शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

वर्षों से चुगलखोरी की सजा भुगतती, एक मजार

भोलू सैय्यद तो मर गया ! पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, प्रतिशोध जैसी भावनाऐं हर शख्स के मन में कमोबेश होती ही हैं ! बिरले संत-महात्मा ही इससे निजात पा सकते हैं ! इन्ही भावनाओं के तहत चुगली और झूठ जैसी आदतें भी आती हैं, जिनका सहारा अक्सर अपने व्यक्तिगत हित-लाभ के लिए लिया जाता रहा है ! इसके लिए किसी को कोई बड़ी सजा भी नहीं मिलती है। पर इतिहास में अपवाद स्वरूप चुगली के कारण दी गई एक अनोखी सजा का विवरण मिलता है जो दोषी के मरणोपरांत भी वर्षों से बाकायदा जारी है ! 

उपेक्षित, जर्जर इमारत 

मध्य प्रदेश के इटावा-फर्रुखाबाद मार्ग पर दतावली गांव के पास जुगराम जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। उसी से जरा आगे जाने पर खेतों में भोलू सैय्यद का मकबरा बना हुआ है। जो अपने नाम और खुद से जुड़ी प्रथा के कारण खासा मशहूर है। इसे चुगलखोर की मजार के नाम से जाना जाता है और प्रथा यह है कि यहां से गुजरने वाला हर शख्स इसकी कब्र पर कम से कम पांच जूते जरूर मारता है। क्योंकि यहां के लोगों में ऐसी धारणा है कि इसे जूते मार कर आरंभ की गयी यात्रा निर्विघ्न पूरी होती है। अब यह धारणा कैसे और क्यूँ बनी, कहा नहीं जा सकता। इसके बारे में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं !

वीरानगी 
ऐसा क्यों है इसकी कोई निश्चित प्रामाणिकता तो नहीं है पर जैसा यहां के लोग बताते हैं कि बहुत पहले इस विघ्नसंतोषी, सिरफिरे इंसान ने अपने किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इटावा के राजा तथा अटरी के हुक्मरान को गलत अफवाहें फैला कर लड़वा दिया था। वह तो युद्ध के दौरान ही सच्चाई का पता चल गया और व्यापक जनहानि होने से बच गयी। इसे पकड़ मंगवाया गया और मौत की सजा दे दी गई। पर ऐसा नीच कृत्य करने वाले को मर कर भी चैन ना मिले इसलिये उसका मकबरा बनवा कर यह फर्मान जारी कर दिया गया कि इधर से हर गुजरने वाला इस कब्र पर पांच जूते मार कर ही आगे जायेगा। जिससे भविष्य में और कोई ऐसी घिनौनी हरकत ना करे।

दूसरों को दंडित करने की तत्परता 
इसके अलावा इसे 1129 में हुई राजा जयचंद और मुहम्मद गोरी की लड़ाई से भी जोड़ा जाता है ! कहते हैं उस समय यहां राजा सुमेर सिंह का राज था जिन्होंने इस युद्ध में राजा जयचंद का साथ दिया था ! युद्ध के दौरान उनकी खुफिया जानकारियां, वहां फकीर के रूप में रह रहे एक जासूस भोला सैय्यास ने गोरी तक पहुंचाईं थीं ! भेद खुलने पर राजा सुमेरसिंह ने उसे मृत्यु दंड दिया था, जिसमें उसकी जान जाने तक पत्थरों-जूतों से मारने की सजा थी ! उसके बाद उसकी मजार बनवा उस पर पत्थर लगवा कर उस पर चुगल खोर की मजार लिख, यह फर्मान जारी किया गया कि जो भी इधर से गुजरे वह इसको जूतों से मार कर ही आगे जाए ! तब से ऐसा ही चला आ रहा है ! पर अब बहुत कम हो चुका है !  

इंसानों के दिल-ओ-दिमाग का भी जवाब नहीं है ! मजार है ! इसलिए धीरे-धीरे लोग यहां मन्नत मांगने भी आने लगे हैं। हालांकि उसके लिए भी कब्र को फूल या चादर के बदले जूतों की पिटाई ही नसीब होती है ! इसके अलावा इधर से यात्रा करने वाले कुछ लोगों का मानना है कि यह रास्ता बाधित है इसलिए भी लोग खुद और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मजार की जूतम-पैजार कर के ही अपनी यात्रा जारी रखते हैं ! 

भोलू सैय्यद तो मर गया, पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! इतिहास खुद को दोहराता तो है पर कभी-कभी थोड़ी बहुत तबदीली भी तो हो ही जाती है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!     

