गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

समय रहते चेत जाओ नहीं तो चेतने के लिए भी समय नहीं मिलेगा

प्रकृति का प्रकोप या अनहोनी अचानक ही नहीं घटित हो जाती। बहुत पहले से वह अपने अच्छे-बुरे बदलाव का आभास देने लग जाती है। ऐसे ही एक बदलाव की पदचाप दूर से आती महसूस होने लगी है।

भ्रष्टाचार, तानाशाही, मंहगाई की मार से दूभर होती जिंदगी से देश का नागरिक त्रस्त है। अपने सामने गलत लोगों को गलत तरीके से धनाढ्य होते और उस धनबल से हर क्षेत्र में अपनी मनमानी करते और इधर खुद और अपने परिवार की जिंदगी दिन प्रति दिन दुश्वार होते देख अब एक आक्रोश उसके दिलो-दिमाग में जगह बनाता जा रहा है। यदि इसका कहीं विस्फोट हो गया तो ऐसे भ्रष्ट धनकुबेरों का क्या हश्र होगा तथा उनके संरक्षक किस बिल को ढूंढेंगे अपना अस्तित्व बचाने के लिए इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

एक पुरानी कहानी है। एक मठ में कुछ संत रहते हुए ध्यान-पूजन किया करते थे। बाकी तो सब ठीक था पर एक चूहा उन सब को बहुत परेशान किए रहता था। जितने संभव उपाय थे वह सब किए जा चुके थे पर वह इतना निड़र और उद्दंड था कि किसी के भी काबू नहीं आता था। दिन प्रति दिन उसका उत्पात बढता ही जा रहा था। एक दिन उसी मठ में एक संत आए। बातों ही बातों में उन्हें उस आतातायी चूहे के बारे में भी पता चला। सारी बातें जानने के बाद उन्होंने कहा कि उस चूहे को स्वर्णबल प्राप्त है। उसका बिल खोदा जाए। जब चूहे का बिल खोदा गया तो वहां स्वर्ण का भंडार मिला। जिसे जनहितार्थ खर्च कर दिया गया। उस दिन के बाद से वह चूहा, चूहा बन कर ही रह गया।

ऐसे ही हमारे तथाकथित जनसेवकों का अकूत धन विदेशों की दिवारों में दफन है। पर उसके बल पर यहां 'ये' तो ये इनके लगे-बधें भी ओछी हरकतें करने से बाज नहीं आते। इन्हें किसी भी तरह का ड़र नहीं व्यापता चाहे वह पुलिस हो या न्यायालय। पर अब इन कुछ मुट्ठी भर अमीर लोगों के गरीब देश के निरीह वाशिंदों का दिलो-दिमाग अब और ना सह पाने के कारण आक्रोशित होने लगा है।

यह भी प्रकृति के उसी बदलाव के आगमन का सूचक है, जो आभास दे रहा है कि समय रहते चेत जाओ नहीं तो चेतने के लिए भी समय नहीं मिलेगा।

11 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सन्‌ २०१२ दूर नहीं है शर्मा जी :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

अब वो दिन दुर नही जी... इन कमीनो को कोई बिल भी नही मिलेगा जिस दिन जनता जाग गई

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

.

आपने आगाह तो समय रहते कर दिया. लेकिन अब मैं सोच रहा हूँ कि क्या ब्लोगरों में कोई इस तरह का जनसेवक होगा क्या?

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पिछली पोस्ट पर आपने मुझे शब्द ज्ञान दिया, उसके लिये मैं आपका ऋणी हुआ.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आप भी प्रतुल जी !
यह ऋण-वृण क्या होता है
ऐसे भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग ना करें। आपसी स्नेह बना रहना चाहिए।

anshumala ने कहा…

जिन्हें इन चूहों को मरना है यदि वही इन्हें पालने लगे तो इनसे कैसे मुक्ति मिलेगी तब तो ये और बड़े शेर बन जायेंगे |

दिवाकर मणि ने कहा…

अजी आप भी कहां की हांकने लगे!! काहे का दिवास्वप्न देख रहे हैं और दिखा रहे हैं? चेतने के लिए हम नहीं बने जी...

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

G.N.SHAW ने कहा…

CHUHA GANPATI JI KI SWARI HAI, AKHIR USE MARE KAUN ?BAHUT ACHHA PRASTUTI.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

समय रहते चेत जाओ नहीं तो चेतने के लिए भी समय नहीं मिलेगा।...

-सही कहा आपने। विचारणीय है।
यदि मुंबइया में कहूं तो-‘पर्यावरण की वाट लगा दी है इन नेताओं ने।’

Dr Varsha Singh ने कहा…

पर्यावरण जैसे ज़रूरी विषय पर आपका सार्थक लेखन
.......
साधुवाद एवं शुभकामनाओं सहित .

संतोष पाण्डेय ने कहा…

सार्थक लेखन.शुभकामना.

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