भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किया था । परंतु सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुए इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता राजी नहीं हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का अधिपति बन, इसका भार वहन कर इसे सुचारु रूप दें।भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि अपना एक नाम पुरुषोत्तम भी इसे दे दिया ! इस तरह यह मासिक समय पुरुषोत्तम मास भी कहलाया जाने लगा.........!
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अपने जीवन, कार्यकलाप, गणना, गतिविधि, प्रबंधन को सुचारु रूप से संचालित, प्रमाणिक व व्यवस्थित करने के लिए इंसान ने समय की कल्पना की, जिसकी ना कोई शुरुआत थी और ना ही कोई अंत ! जो सिर्फ आगे की ओर चलता है कभी भी पीछे की ओर नहीं लौटता ! मानव ने उसे अमली जामा पहनाया तो जरूर ! परंतु अस्तित्व में आने के बाद लाख कोशिशों के बावजूद वह किसी के हाथ नहीं आया ! कोई किसी भी तरह उसे बांध नहीं पाया। इसीलिए पूरे संसार में उसकी गति संबंधी गणनाओं में फेर-बदल करने पड़ते रहते हैं ! जिनका परिणाम कभी लीप ईयर के रूप में सामने आता है तो कभी अधिकमास के रूप में, जिसे पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अनोखा संयोग ही है कि ये दोनों गणनाएं एक साथ इसी साल, यानी 2020 में हो रही हैं। ऐसा संयोग 160 साल के बाद बन पाया हैै।
यूरोपीय कैलंडर के अनुसार, लीप ईयर उस वर्ष को कहते हैं, जिसमें साल का फरवरी महीना 28 के बजाय 29 दिन का होता है। इसलिए लीप वर्ष में 365 दिनों की जगह 366 दिन का एक वर्ष होता है। लीप ईयर का दिन चार साल में एक बार आता है। क्योंकि पृथ्वी को सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने के लिए 365 दिन 6 घंटे 48 मिनट 45.51 सेकेंड का समय लगता है। अब इसमें 365 दिन के अतिरिक्त लगने वाला समय प्रत्येक चौथे साल में लगभग एक दिन के बराबर हो जाता है। इस बढ़े हुए दिन को हर चौथे साल के फरवरी माह में जोड़ दिया जाता है जिससे उस साल की फरवरी 29 दिनों की हो गणना तकरीबन ठीक कर देती है।
सूर्य जब बृहस्पति की राशि मे प्रवेश करते हैं तो दोनों ग्रहों के आपसी प्रभाव से दोनों ही कुछ निस्तेज हो जाते हैं ! दोनों ग्रहों का बल व प्रभाव कम हो जाता है। दोनों की दशा कुछ मलिन हो जाती है ! इसके अलावा वर्ष का समय भी अतिरिक्त हो जाता है, इसीलिए यह माह खर या मल मास भी कहलाता है।
अधिकमास को भगवान विष्णु के नाम पुरुषोत्तम मास के रूप में भी जाना जाता है। जिसके बारे में पुराणों में एक कथा का विवरण मिलता है। जिसके अनुसार भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। परंतु सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुए इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता राजी नहीं हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का अधिपति बन, इसका भार वहां कर इसे सुचारु रूप दें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि अपना एक नाम पुरुषोत्तम भी इसे दे दिया ! इस तरह यह मासिक समय पुरुषोत्तम मास भी कहलाया जाने लगा।
15 टिप्पणियां:
सुन्दर जानकारी।
बहुत-बहुत आभार, सुशील जी
अनोखी व कम ज्ञात जानकारी! आभार
कदम जी
हमारी शिक्षा व्यवस्था ही ऐसी रही है जो सिर्फ विदेशी उपलब्धियों का गुणगान करती रही है। अपने विज्ञान को हेय ही समझाया गया है
बहुत सार्थक और सटीक जानकारी
वाकई अधिक मास के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं
सादर
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०९-२०२०) को 'अच्छा आदम' (चर्चा अंक-३८२९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
खरे जी
हार्दिक आभार
अनीता जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
बहुत अच्छी जानकारी । ज्ञानवर्धक लेख।
मीना जी
अनेकानेक धन्यवाद
@hindiguru
अनेकानेक धन्यवाद
सुन्दर एवं रोचक जानकारी।
सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद
बहुत सुन्दर और जानकारीपरक आलेख।
आभार, शास्त्री जी
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