@चित्र, संदर्भ, अंतर्जाल के सौजन्य से 

रविवार, 26 जनवरी 2025

पुलिसिया खौफ

अरे, कैसे बौड़म हो तुम ! जरा सी भी अक्ल नहीं है क्या ? रोज ही कुल्हाड़ी खोज-खोज कर अपना पैर उस पर जा मारने से बाज नहीं आते ! कभी तो दिमाग से काम ले लिया करो ! मैं स्तब्ध ! ऐसा क्या कर दिया मैंने ! धीरे से पूछा कि क्या हो गया ?'' क्या हो गया ?'' अरे, पूछो क्या नहीं हो गया !" कभी सोचा है तुमने कि जो पुलिस कुत्ते को भैंस में तब्दील कर सकती है, भैंस को कुत्ता बता कैद कर सकती है ! उसे तुम्हें भैंस और फिर कुत्ता साबित कर गिरफ्तार करने में कितनी देर लगेगी ! वैसे भी  तुम्हारा रंग काला ना सही, गहरा सांवला तो है ही ना.............!!        

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अभी पूरा अँधेरा हुआ नहीं था ! पर ठंड के कारण बाहर इक्का-दुक्का लोग ही नज़र आ रहे थे ! श्रीमती जी उम्र के इस दौर की जरुरत के मुताबिक मंदिर में अर्जी लगाने गईं हुईं थीं। तभी मुख्य द्वार एक झन्नाटेदार आवाज के साथ खुला, लगा कोई भारी-भरकम चीज टकराई हो ! आवाज सुन बाहर निकला तो लॉन में एक भैंस को खड़े पाया, जो शायद गफलत में मुख्य द्वार खुला रहने की वजह से अंदर आ गई थी ! पास जाने की तो हिम्मत नहीं पड़ी सो दूर से ही हुश्शsssहुश्श की आवाज के साथ, हाथ वगैरह हिलाए पर वह जाने की बजाए मेरे और नजदीक आ गई !  

यही थीं 
मुझसे ना अंदर जाते बन रहा था ना हीं वहां खड़े रहते ! खुद को सभ्य, शांतिप्रिय, भाईचारे का हिमायती मानने वाले मुझ जैसे लोग किसी प्रकार का डंडा-लाठी भी अपने घर में नहीं रखते, पर आज अपनी स्वरक्षा के लिए ऐसी किसी चीज की जरुरत शिद्दत से महसूस हो रही थी ! इसी बीच भैंस बोल उठी, भाई साब, मुझे बचा लो ! मुझे एक झटका सा लगा ! पर मैं जैसे किसी दूसरे लोक में सपना देख रहा होऊं ! पता नहीं क्यों उसके इस तरह बोलने पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ, उलटे मैंने उससे पूछा कि क्या बात है, तुम घबराई सी क्यों हो ?

उसने बताना शुरू किया कि सुबह घोसी मोहल्ले में पुलिस आई थी जो किसी काले रंग के कुत्ते को खोज रही थी, जिसने किसी बड़े, रसूखदार आदमी को काट लिया था ! कुत्ता तो उन्हें नहीं मिला पर उनका हवलदार मुझे जैसे देखता हुआ गया, उससे मैं बहुत ही घबड़ा गई ! मैं बहुत ही डरपोक टाइप की भैंस हूं ! रंग भी मेरा काला है ! यदि पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई और मेरी कुटाई कर मुझसे कुबुलवा लिया कि मैं भैस नहीं कुत्ता हूँ, तो मेरा क्या होगा ! इसी डर से मैं तबेले से भाग आई और आपका दरवाजा खुला देख अंदर आ गई ! अब आप ही मुझे बचा सकते हैं !

मेरी दबी-ढकी इंसानियत और पशुप्रेम ने अंगड़ाई ली ! मैंने उसे बाल्टी भर पानी पीने को दिया और पिछवाड़े के किचन गार्डन में ले जा कर कहा तुम यहां सुरक्षित महसूस करो, यदि भूख लगी हो तो यह घास वगैरह भी खा सकती हो ! वर्षों की पड़ी हुई मुफ्तखोरी की आदत यहां भी परोपकार के बहाने मुफ्त में झाड़-झंखाड़ की सफाई करवा लेने से बाज नहीं आई !  

अभी अपनी टुच्ची चतुराई पर खुश हो ही रहा था कि श्रीमती जी का आगमन हो गया ! आते ही बरस पड़ीं, बाहर का दरवाजा खुला पड़ा है और तुम यहां बैठे कम्प्यूटर टिपटिपा रहे हो ! कोई जानवर वगैरह घुस आया तो ? इतना भी नहीं कि जरा देख-दाख लिया करो, जनाब को फुरसत ही नहीं रहती ! इतने में उनकी नजर किचन गार्डन में घास चरती भैंसिया पर जा पड़ी, वहीं से चिल्लाईं, मैंने कहा था ना कि पशु-मवेशी घुस आएगा ! लो देखो, भैंस सारा लॉन चर गई है ! निकालो इसे !

