पान या तांबुल का प्रयोग भारत में कब से हो रहा है नहीं पता, पर प्राचीन काल से ही इसका उल्लेख सामने आता रहा है। इसने वह स्थान प्राप्त किया हुआ है कि पूजा अर्चना में इसे भगवान को भी अर्पित किया जाता है। अपने गुणों की खातिर इसे हमारी दिनचर्या में भी जगह मिली हुई है। आयुर्वेद में भी इसका उपयोग लाभकारी बताया गया है।
पर जैसी हमारी आदत है स्वाद के लिये हम अच्छी चीजों पर अपने 'प्रयोग' कर उन्हें कुछ हद तक बिगाड़ कर रख देते हैं। अब पान को ही लें, तो पता नहीं इसमें जर्दा, किमाम, सुगंधी और न जाने क्या-क्या मिला इसे भी नशीला बना कर ग्रहण किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिये हानीकारक होता ही है, धीरे-धीरे इसका व्यसन लग जाता है, जो मुंह और गले के बहुत सारे रोगों को जन्म देने का जरिया बन जाता है। बहुतेरे लोग इसे मिठाई की तरह गुलकंद, नारियल का चूरा और ना जाने क्या-क्या डलवा कर खाते हैं (अब क्या छिपाना, मैंने खुद ऐसा बहुत बार खाया है, मीठे स्वाद के लिये) जिससे इसका फायदा लगभग खत्म हो जाता है।
पान का पूरा लाभ लेने के लिये उसमें जरा सी मात्रा में चूना, कत्था, जायफल, लौंग, ईलायची तथा पक्की सुपारी ड़ाल उपयोग करना चाहिये। कच्ची सुपारी का सेवन हानीकरक माना जाता है।
पान के सेवन से मुंह का स्वाद ठीक रहता है, जीभ साफ रहती है, गले के रोगों में भी फायदा होता है तथा चूने के रूप में शरीर को कैल्शियम की प्राप्ति हो जाती है। इसका उपयोग खाना खाने के बाद ही फायदेमंद रहता है। पर कुछ परिस्थितियों में इसे खाना मना है। जैसे थकान में, रक्तपित्त में, बहुत कमजोर व्यक्ति को, आंखें आने पर, शरीर में सूजन होने पर या गरम प्रकृति के लोगों के लिये इसका सेवन उचित नहीं होता।
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संता ने शहर आ पहली बार लोगों को एक 'खोखे' से हरा सा पत्ता ले खाते हुए देखा तो उत्सुकतावश वह भी वहां जा पहुंचा, पूछने पर उसे पता चला कि इस चीज को पान कहते हैं और यह खाने के काम आता है। उसने भी कहा खिलाओ भाई। पनवाड़ी ने एक दिया उसे निगल संता बोला और दो, इस तरह पन्द्रह- बीस पान खा संता ने पैसे दिये और चला गया। दूसरे दिन पनवाड़ी को फिर संता दिखाई पड़ा उसने फिर मुर्गा फांसने के लिये आवाज लगाई, बाबूजी, पान खाते जाओ। संता ने चलते-चलते जवाब दिया, नहीं भाईया आज खाना खा के निकले हैं।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
अच्छी जानकारी. पान के पत्ते में एक बहुत ही सूक्ष्म कीटाणु होता है (Cochineal)जो जहरीला होता है. केरल के पुराने घरों में जहाँ पान खाने का व्यसन है, घरों में बिही (जाम) का पेड़ भी लगाते हैं. बिही का पत्ता उस जहर को काटता है. वहां लोग कच्ची सुपारी ही खाना पसंद करते हैं.,
शर्मा जी, पान खाने के बाद जो दाँत लाल हो जाते हैं,उन्हे फिर से चमकाने का भी कोई नुस्खा बता देते।
paan to kabhee khaayaa naheeM magar jaanakaaree achhi hai aabhaar
अच्छी जानकारी..संता तो अब जब फिर भूख लगेगी तब आयेगा.
बहुत खुब हमारे यहां तो मिलता ही नही, इस लिये रोटी खानी पडती है,जानकारी के लिये धन्यवाद
अच्छी जानकारी,
रोच् लेख के लिए बधाई!
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