यह समय कोई साठ या सत्तर के दशक का नहीं है, जब फिल्म प्रेमी स्क्रीन, फिल्मफेयर, माधुरी या शमा जैसी फ़िल्मी पत्रिकाओं में छपी ख़बरों से ही अपनी जिज्ञासा शांत कर लेते थे ! अपने चहेते कलाकारों पर इतना विश्वास था कि पत्रिकाओं में लिखी सच्ची-झूठी बातों को ही पत्थर की लकीर समझ लिया जाता था, बिना यह जाने कि कलाकार जो चाहता था वही लिखा जाता है ! पर आज दर्शकों और फिल्म प्रेमियों के पास जानकारी जुटाने के अनगिनत साधनों के कारण सिर्फ अच्छाई ही नहीं सच्चाई भी सामने आने लगी है ! इस बात का हर फ़िल्मी लेखक को ध्यान रखना जरुरी है यदि ऐसा नहीं होता है तो मीडिया के साथ जो ''बिकाऊ विशेषण'' जोड़ दिया गया है उसको और हवा ही मिलेगी .....................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
दैनिक भास्कर के ''आपस की बात'', ''परदे के पीछे'' और ''मैनेजमेंट फंडा'' उत्कृष्ट और जानकारी युक्त स्थाई स्तंभ रहे हैं। पसंद भी बहुत किए जाते रहे हैं। क्योंकि बिना किसी लाग-लपेट अपने-अपने क्षेत्र की सीधी-सच्ची जानकारी प्रस्तुत करते रहे हैं। पर अब जहां आपस की बात फिल्मों का एक तरह से प्रमाणिक दस्तावेज का रूप ले चुका है ! मैनेजमेंट फंडा अपने सकारात्मक विचारों, बातों और जानकारियों के साथ दिन प्रति दिन लाजवाब होता चला जा रहा है ! जिसके मुकाबले उस जैसे विषय पर शायद ही कोई आर्टिकल खड़ा रह पाता हो ! वहीं बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि परदे के पीछे का लेखन किसी दुविधा, पूर्वाग्रह व नकारात्मकता के वशीभूत हो दिन पर दिन कुंठाग्रस्त होता चला जा रहा है ! ऐसा लगने लगा है कि लेखक को हर सफल चीज से नफ़रत है ! उनकी अपनी भूतकालीन विफलताएं अब लेखन पर हावी होती जा रही हैं ! इधर तो तकरीबन हर दूसरे-तीसरे अंक में गलत जानकारियां थोप दी जा रही हैं ! फिर वह चाहे किसी फिल्म के सीन का जिक्र हो, किसी फिल्म की कथावस्तु हो या फिर किसी प्रोग्राम की शुरआत की जानकारी ! फिल्मों और फ़िल्मी कलाकारों से संबंधित इस स्तंभ का समापन, बिना व्यवस्था को कोसे नहीं किया जाता ! जबकि इस लोकप्रिय पत्र को पढ़ने वाले हर तरह के लोग हैं !
यह समय साठ या सत्तर के दशक का नहीं है, जब फिल्म प्रेमी स्क्रीन, फिल्मफेयर, माधुरी या शमा जैसी फ़िल्मी पत्रिकाओं में छपी ख़बरों से ही अपनी जिज्ञासा शांत कर लेते थे ! अपने चहेते कलाकारों पर इतना विश्वास था कि पत्रिकाओं में लिखी सच्ची-झूठी बातों को ही पत्थर की लकीर समझ लिया जाता था, बिना यह जाने कि कलाकार जो चाहता था वही लिखा जाता है ! पर आज दर्शकों और फिल्म प्रेमियों के पास जानकारी जुटाने के अनगिनत साधनों के कारण सिर्फ अच्छाई ही नहीं सच्चाई भी सामने आने लगी है ! इस बात का हर फ़िल्मी लेखक को ध्यान रखना जरुरी है !
पत्रकारिता का पहला फर्ज देश और समाज के प्रति बनता है ! इसलिए निष्पक्ष पत्रिकारिता के लिए यह जरुरी है कि अपनी सोच, अपनी पसंदगी, अपने हानि-लाभ को दरकिनार कर, सिक्के के दोनों पहलुओं के बारे में ईमानदारी के साथ बिना भेद-भाव के, बिना पक्षपात किए पूरा खुलासा किया जाए ! यदि ऐसा नहीं होता है तो मीडिया के साथ जो ''बिकाऊ विशेषण'' जोड़ दिया गया है उसको और हवा ही मिलेगी !