मैंने उन्हें शांत करते हुए सारी बात बता कर कहा कि इसीलिए मैंने उसे अंदर लिया है ! मैंने सोचा था कि इस बात पर तो वे मेरी तारीफ करेंगी ही, पर यहां तो सदा की तरह फिर पासा उलटा पड़ गया ! श्रीमती जी ने सारी बात सुन अपना माथा पीट लिया, बोलीं, अरे कैसे बौड़म हो तुम ! जरा सी भी अक्ल नहीं है क्या ?तुमसे अक्लमंद तो ये भैंस है जिसने खतरा भांप लिया ! एक तुम हो जो कुल्हाड़ी खोज-खोज कर अपना पैर उस पर जा मारने से बाज नहीं आते ! कभी तो दिमाग से काम ले लिया करो ! 

मैं स्तब्ध ! ऐसा क्या कर दिया मैंने ! धीरे से पूछा कि क्या हो गया ?'' क्या हो गया ?'' अरे, पूछो क्या नहीं हो गया !" कभी सोचा है तुमने कि जो पुलिस कुत्ते को भैंस में तब्दील कर सकती है, भैंस को कुत्ता बता कैद कर सकती है ! उसे तुम्हें भैंस और फिर कुत्ता साबित कर गिरफ्तार करने में कितनी देर लगेगी ! वैसे भी  तुम्हारा रंग काला ना सही, गहरा सांवला तो है ही ना ! खुद तो अंदर जाओगे ही, मुझे भी परेशानी में डालोगे ! अगले हफ्ते मेरी तीन-तीन किटी पार्टियां हैं, क्या मुंह दिखाउंगी वहां !

अब बदहवास होने की मेरी बारी थी ! करूँ तो क्या करूँ ? मेरा तो कहीं छिपने का ठिकाना भी नहीं है ! कहाँ जाऊं ? ऐसे में AI का ख्याल आया। डूबते को तिनके का सहारा ! कम्प्यूटर खोल, AI के सामने अपनी समस्या रखी और उसका हल पूछा ! एक बार तो लगा कि वह भी सकते में आ गया है ! पर कुछ समय बाद उसका जवाब आया कि संसार में यदि कहीं की भी पुलिस किसी के पीछे पड़ जाए तो वह किसी भी हालत में बच नहीं सकता ! वही हाल आपका है। बचने का एक ही उपाय है ! आप कुत्तों की थोड़ी सी बोली सीख, अपने को कुत्ता डिक्लेयर कर, सरेंडर कर दो ! चकित हो मैंने पूछा इससे क्या होगा ? जवाब आया, इससे आप पुलिस की मार से बच जाएंगे और जब आपको कोर्ट में कुत्ते के रूप में पेश किया जाएगा तो आप भौंक कर दिखा जज को भी अपने श्वानपुत्र होने का विश्वास दिला देंगे ! फिर जो थोड़ी-बहुत सजा होगी उसे पूरा कर वापस आ जाइएगा ! मरता क्या ना करता ! कम्प्यूटर से ही सीखने की कोशिश कर रहा हूँ,

भौं-भौं....भौं.....भौं-भौं-भौं 

शनिवार, 18 जनवरी 2025

भइया ! अतिथि आने वाले हैं

इन्हें बदपरहेजी से सख्त नफरत है। दुनिया के किसी भी कोने में इन्हें अपनी शर्तों का उल्लंघन होते दिखता है तो ये अपने को रोक नहीं पाते और वहां बिना किसी जान-पहचान या रिश्तेदारी के पहुंच जाते हैं। देश-परदेस, जात-पात, भाषा-रंग, अमीर-गरीब, राजा-रंक किसी का भी भेद ना करने वाले ऐसे दरियादिल को लोग अलग-अलग जगहों में भिन्न-भिन्न नामों से जानते हैं, आप  इन्हें   किस नाम से जानते हैं ? बताइएगा 😇

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सर्दी की चरमावस्था का जब करीब आधे से ज्यादा समय निकल गया ! ऐसे में कुछ दिनों पहले गले में जरा सी खराश और नाक के द्वार पर कुछ हलचल सी महसूस होने लगी ! जैसे कोई जबरन पैठना चाहता हो ! तन-मन पूर्णतया स्वस्थ लग रहा था ! सो दिल्ली के प्रदूषण पर दोष डाल निश्चिंतता बनी रही ! ऐसे मौसम में एक-दो छींकों को भी नजरंदाज कर दिया जाता है ! पर दूसरे दिन जो छींक आई तो उसके साथ उसका पांच-छह जनों का भरापुरा परिवार भी था ! तभी रूमालों ने भी आद्र हो-हो कर संकेत दे दिया कि भइया ! अतिथि आने वाले हैं !  

