसे समझने, घूमने में लगा दे तो भी शायद पूरे भारत को देख समझ ना पाये। यहां ऐसे स्थानों की भरमार है कि उस जगह की खासियत देख इंसान दांतों तले उंगली दबा ले।
ऐसा ही एक अद्भुत स्थल है, हिमाचल में बिजलेश्वर महादेव। जिसे बिजली महादेव या मक्खन महादेव के नाम से भी जाना जाता है। हिमाचल के कुल्लू शहर से 18कीमी दूर, 7874 फिट की ऊंचाई पर मथान नामक स्थान में स्थित है, शिवजी का यह प्राचीन मंदिर। इसे शिवजी का सर्वोत्तम तप स्थल माना जाता है। पुराणों के अनुसार जालन्धर दैत्य का वध शिवजी ने इसी स्थान पर किया था। इसे कुलांत पीठ के नाम से भी जाना जाता है।
यहां स्थापित शिवलिंग पर या मंदिर के ध्वज दंड़ पर हर दो-तीन साल में वज्रपात होता है। शिवलिंग पर वज्रपात होने के उपरांत यहां के पुजारीजी बिखरे टुकड़ों को एकत्र कर उन्हें मक्खन के लेप से जोड़ फिर शिव लिंग का आकार देते हैं। इस काम के लिये मक्खन को आस-पास नीचे बसे गांव वाले उपलब्ध करवाते हैं। कहते हैं कि पृथ्वी पर आसन्न संकट को दूर करने तथा जीवों की रक्षा के लिये सृष्टी रूपी लिंग पर यानि अपने उपर कष्ट का प्रारूप झेलते हैं भोले भंडारी। यदि बिजली गिरने से ध्वज दंड़ को क्षति पहुंचती है तो फिर पूरी शास्त्रोक्त विधि से नया ध्वज दंड़ स्थापित किया जाता है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए कुल्लु से बस या टैक्सी उपलब्ध हैं। व्यास नदी पार कर 15किमी का सडक मार्ग चंसारी गांव तक जाता है। उसके बाद करीब तीन किलोमीटर की श्रमसाध्य, खडी चढ़ाई है जो अच्छे-अच्छों का दमखम नाप लेती है। उस समय तो हाथ में पानी की बोतल भी एक भार सा महसूस होती है।
मथान के एक तरफ़ व्यास नदी की घाटी है, जिस पर कुल्लु-मनाली इत्यादि शहर हैं तथा दूसरी ओर पार्वती नदी की घाटी है जिस पर मणीकर्ण नामक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। उंचाई पर पहुंचने में थकान और कठिनाई जरूर होती है पर जैसे ही यात्री चोटी पर स्थित वुग्याल मे पहुंचता है उसे एक दिव्य लोक के दर्शन होते हैं। एक अलौकिक शांति, शुभ्र नीला आकाश, दूर दोनों तरफ़ बहती नदियां, गिरते झरने, आकाश छूती पर्वत श्रृंखलाएं किसी और ही लोक का आभास कराती हैं। जहां आंखें नम हो जाती हैं, हाथ जुड जाते हैं, मन भावविभोर हो जाता है तथा जिव्हा एक ही वाक्य का उच्चारण करती है - त्वं शरणं।
कण-कण मे प्राचीनता दर्शाता मंदिर पूर्ण रूप से लकडी का बना हुआ है। चार सीढियां चढ़, दरवाजे से एक बडे कमरे मे प्रवेश मिलता है जिसके बाद गर्भ गृह है जहां मक्खन मे लिपटे शिवलिंग के दर्शन होते हैं। जिसका व्यास करीब ४ फ़िट तथा उंचाई २.५ फ़िट के लगभग है। ऊपर बिज़ली-पानी का इंतजाम है। आपात स्थिति मे रहने के लिये कमरे भी बने हुए हैं। परन्तु बहुत ज्यादा ठंड हो जाने के कारण रात मे यहां कोई नहीं रुकता है। सावन के महिने मे यहां हर साल मेला लगता है। दूर-दूर से ग्रामवासी अपने गावों से अपने देवताओं को लेकर शिवजी के दरबार मे हाजिरी लगाने आते हैं। वे भोले-भाले ग्रामवासी ज्यादातर अपना सामान अपने कंधों पर लाद कर ही यहां पहुंचते हैं। उनकी अटूट श्रद्धा तथा अटल विश्वास का प्रतीक है यह मंदिर जो सैकडों सालों से इन ग्रामिणों को कठिनतम परिस्थितियों मे भी उल्लासमय जीवन जीने को प्रोत्सहित करता है। कभी भी कुल्लु-मनाली जाना हो तो शिवजी के इस रूप के दर्शन जरूर करें।
कुछ सालों पहले तक चंसारी गांव के बाद मंदिर तक कोई दुकान नहीं होती थी। पर अब जैसे-जैसे इस जगह का नाम लोग जानने लगे हैं तो पर्यटकों की आवा-जाही भी बढ गयी है। उसी के फलस्वरूप अब रास्ते में दसियों दुकानें उग आयीं हैं। धार्मिक यात्रा के दौरान चायनीज और इटैलियन व्यंजनों की दुकानें कुछ अजीब सा भाव मन में उत्पन्न कर देती हैं।