इधर कुछ हफ़्तों से जानी-मानी, नामचीन फिल्म लेखिका भावना सोमाया जी के स्तंभ ''टॉकिंग पाइंट'' को उपलब्ध करवाया जा रहा है ! भावना जी विदुषी हैं, अपने विषय की पूरी और गहन जानकारी रखती हैं, फिल्म जगत में अच्छी पैठ है। पर यहां भी निष्पक्ष लेखन या जानकारी का अभाव खटकता है ! चाहे वह जया जी का पक्ष हो ! चाहे करीना की बात या फिर शबाना की प्रशंसा !
इतिहास में किसी की सिर्फ स्तुति या खूबियों का ही वर्णन नहीं होता ! इस दस्तावेज में किसी से भी जुडी हर बात का विवरण लिखा जाता है। भावना जी लेखिका के साथ इतिहासकार भी हैं। उनसे आशा की जाएगी कि अपने विषय का स्याह और सफ़ेद दोनों का सम-भाव से, बिना भेद-भाव बरते चित्रण करें। क्या भावना जी फिल्म इंडस्ट्री की असलियत से अनभिज्ञ हैं ! सभी नहीं, पर क्या एक अच्छी-खासी तादाद द्वारा गलत काम नहीं होते ! तो फिर जया बच्चन का स्तुति गान क्यों ! क्यों उनकी भड़ास को क्रांतिकारी कदम का रूप दे दिया गया !
उधर करीना की बात करते हुए शायद वे भूल गईं कि जिस बात के लिए वे उसकी प्रशंसा में पुल बांधें जा रही हैं वह काम काफी अर्सा पहले नूतन कर चुकी थीं ! फिर वे डिंपल को कैसे भूल गईं, जो बेटी के जवान होने और फिल्मों तक पहुंचने के बावजूद, मुख्य किरदार निभाती रही ! उसका तो शायद यह विश्व कीर्तिमान हो कि एक ही समय में माँ (डिंपल) और बेटी (ट्विंकल} अपनी-अपनी फिल्मों में नायिका की भूमिका निभा रहीं थीं। वैसे भी इनकी इस पसंदीदा अभिनेत्री ने अभिनय के रूप में या पर्दे पर ऐसा कुछ भी तो नहीं किया है, जो इसे विशेष सम्मान दिया जाए !
रही शबाना की बात तो उसके बारे में लिखते समय उसके भूत-वर्तमान का पूरा ख्याल रख कर ही उसकी उपलब्धियों का ब्योरा प्रस्तुत किया जाना चाहिए ! अवाम की यादाश्त बहुत कमजोर होती है, इसलिए लोगों को यह याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि कुछ सालों पूर्व हुए चुनावों के दौरान इस सम्मानित महिला ने किस-किस के लिए, कैसे-कैसे असम्म्मानित वाक्यों का प्रयोग किया था और अपने मनमुताबिक चुनाव परिणाम ना आने पर देश छोड़ कर चले जाने की बात कही थी। आज महिलाओं की सुरक्षा, उनके अधिकार, उनके विकास की बड़ी-बड़ी बातें करते समय क्या इनके मन में एक बार भी हनी ईरानी का ख्याल आता है ! आदमी अपने गुमान में भले ही अपनी ''करनियाँ'' भूल जाए पर उसका भूत सदा उसके साथ चिपका रहता है !
पत्रकारिता का पहला फर्ज देश और समाज के प्रति बनता है ! इसलिए निष्पक्ष पत्रिकारिता के लिए यह जरुरी है कि अपनी सोच, अपनी पसंदगी, अपने हानि-लाभ को दरकिनार कर, सिक्के के दोनों पहलुओं के बारे में ईमानदारी के साथ बिना भेद-भाव के, बिना पक्षपात किए पूरा खुलासा किया जाए ! यदि ऐसा नहीं होता है तो मीडिया के साथ जो ''बिकाऊ विशेषण'' जोड़ दिया गया है उसको और हवा ही मिलेगी !