उनके आने का आभास तो शुक्रवार सुबह ही हो गया था और शाम तक तो उपस्थिति भी दर्ज हो चुकी थी। पर नौकरी-पेशा लोगों की कुछ मजबूरियां होती हैं, पर इसका अहसास उन्हें क्यूंकर हो सकता था ! उन्हें तो सिर्फ अपनी खातिरदारी और मेहमानवाजी से मतलब था ! उस पर, उनके आ पहुंचने की जानकारी के बावजूद, मेरे शनिवार को काम पर चले जाने को उन्होंने अपनी उपेक्षा के रूप में ले लिया, और नाराज हो गए ! वैसे उनका नाराज होना बनता भी था इसलिए जायज भी था ! पर मेरी तो मति ही मारी हुई थी !

तीसरा दिन रविवार का था। छुट्टी के कारण मैं उनके साथ ही था पर पूरे दिन वे भृकुटियां ताने वक्री बने रहे। अपने को फिर भी बात कुछ खास समझ नहीं आई और सोमवार को फिर उन्हें अनदेखा कर कार्यालय जाने की भूल दोहरा दी। गल्ती तो सरासर मेरी थी ही ! अब  बाहर से आए मेहमान की ना तो कोई खातिरदारी की, नाहीं फल-फुंगा भेंट किया, नाहीं ढंग से समय दिया ! ऐसे में तो कोई भी नाराज हो ही जाएगा ना ! 

फिर क्या था वे अपने रौद्र रूप में आ गए ! मेरा पूरा तन-बदन अपनी गिरफ्त में ले लिया। हर अंग पर उन्होंने अपनी पकड़ और जकड़ बना ली ! हिलना-डुलना तक दूभर कर डाला। जब चहूँ ओर से मार पड़ी तब जा कर अपुन को अपनी गल्तियों का अहसास हुआ। मंगल तथा बुधवार पूरी तरह से उनपर न्योछावर कर डाले। "प्रसाद" ला कर मान-मनौवल किया। इस पर कुछ बात बनती दिखी ! क्योंकि दिखने में वे कितने भी उग्र दिखते हों, स्वभाव से उतने हैं नहीं ! इसीलिए मेरे इतने से प्रयास से ही ढीले पड गए और बुध की शाम को अपने-आप वापस हो लिए !

ये बिना किसी तिथि के आने वाले अतिथि ऐसे हैं जिनके आने से कोई भी खुश नहीं होता ! कोई नहीं चाहता कि वे उनके घर किसी भी बहाने से आएं। इनके रुकने का समय भी तो निर्धारित नहीं होता, ना हुआ तो दूसरे दिन ही चल दें और कहीं मन रम गया तो दसियों दिन लगा दें। पर  इन दसेक दिनों में घर-बाहर वालों की ऐसी की तैसी कर धर देते हैं। 

वैसे इनके पक्ष से देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये चाहते हों या इनकी मंशा, ध्येय या लक्ष्य यह है कि संसार में सब जने स्वस्थ प्रसन्न रहें, कोई अपने प्रति लापरवाही ना बरते, अनियमित दिनचर्या ना अपनाए, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखे, किसी तरह की काहली को जीवन में स्थान ना दे। इन्हें बदपरहेजी से भी सख्त नफरत है। दुनिया के किसी भी कोने में इन्हें अपनी शर्तों का उल्लंघन होते दिखता है तो ये अपने को रोक नहीं पाते और वहां बिना किसी जान-पहचान या रिश्तेदारी के पहुंच जाते हैं।

देश-परदेस, जात-पात, भाषा-रंग, अमीर-गरीब, राजा-रंक किसी का भी भेद ना करने वाले ऐसे समदर्शी, दरियादिल को लोग अलग-अलग जगहों में भिन्न-भिन्न नामों से जानते हैं। कोई बुखार कहता है, कोई ताप, कोई फिवर, कोई जुकाम तो कोई हरारत ! आप  इन्हें  किस नाम से जानते हैं ? बताइएगा 😇

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

मंगलवार, 14 जनवरी 2025

पत्रकारिता, लोकतंत्र का चौथा बंबू

पत्रकारिता के लिए एक बात बहुत उछाली जाती है कि यह लोकतंत्र का चौथा खंभा है ! कहां से आई यह उक्ति ? संविधान में तो जनतंत्र की सहायक एक तिपाई, TRIPOD, कार्यपालिका, विधायिका और सिर्फ न्यायपालिका का ही उल्लेख है, मीडिया का कोई जिक्र नहीं है, तब इस स्वयंभू चौथे बंबू की बात कैसे और किसके द्वारा थोपी गई ? जाहिर है कुटिल, सत्तालोलुप नेताओं, काला बाजारियों, भ्रष्ट व्यापारियों, बिचौलियों इत्यादि को ही इसकी जरुरत थी ! जिससे आम इंसान को बेवकूफ बना उनकी छवि बेदाग बनाए रखी जा सके ..............!!         