12 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"कुल्लू के बिजलेश्वर महादेव, एक अनोखा शिव मन्दिर." की जानकारी देने के लिए आभार!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

जानकारी के लिए आभार! एकान्त हो, नदी किनारा हो, या पर्वत हो जल और वनस्पति की प्रचुरता हो और हो एक शिव मंदिर तो चिंतन के लिए इस से सुंदर कोई स्थान नहीं।

P.N. Subramanian ने कहा…

आपने सही कहा है. भारत विचित्रताओं से भरा पड़ा है. एक और शिव लिंग घी का बना भी बताया गया है. हम गए भी हैं परन्तु विश्वास नहीं हुआ. अन्वेषण जारी है. बिजली महादेव की अनोखी गाथा जानने को मिली. आभार.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

लगभग छ या सात साल पहले बिजलेश्वर महादेव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जैसा आपने वर्णन किया है,लगभग उसी प्रकार का वातावरण है और वैसी ही अनुभूति हमें भी हुई थी। किन्तु मक्खन से निर्मित होने वाली बात पर हमें विश्वास नहीं हुआ, क्यों कि देखने में शिवलिंग का रंग घूसर(मटमैला) था और पत्थर से निर्मित एक साधारण शिवलिंग जैसा ही लग रहा था।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वत्सजी,
कुल्लू अक्सर जाना होता है। मैं तो चार-पांच बार मंदिर जा आया हूं। हम मैदान मे रहने वाले ऐसे ही जल्दि किसी चीज का विश्वास नहीं करते। मैने भी पूछ-ताछ की थी। तो जैसा कि पता चला, यह मक्खन गाय का होने के कारण पीलापन लिये होता है। वैसे मैने छू कर भी देखा था। बाकि भगवान जाने।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अच्छी जानकारी। टूरिस्ट स्पाट बन गया है तो विभिन्न व्यंजनों की दुकानें तो लगेंगी ही। भक्त भी आजकल वेराइटी चाहते ही हैं:)

Udan Tashtari ने कहा…

धार्मिक यात्रा के दौरान चायनीज और इटैलियन व्यंजनों की दुकानें कुछ अजीब सा भाव मन में उत्पन्न कर देती हैं।

-सही कहा आपने. लेकिन भीड़ तो देखिये उनके यहाँ.

Unknown ने कहा…

pahle bhi iski jaankaari thi
lekin aapke aalekh me anand aaya
badhaai !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

यह देश ही विचित्रताओं का है.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

हिमालय न जाने कितने रहस्य छिपाए हुए है। पढ़ कर अच्छा लगा।
बाजार भी पहुँच चुका है। नियोजन के अभाव में कहीं इस स्थान की दुर्दशा भी अन्य हिन्दू तीर्थ स्थानों की तरह हो जाय!

हमारा उपेक्षा भाव कब समाप्त होगा?

बिपिन बादल ने कहा…

bahut achchhee jankaree dee aapne, dhanyavad.

Smart Indian ने कहा…

पहाडों पर पाए जाने वाले याक और चौरी के दूध का लगभग ११ प्रतिशत भाग ठोस होता है। उससे बनने वाला पनीर जैसा पदार्थ छुरपी पत्थर सा कड़क होता है। कोई आर्श्चय नहीं कि छुरपी का प्रयोग करके एक मजबूत शिवलिंग बनाया जा सकता है। यही बिजलेश्वर महादेव के शिवलिंग का रहस्य है।

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