आजकल किसी भी समारोह, सम्मान, उपाधि आदि को सदी से जोड़ देने का चलन चल पड़ा है ! सदी का यह, सदी का वह, इत्यादि, इत्यादि ! सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा आयोजन करने वालों को उस विधा विशेष के सौ सालों के दिग्गजों के बारे में पूरी जानकारी होती भी है ? क्या जिन्हें सम्मानित किया जा रहा है वे पिछले सौ वर्ष में उस विधा के महापुरुषों के पासंग भी हैं ? पिछले लोगों की समाज के प्रति निष्ठा, देश के प्रति समर्पण, अवाम से लगाव व प्रेम जैसा कुछ, आज उपाधि लेने को अग्रसर होते व्यक्ति में भी है ? उनकी और इनकी उपलब्धियों की कोई तुलना की गई है ? ऐसा क्यूँ है कि दशकों बाद भी वे लोग लोगों के जेहन में जीवित हैं, जबकि आज इन उपलब्धियों से नवाजे जाने वालों को, कुछेक को छोड़, उनके शहर से बाहर भी कोई नहीं जानता ! शायद यही कारण है कि अधिकांश सम्मान समारोह विवादित रहते हैं और अधिकांश अलंकरणों का पहले जैसा मान नहीं रह गया है ! और लेने वाले भी अपने कप-बोर्ड पर एक और शो पीस टांग देते हैं बिना उसके साथ आई जिम्मेदारी को महसूसने के .............................................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
रजतपट पर अदाकारी दिखाने वाले कलाकारों का दबदबा समाज पर सदा से ही रहा है। पर्दे पर बुराई, अन्याय, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ने वाले, असत्य पर सत्य को विजय दिलाने वाले इनके किरदार अपार लोकप्रियता हासिल कर इन्हें असल जीवन में भी अवाम का नायक बना देते हैं। भले ही अपने निजी जीवन में वे अपने निभाए हुए किरदारों के बिल्कुल विपरीत ही क्यों न हों ! मध्यम-निम्न-सर्वहारा वर्ग के लोग, जो व्यवस्था से, समाज के सशक्त वर्ग से या भ्रष्टाचारी संतरी-मंत्री के जुल्मों का शिकार होते हैं और निर्बल होने के कारण उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाते, ऐसे लोग जब पर्दे पर अपने जैसे एक आम इंसान को उनको दंड देते, प्रताड़ित करते या अपना हक़ छींन कर लेते देखते हैं तो उस किरदार को निभाने वाले शख्स को सर-माथे पर बैठा लेते हैं ! उसमें अपनी छवि देखने लगते हैं ! उससे खुद को इस हद तक जोड़ लेते हैं कि उसे भगवान तक का दर्जा दे देते हैं। इसी लिए कभी सुदूर किसी दूसरे देश में भी यदि इनके नायक के साथ कानूनन भी कोई कार्यवाही हो जाए तो उसके चाहने वाले देश में हंगामा बरपा देते हैं।
पर्दे पर के नायकों का प्रभाव लोगों पर इतना गहरा होता है कि इनकी हर बात को ब्रह्मवाक्य मान उस पर विश्वास कर लिया जाता है। जनता की इसी कमजोरी का लाभ उठा, विज्ञापनदाता अपने उत्पादों के प्रचार के लिए इनका "उपयोग'' करते आ रहे हैं। इस श्रेणी में अपवाद स्वरुप दो-चार लोग, अलग क्षेत्र से जरूर शामिल हैं, पर वे सब दूसरी पायदान पर ही बने रह पाए हैं। सोच कर देखिए कि यदि कोई प्रभावशाली धर्मगुरु या कोई नेता या उद्योगपति किसी चीज की सिफारिश करे तो क्या लोग उनकी बात मान उस ओर उतना आकर्षित होंगें जितना किसी दूसरे या तीसरे दर्जे के अभिनेता या अभिनेत्री के कहने से हो जाएंगे ! कभी नहीं !
