जब इतने बड़े देश का मुखिया दीन-हीन बन कर ऐसी भाषा का प्रयोग करे जिसमें पूरी तरह हताशा, निराशा और कमजोरी झलकती हो तो देश की जनता कितनी निराश होगी कोई भी सोच सकता है।
देश का सबसे ताकतवर इंसान यह कहता है कि गठबंधन में समझौते करने पड़ते हैं, पर यह कैसा समझौता है कि आओ हमारी पार्टी की सरकार बनवाओ और इसके बदले में देश को लूट कर खा जाओ। यदि गठबंधन टूटने पर सरकार गिरने का ड़र आपको सालता है तो सामने वाले सौदेबाजों को भी तो मालुम है कि ऐसा होने पर वे कहीं के नहीं रहेंगे। बात तो तब होती जब आप उनके आगे झुकने से बेहतर उन्हें धमकी देते कि मैं किसी भी हालत में नाजायज मांगें स्वीकार नहीं करूंगा चाहे इसके लिए कोई भी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े। इस पर यदि बात नहीं बनती तो फिर जनता के सामने सारी हकीकत रख फिर जनादेश के लिए चुनाव करवाना देश पर उतना भारी नहीं पड़ता जितना एक निरंकुश इंसान ने अकेले हड़प लिया। इस पर सारे देश के सामने आपकी छवि और निखर कर सामने आती।
भले ही ईमानदारी से गलती मान कर अपना पक्ष सही ठहराने की आपके द्वारा कोशिश की गयी हो पर यह सब बातें किसी के गले नहीं उतरी है। आपके सामने भ्रष्टाचार का नंगा नाच होता रहा और उसके कारण को जानते हुए भी मूक दर्शक बने रहना और फिर कहना कि मैं मजबूर था। सामने वाले ने आपको समझा दिया कि सब नियमानुसार हो रहा है और आपका आंख मूंद कर बैठ जाना। अरबों की हेरा-फेरी हो रही हो और अर्थशास्त्री होने पर भी भनक ना लगना। कोई कैसे विश्वास कर पाएगा इन बातों पर। फिर अब सारा दोष दूसरों पर मढना। गठबंधन की मजबूरियां गिनाना। अब आप ही बताएं कि यदि आप ही मजबूर और लाचार हैं तो ताकतवर और सक्षम कौन है?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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7 टिप्पणियां:
बढ़िया आलेख.. गठबंधन सरकारें और देश में भी हैं लेकिन इतने मजबूर वहां तो नहीं! मज़बूरी के बहाने ऐसे ही बयानबाजी चलती रहेगी.. ..देश की जनता यूँ ही जाने कब तक सोती रहेगी!!.
अंजामे गुलिस्तां क्या होगा हर शाख़ पे उल्लू बैठा है!
हे राम केसे केसे नमूने भरे हे दुनिया मे.....
कभी बेचारों सी भाषा
कभी नीतिज्ञों की तरह जनता के सामने बहाने बनाना
जैसे कुर्सी पर बैठाकर कंधे दबा रखे हैं कि उठने नहीं देंगें।
प्रणाम
janata lachar aur raja beparwah waali hakikat hai aur kuchh nahi.
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'गठबंधन' का मतलब मनमोहन और उनकी गोपियों ने सोचा होगा कि अपनी-अपनी 'गाँठ में धन बाँधकर' निकलते चलो.
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गठ = गाँठ = पॉकेट
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एक से बढकर एक नगीने हैं.
रामराम
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