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कुछ साल पहले तक समाचार पत्रों में छपी खबरों पर आम इंसान आँख मूँद कर विश्वास कर लिया करता था ! क्योंकि उसे मालूम था कि इन समाचारों को उन तक पहुंचाने वाले इंसान निर्भीक, निष्पक्ष, निडर व सत्य  के पक्षधर हैं ! रेड़िओ पर पढ़ी जाने वाली सरकारी खबरें भी बहुत हद तक दवाब-विहीन ही होती थीं ! पर धीरे-धीरे इस विधा में भी मतलबपरस्त, चापलूस, धन-लोलूप खलनायकों का दखल शुरू हो गया और आज हालत यह है कि संप्रेषण के किसी भी माध्यम पर, चाहे वह छपने वाला हो या दिखने वाला, किसी को भी पूर्ण विश्वास नहीं है ! इसी बीच व्हाट्सएप, युट्यूबर जैसी एक और खतरनाक मंडली भी उभर कर आई हुई है ! जिसका भ्रामक असर अति व्यापक, घातक और मारक है !

आज के समय में तकरीबन हर अखबार, हर टीवी चैनल, किसी ना किसी राजनैतिक दल का भौंपू बन कर रह गया है ! उनकी भी अपनी मजबूरी है ! आज कौन चाहेगा निष्पक्ष पत्रकारिता या सच को उजागर करने के चक्कर में अपना तंबू-लोटा समेट घर बैठना और तन-धन को जोखिम में डालना ! जबकि जरा सी चापलूसी, जी-हजूरी के बदले गाड़ी, घोड़ा, बंगला, जमीन, विदेशयात्रा, संरक्षता, मान-सम्मान, पुरस्कार, प्रतिष्ठा सभी कुछ हासिल हो रहा हो ! इसीलिए ऐसी गंगा में सभी हाथ धोने की बजाय पूरी डुबकियां लगाने से परहेज नहीं करते !

आम जनता भी अब जानकारी के लिए नहीं बल्कि समय गुजारने या मनोरंजन के लिए खबरिया चैनलों के सामने बैठने लगी है ! पर वहां की स्तरहीन, मक्कारी भरी, तथ्यहीन वार्ता और उसमें विभिन्न दलों के तथाकथित वार्ताकारों का ज्ञान, उनकी मानसिकता, उनकी शब्दावली, उनकी कुंठा, उनकी चारणिकता, उनके पूर्वाग्रहों को देख दर्शकों का रक्त-चाप ही  बढ़ता है ! मेहमान पर नहीं मेजबान पर कोफ्त होती है !
    
अर्से से पत्रकारिता के लिए एक बात बहुत उछाली जाती है कि यह लोकतंत्र का चौथा खंभा है ! कहां से आई यह उक्ति ? संविधान में तो जनतंत्र की सहायक एक तिपाई, TRIPOD, कार्यपालिका, विधायिका और सिर्फ न्यायपालिका का ही उल्लेख है, मीडिया का कोई जिक्र नहीं है ! तब इस स्वयंभू चौथे बंबू की बात कैसे और किसके द्वारा थोपी गई ? जाहिर है कुटिल, सत्तालोलुप नेताओं, काला बाजारियों, भ्रष्ट व्यापारियों, बिचौलियों इत्यादि को ही इसकी जरुरत थी ! जिससे आम इंसान को बेवकूफ बना उनकी छवि बेदाग बनाए रखी जा सके ! सो एक मंच तैयार किया गया, पर वही आज सच्चाई, विश्वास, नैतिकता, निष्पक्षता यहां तक कि देशहित को भी भस्मासुर की तरह स्वाहा करने पर उतारू है ! 

एक कहावत है कि हर चीज के बिकने की एक कीमत होती है ! तो कीमत लगी, माल खरीदा गया और उसे तरह-तरह के नाम और अलग-अलग तरह की थालों में रख, दुकानों में सजा दिया गया ! इधर पब्लिक अपनी उसी पुरानी भेड़चाल के तहत, अपने-अपने मिजाजानुसार उन दुकानों पर बिकते असबाबों की परख किए बगैर, उनकी गुणवत्ता को नजरंदाज कर, उनके रंग-रूप-चकाचौंध पर फिदा हो अपने सर पर लाद अपने-अपने घरों तक लाती रही ! भले ही बाद में पछताना ही पड़ रहा हो !