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एक चलन और ध्यान देने लायक है ! यह किसी व्यक्ति विशेष पर निशाना साधने या किसी को कमतर आंकने की कोशिश नहीं है। पर देखने में आया है कि किसी भी समारोह, पुरूस्कार, उपाधि, उपलब्धि को सदी से जोड़ दिया जाने लगा है ! सदी के कलाकार ! सदी के व्यंगकार ! सदी के महानायक ! सदी का भव्य आयोजन सदी का यह, सदी का वह, इत्यादि, इत्यादि
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पर विडंबना क्या है ? वही भगवान बने बैठे लोग, कुछेक को छोड़, उन करोड़ों लोगों, जिन्होंने उन्हें सर माथे पर बैठाया, जिनकी बदौलत उन्हें नाम-दाम-यश-शोहरत-सम्मान मिला, उनकी ही कभी फ़िक्र नहीं करते ! उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपनी और अपने परिवार की ''सेहत'' की चिंता रहती है। अवाम से जुडी या समाज को प्रभावित करने वाली बात पर ये लोग चुप्पी साध लेते हैं ! कौन पचड़े में पड़े ! कौन खतरा मोल ले ! पता नहीं, कोई बात क्या बिगाड़ कर रख दे ! कल बातों ही बातों में कुछ ऊक-चूक हो जाए तो काम-धंधा ही ठप्प ना पड़ जाए ! और ये वे लोग हैं जो पैसा मिलने पर बेझिझक किसी के शादी-ब्याह में नाचने या किसी गलत और बेतुकी चीज का ब्रांड एम्बेस्डर बनने में पीछे नहीं रहते ! यह बात सही है कि देश के हर नागरिक की तरह इन्हें अपनी मर्जी का काम करने का अधिकार है ! पर शिखर पर पहुंचते ही कुछ जिम्मेदारियां खुद ब खुद झोली में आ गिरती हैं ! प्रशंसकों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं ! देश-समाज इनकी तरफ देखने लगता है ! तब आप का जीवन सिर्फ आपका नहीं रह जाता ! पर रील की जिंदगी के ये हीरो रियल जिंदगी में जीरो ही साबित होते हैं ! हमारे ये तथाकथित नायक सब कुछ अनदेखा-अनसुना कर निरपेक्ष भाव से आँखें मूंदे पड़े रहते हैं। इस बात में हमारे दक्षिणी भारतीय अदाकार अपने कर्त्वयों और समाज की जिम्मेदारी के प्रति फिर भी कुछ जागरूक हैं।
अभी ताजा हालातों पर ही गौर किया जाए तो यही पाया जाएगा की शीर्ष पर बैठे, अवाम के तथाकथिक ''आदर्श'' अपने मुंह पर टेप लगाए रहे, किसी ने चूँ तक नहीं की ! दो-चार थकी-दबी ध्वनियां उठीं भी, तो ऐसे लोगों की जो इस सुअवसर को ख़बरों में आने का मौका मान चौका लगाना नहीं चूके ! ऐसे लोगों का बोलना जनता को नहीं बल्कि अपने क्षेत्र के दिग्गजों को सुना, अपने अस्तित्व का भान कराना था। हाशिए पर बैठे ऐसे लोग क्या और उनकी बातों का वजन क्या ! सब मौकापरस्ती और अवसरवादिता का खेल ! शायद कोई छींका टूट ही जाए।
इधर एक चलन और ध्यान देने लायक है ! यह किसी व्यक्ति विशेष पर निशाना साधने या किसी को कमतर आंकने की कोशिश नहीं है। पर देखने में आया है कि किसी भी समारोह, पुरूस्कार, उपाधि, उपलब्धि को मशहूर करने के लिए उसे सदी से जोड़ दिया जाने लगा है ! सदी के कलाकार ! सदी के व्यंगकार ! सदी के महानायक ! सदी का भव्य आयोजन सदी का यह, सदी का वह, इत्यादि, इत्यादि ! सदी यानी सौ वर्ष !!
सवाल यह उठता है कि ऐसा आयोजन करने वालों को उस विधा के सौ सालों के दिग्गजों के बारे में पूरी जानकारी होती भी है क्या ? क्या जिन्हें सम्मानित किया जा रहा है वे पिछले सौ वर्ष में उस विधा के महापुरुषों के पासंग भी हैं ? पिछले लोगों की समाज के प्रति निष्ठा, देश के प्रति समर्पण, अवाम से लगाव व प्रेम जैसा कुछ, आज उपाधि लेने को अग्रसर होते व्यक्ति में भी है ? उनकी और इनकी उपलब्धियों की कोई तुलना की गई है ? ऐसा क्यूँ है कि दशकों बाद भी वे लोग लोगों के जेहन में हैं, जबकि आज इन उपलब्धियों से नवाजे जाने वालों को, कुछेक को छोड़, उनके शहर से बाहर भी कोई नहीं जानता ! शायद यही कारण है कि अधिकांश सम्मान समारोह विवादित रहते हैं और अधिकांश अलंकरणों का पहले जैसा मान नहीं रह गया है ! और लेने वाले भी अपने कप-बोर्ड पर एक और शो पीस टांग देते हैं बिना उसके साथ आई जिम्मेदारी को महसूसने के !
26 टिप्पणियां:
सुन्दर और विचारणीय लेख ...
शानदार लेख..!
ऋषभ जी
अनेकानेक धन्यवाद
शिवम जी
अनेकानेक धन्यवाद
सटिक व सुन्दर
सुशील जी
सदा स्वागत है
कडवी सच्चाई
चमकते चेहरों के पीछे का सच
चेतन जी
सही कहा आपने
कदम जी
यही तो विडंबना है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक थन्यवाद
विचारणीय तथ्यों पर प्रभावशाली लेख ।
आभार, मीना जी
सर आप ने सच्चाई को आइने की तरह उतार दिया है, बहुत बढ़िया ।, आदरणीय शुभकामनाएँ
मननीय ।
यथार्थ का दर्शन करता लेख
मधुलिका जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है, आपका
अमृता जी
आपका सदा स्वागत है
@hindiguru
यूं ही स्नेह बना रहे
"अधिकांश सम्मान समारोह विवादित रहते हैं और अधिकांश अलंकरणों का पहले जैसा मान नहीं रह गया है ! और लेने वाले भी अपने कप-बोर्ड पर एक और शो पीस टांग देते हैं बिना उसके साथ आई जिम्मेदारी को महसूसने के "
बिलकुल सही कहा आपने,चिन्तनपरक लेख,सादर नमन सर
कामिनी जी
हार्दिक आभार
नमस्कार शर्मा जी, निश्चित ही आपने सही लिखा कि ऐसा आयोजन करने वालों को उस विधा के सौ सालों के दिग्गजों के बारे में पूरी जानकारी होती भी है क्या ? क्या जिन्हें सम्मानित किया जा रहा है वे पिछले सौ वर्ष में उस विधा के महापुरुषों के पासंग भी हैं ? बहुत खूब
अलकनंदा जी
अनेकानेक धन्यवाद
बहुत सुन्दर ..विचारणीय लेख।
सुधा जी
आपका सदा स्वागत है
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