एक सर्वे के अनुसार तकरीबन 10-15 साल पहले से, अमेरिकन लोगों की सोच में बदलाव और संयुक्त परिवार की ओर रुझान शुरू हो गया था। जो इस कोरोना संकट की घडी में और पुख्ता हुआ और लोगों ने पुरानी जीवन शैली व रहन-सहन को तेजी से अपनाना शुरू कर दिया। अब तो यह भी सामने आने लगा है कि वहां ऐसे परिवार बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं, जिनके पीढ़ियों से आपसी संबंध अटूट रहे हों। लोग उनसे जुड़ने, उनसे संबंध बनाने में गौरव महसूस करने लगे हैं। उसके उलट, उनकी हर बात का अनुसरण कर अपने को आधुनिक और प्रगतिशील दिखाने की चेष्टा करने वाले हम, जिनका सदियों से संयुक्त परिवारों में रहने का चलन रहा है, इतिहास रहा है, आज अपनी छांवनी अलग डाल, खुद को स्वतंत्र मान -दिखा अत्याधुनिक होने का भ्रम पाले बैठे हैं......................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
जगत में घटने वाली हर बात में अच्छाई और बुराई, दोनों ही निहित रहती हैं। अब जैसे इस कोरोना आपदा को ही लें जो मानवमात्र के अस्तित्व के लिए अभूतपूर्व संकट के रूप में जाना जाता तो रहेगा, परंतु इसके भी कुछ परोक्ष और अपरोक्ष फायदे तो मिले ही हैं। जैसे जल-थल-वायु का साफ़ होना ! पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार ! इंसान का संयमित होना ! कम संसाधन वाले देशों के प्रति सक्षम देशों का मैत्रीपूर्ण व्यवहार इत्यादि ! परन्तु सबसे बड़ी बात है कि इसी बीच इंसानों की सोच-आचार-व्यवहार में भी बदलाव दिखाई पड़ने लगा है। अमेरिका की, जिसके तौर-तरीके और जीवन शैली अपनाने के लिए हम लालायित रहते हैं, खबर है कि वहां के लोग अब अपने माता-पिता या अभिवाककों के पास जा कर रहने लगे हैं। एकल के बनिस्पत संयुक्त परिवारों में रहना लोग पसंद करने लगे हैं। उनको समझ में आ गया है कि उसकी सुरक्षा, प्रेम, अपनापन अन्यत्र हासिल नहीं हो सकता। बच्चों को बेहतर, नेक और भला इंसान बनाने में भी संयुक्त परिवार और उसके बुजुर्ग सदस्यों का बहुत बड़ा योगदान रहता है।
कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन के तहत भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अचानक आए ठहराव, बीमार होने के डर, अकेलेपन के तनाव ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। इससे उत्पन्न चिंता, डर, अकेलेपन और अनिश्चितता के माहौल से दिन-रात जूझते लोगो को परिवार की याद सताने लगी ! उन युवाओं के अलावा, जो किसी भी तरह की खलल से दूर रह कर अपनी जिंदगी जीना चाहते थे ! वे दम्पत्ति जो पहले अपनी स्वतंत्र्ता में किसी की टोका-टाकी ना चाहते हुए अकेले रहना चाहते थे, या जो किसी भी कारणवश सिर्फ अपने लिए जीने का ख्वाब पाले बैठे थे ! ऐसे लोगों को इस विपदा ने परिवार की अहमियत समझा दी। वे अब अपने माँ-बाप, यहां तक की बुजुर्ग दादा-दादी के पास जा कर रहने में सकून पाने लगे हैं ! एक मोटे अनुमान के अनुसार इस साल के मार्च से मई तक के समय में करीब 29 से 30 लाख लोगों ने संयुक्त परिवार को फिर से अपना लिया है। ये रुझान दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इसमें पढ़ाई करने वाले युवाओं की संख्या शामिल नहीं है जो मजबूरी में परिवार से दूर रह रहे थे। दूसरे शब्दों में कहें तो संयुक्त परिवार का माहौल उन्हें फिर मुआफ़िक लगने लगा है।
वैसे यह बदलाव कोरोना संकट के पहले से ही आकार लेने लगा था। एक सर्वे के अनुसार तकरीबन 10-15 साल पहले से, अमेरिकन लोगों की सोच में बदलाव और संयुक्त परिवार की ओर रुझान शुरू हो गया था। जो इस संकट की घडी में और पुख्ता हुआ और लोगों ने पुरानी जीवन शैली व रहन-सहन को तेजी से अपनाना शुरू कर दिया। अब तो यह भी सामने आने लगा है कि वहां ऐसे परिवार बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं, जिनके पीढ़ियों से आपसी संबंध अटूट रहे हों। लोग उनसे जुड़ने, उनसे संबंध बनाने में गौरव महसूस करने लगे हैं।उसके उलट, उनकी हर बात का अनुसरण कर अपने को आधुनिक और प्रगतिशील दिखाने की चेष्टा करने वाले हम, जिनका सदियों से संयुक्त परिवारों में रहने का चलन रहा है, इतिहास रहा है, आज अपनी छांवनी अलग डाल, खुद को स्वतंत्र मान-दिखा अत्याधुनिक होने का भ्रम पाले बैठे हैं।
हमारी इस मनोवृत्ति की आंच को हवा दे, अपनी रोटी सेकने में बाजार भी पीछे नहीं रह रहा ! आए दिन ऐसे विज्ञापन परदे पर दिखाई देते रहते हैं जो ढके-छिपे, द्विअर्थी शब्दों के जाल फैला, एकल परिवार की वकालत करने से बाज नहीं आते ! जितना लोग अलग और अकेले रहेंगे, उतनी ही इनकी खपत बढ़ेगी ! इन पर ध्यान और लगाम कसना जरुरी है ! पर हमारा चलन है कि जब तक पानी सर से ऊपर नहीं हो जाता तब तक हम और हमारी सरकार नशे में गाफिल ही रहते हैं। कुछ दिनों पहले एक बैंक भी ऐसा ही कुछ एकल परिवार के फायदों के बारे में समझा रहा था ! आजकल एक बाहरी कंपनी Disney+hotstar का विज्ञापन आ रहा है। जिसमें पता नहीं किस मध्यम वर्गीय परिवार की अजीबोगरीब तस्वीर दिखा कर युवाओं को अपने परिवार से विमुख होने को उकसाया जा रहा है ! #सरकार_तक_बात_पहुंचाने_की_कोशिश_के_बावजूद_धड़ल्ले_से_यह_विज्ञापन_प्रसारित_हो_रहा_है।
विडंबना ही तो है कि दुनिया में परिवार एकजुट होने की ओर तत्पर हैं और हम टूटन में अच्छाई खोज रहे हैं !
@संदर्भ, दैनिक भास्कर
6 टिप्पणियां:
बेहतरीन..
कुछ तो सीख मिली..
सादर नमन..
बिल्कुल सही..!
बहुत सुन्दर और उपयोगी।
हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
यशोदा जी
सीख तो किसी से भी ली जा सकती है
शिवम जी
हार्दिक आभार
शास्त्री जी
बहुत-बहुत आभार
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