घोर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद यह आशा बनी हुई है कि अभी भी  ऐसे लोग जरूर होंगे, जिनमें अभी भी जिम्मेवारी का एहसास बचा हुआ होगा ! जिनकी आत्मा रोती होगी आज के हालात देख कर ! जिनकी कर्त्तव्यपरायणता अभी भी सुप्तावस्था में नहीं चली गई होगी ! क्या ऐसे लोगों का जमीर उन्हें कभी कचोटता नहीं होगा ? क्या उनकी बची-खुची गरिमा उन्हें सोने देती होगी ? क्या कभी उन्हें अपनी उदासीनता पर ग्लानि नहीं होती होगी ? क्या उन्हें कभी ऐसा विचार नहीं आता होगा कि जिस विधा का काम समसामयिक विषयों पर लोगों को जागरूक करने और उनकी राय बनवाने में बड़ी भूमिका निभाना है और जिस कारणवश आज विश्व में मीडिया एक अलग शक्ति के रूप में उभरा है, उसी का अभिन्न अंग होते हुए भी वे उसका दुरूपयोग होते देख रहे हैं ! ऐसे लोगों को तो आगे आना ही पड़ेगा ! इस घोर अंधकार को मिटाने के लिए सच का दीपक प्रज्ज्वलित करना होगा ! छद्म संप्रेषण का चक्रव्यूह नष्ट कर निडर, निर्भीक, निर्लेप, विश्वसनीय निष्पक्षता का आलम फिर से स्थापित करना होगा !  

पर क्या ऐसा होगा ? क्या कोई ऐसी हिम्मत जुटा पाएगा ? क्या वर्तमान ताकतों का मायाजाल छिन्न-भिन्न हो सकेगा ? ऐसे बहुत सारे क्या हैं ! क्या इन क्याओं का उत्तर मिल पाएगा ? क्या अपने हित को दरकिनार कर, अपने नुक्सान की परवाह ना कर, देश, समाज, अवाम के हितार्थ सच के पैरोकार आगे आएंगे ? सुन तो रखा है कि बुराई पर अच्छाई की और झूठ पर सच की सदा विजय होती है ! 
देखें.........!!

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

कड़कड़ाती ठंड में नहाना, किसी पराक्रम से कम नहीं

नहाना.....! उसका तो सोच कर ही नानी-परनानी-लकड़नानी और ना जाने कौन-कौन याद आने लगती है ! उजले तन को क्या साफ़ करना; मन की मैल धोनी जरुरी होती है, जैसे विचार आ-आकर आदमी को दार्शनिक बनाने से नहीं चूकते ! ना नहाने के सौ बहाने गढ़ लिए जाते हैं ! पर कभी-कभी किसी पवित्र पर्व या दिन पर ना नहाने के अनिष्ट के डर से यह क्रिया सम्पन्न करने का अति कठिन संकल्प लेना ही पड़ता है......!

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इस बार धरती के कुछ स्थानों पर शीत ने प्रचंड प्रकोप दिखा अपना राज्य स्थापित कर लिया ! प्रकृति के सारे रंग बेरंग हो गए, घर-द्वार, महल-झोंपड़ी, जल-थल, जंगल-पहाड़ सब पर सफेदी का आलम छा गया ! चहुं ओर कुहासे की सफेद चादर बिछ गई ! पारा किसी रीढ़विहीन नेता की तरह भूलुंठित होता चला गया ! उधर सूर्यदेव तो पहले ही दक्षिणायन हो निस्तेज से हुए पड़े थे, उस पर यह कहर ! उन्होंने भी अपना यात्रा पथ छोटा कर लिया और अपने रथ को चारों ओर से कोहरे के मोटे लिहाफ से ढक, कंपकपाते हुए मजबूरी में किसी तरह एक चक्कर लगा जल्द अस्ताचल में जा छिपने लगे !  

कोहरा ही कोहरा 
जब देवों का यह हाल था, तो धरा के निर्बल आम इंसानों पर क्या बीत रही होगी ! पर दिनचर्या किसी तरह चलानी-निभानी पड़ती ही है ! भले ही घरों, दफ्तरों, बसों, कारों, ट्रेनों में ऊष्मा-यंत्र लगे हुए हों, पर बाहर तो निकलना पड़ता ही है, पेट जो जुड़ा हुआ है साथ में ! ऐसे में तापमान में बड़े बदलाव के कारण, गर्म-सर्द हो, तबियत बिगड़ने की आशंका भी बनी रहती है ! खासकर बड़ी उम्र के लोगों में ! 
बहुते ठंडी है भई  
हमारे ग्रंथों में स्वस्थ बने रहने के लिए कहा गया है कि सौ काम छोड़ कर भोजन और हजार काम छोड़ कर स्नान करना जरुरी है ! अब इस भीषण ठंड में खाना तो बिना काम छोड़े भी इंसान कर लेता है, वह भी तरह-तरह की ग़िज़ाओं वाला, पर नहाना.....उसका तो सोच कर ही नानी-परनानी-लकड़नानी और ना जाने कौन-कौन याद आने लगती है ! उजले तन को क्या साफ़ करना, मन की मैल धोनी जरुरी होती है, जैसे विचार आ-आकर आदमी को दार्शनिक बनाने से नहीं चूकते ! ना नहाने के सौ बहाने गढ़ लिए जाते हैं ! पर फिर किसी पवित्र पर्व या दिन पर, ना नहाने के अनिष्ट के डर से यह क्रिया सम्पन्न करने का अति कठिन संकल्प लेना ही पड़ता है !
शुभ्र हिम चहुँ ओर 
ऐसी ही एक घड़ी में और बुजुर्गों की लानत-मलानत के बाद अपुन को भी इस शुद्धिकरण की क्रिया के लिए संकल्पित होना पड़ा ! भाग्य प्रबल था, शायद इसीलिए उस दिन सुबह-सबेरे से ही धूप खिली हुई थी ! शुक्र मनाया और सबसे पहले पानी गर्म किया ! फिर जिनके नाम याद थे उन सारे देवी-देवताओं-उपदेवताओं को स्मरण कर, शरीर को ना छोड़ने वाले प्रेममय लिहाफ को ''उसकी इच्छा'' के विरुद्ध, अकड़े हुए शरीर से अलग किया ! फिर ऊनी टोपी उतारी ! कुछ नहीं होगा जैसी सांत्वना देते हुए सर को सहलाया ! गुलबंद खोला ! शॉल हटाया ! सिहरते हुए स्वेटर उतारा ! दस्ताने खोले ! कमीज को किनारे किया ! फिर धीरे से ऊपर का इनर हटा गंजी तो उतारनी ही थी, उतारी ! पायजामे को मुक्ति दी ! फिर उसके बाद इनर का नंबर आया ! अंत में जब मौजा उतरा तब कहीं जा कर बारह बजे दोपहर को कई दिनों से बिन नहाया शरीर धुल पाया ! कांपते-कंपकपाते फिर अपने उन सारे हितैषियों के समकक्षों को धारण कर, इस भीषण परिक्षण से सही-सलामत उत्तीर्ण करने के लिए प्रभु को धन्यवाद दे, धूप में जा बैठा ! 
प्राण दाता भुवन-भास्कर 
एक होता है पराक्रम ! जो कई तरह का होता है जैसे शौर्य, शक्ति, बल, सामर्थ्य इत्यादि ! विकट या विपरीत परिस्थितियों में ही इसका परिक्षण होता है। इसमें उत्तीर्ण हो जाने वाले को पराक्रमी कहा जाता है ! सोच रहा था खुद को, खुद से ही अलंकृत कर लूँ इस उपाधि से ! आप क्या कहते हैं, इसका इन्तजार रहेगा !

हर-हर गंगे !       

@गलत फैमिली में ना जाएं, इक्का-दुक्का दिन छोड़, रोज नहाता हूँ भाई------खुद के हित में जारी। 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 1 जनवरी 2025

फौवारे और तालियों की जुगलबंदी

अब वहां उपस्थित सभी लोग फौवारे पर दिए गए अपने-अपने समझदारी भरे आकलनों पर खिसियानी हंसी हंस रहे थे ! राज और माली की इस युगलबंदी ने सभी का जो मनोरंजन किया उसके लिए माली का पारितोषिक पर हक तो बनता ही था, इसके अलावा उद्यान से निकलते समय सभी का ख्याल था कि ''राजू'' गाइड को दी गई रकम फिजूल नहीं गई............!

#हिन्दी_ब्लागिंग

कभी-कभी कुछ पेचीदा से लगने वाले वाकये का यथार्थ जब सामने आता है तो हंसी छूट जाती है कि लैsss, यह ऐसा था ! अभी पिछले दिनों दल-बल के साथ झीलों के सुंदर शहर उदयपुर जाने का मौका फिर हासिल हुआ था ! घूमते-घामते हम सब पहुँच गए वहां के प्रसिद्ध उद्यान सहेलियों की बाड़ी ! पहले तो जरुरत नहीं समझी गई पर फिर सर्वसम्मति से एक हंसमुख, मिलनसार, नवयुवक 'गाइड', राज मेवाड़ी जी की सेवाएं ले ली गईं। उनके अनुसार बाड़ी में एक संग्रहालय के साथ ही फवारों के पांच विभिन्न विषयों पर हिस्से बने हुए हैं ! जैसे वेलकम फाउंटेन, रासलीला, बिन बादल बरसात, सावन भादों और कमल तलाई या कमल कुंड !

राणा संग्राम सिंह ने सन 1710 में अपनी पत्नी की खुशी और उनके साथ विवाहोपरांत आईं उनकी सेविकाओं की तफरीह के लिए फतेह सागर झील के तट पर इस उद्यान का निर्माण कराया था। इसीलिए इसका नाम सहेलियों की बाड़ी पड़ा !  इस बाड़ी या उद्यान में तकरीबन दो हजार छोटे-बड़े सुंदर फवारे हैं जो आज भी चल रहे हैं, इन्हें फ़तेह सागर झील से पानी मिलता है ! भारत के इतिहास में यह उन दुर्लभ और आश्चर्यजनक स्थानों में से एक है, जिनका निर्माण महिलाओं के लिए किया गया हो ! रानी को बारिश के मौसम से बहुत लगाव था उनके इस शौक को पूरा करने के लिए इंग्लैंड से बारिश के फव्वारों को आयात कर यहां लगाया गया था ! उद्यान में बहुत ही सुन्दर संगमरमर के मंडप और हाथी के आकार के फव्वारे है जो कि देखते ही मन मोह लेते हैं ! कमल के ताल एवं विभिन्न तरह के सैंकड़ों फूलों के पौधों के साथ ही  इसमें उन सभी प्रकृति के पहलुओं को शामिल किया गया है जो कि रानी को पसंद थे। 


उद्यान के अलग-अलग हिस्सों के इतिहास-भूगोल, उसकी विशेषताओं को बताते, समझाते, दिखलाते, राज ने एक जगह झाड़ियों से घिरे चलते फव्वारों के पास रुक कर कहा, चलिए आपको तालियों का एक चमत्कार दिखाता हूँ। आप सब मेरे साथ ताली बजाएंगे तो फौवारे का पानी बंद हो जाएगा और फिर जब दुबारा मेरी तालियों के साथ लय मिलाएंगे तो फिर फौव्वारे चलने शुरू हो जाएंगे ! सभी विस्मित थे कि ताली की आवाज से पानी कैसे नियंत्रित हो सकता है ! सब उत्सुकता के साथ फौव्वारों के पास इकट्ठे हो गए। 
140 साल का मोरपंखी पौधा 
राज
ने सबको कहा कि मेरे पांच गिनते ही पानी के पास खड़े लोग मेरे साथ तालियां बजाएंगे। पांच गिनते ही जैसे ही तालियां बजीं, कुछ ही सेकेंडों में चार-पांच फिट तक उठती फौवारे की धार नीचे जाते हुए बंद हो गईं ! राज ने कहा चलिए इसे फिर चालू करते हैं और इधर जैसे ही लयबद्ध तालियां बजीं उधर फौवारा फिर अपनी लय में आ गया ! सभी चकित थे कि ऐसा कैसे हो सकता है ! कोई कहने लगा कि सेंसर लगा होगा ! कोई अपने पुराने ग्रंथों के ज्ञान का हवाला दे रहा था कोई विज्ञान का चमत्कार बता रहा था, पर इस करामात पर कोई निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह पा रहा था ! 

मनोहारी परिवेश 
तभी राज ने मुस्कुराते हुए कहा कि हम ज्यादातर इस राज को उजागर नहीं करते पर आप सब सीनियर सिटीजन का मान रखते हुए इसकी पोल खोल देता हूँ, मेरे साथ आइए ! वह हमें वहां से हटा कर कुछ दूर कोने में खड़े एक इंसान के पास ले गया, जो शायद उस हिस्से के बाग का माली था ! वहां जा राज ने कहा कि फौवारे का रहस्य तालियों में नहीं इनके पास है ! जब हम लोग फिर भी नहीं समझे तो राज ने वहीं ताली बजाई, उसके ताली बजाते ही माली ने अपने पास की घुंडी घुमा पानी का प्रवाह बंद कर दिया और दुबारा ताली बजाने पर फिर शुरू कर दिया ! अब वहां उपस्थित लोग सभी फौवारे पर दिए गए अपने-अपने समझदारी भरे आकलनों पर खिसियानी हंसी हंस रहे थे ! राज और माली की इस युगलबंदी ने सभी का जो मनोरंजन किया उसके लिए माली का पारितोषिक पर हक तो बनता ही था, इसके अलावा उद्यान से निकलते समय सभी का ख्याल था कि ''राजू'' गाइड को दी गई रकम फिजूल नहीं गई !

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