13 मे 1931 को इंड़ियाना मे एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम था उसका जेम्स वारेन 'जिम' जोंस। उस समय किसे पता था कि '13' तारीख को जन्मने वाला यह बच्चा बड़ा हो कर दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार का प्रणेता बनेगा। बड़े हो कर 1950 में वह कैलिफोर्निया में जाकर जिंदगी की जद्दोजहद में शामिल हुआ पर उसकी पहचान बनी जब उसने 1978 के मध्य में "प्युपिल-टेंपल" नामकी संस्था बनाई और उसका मुख्यालय सैन-फ्रैंसिस्को में स्थापित किया। और खुद उसका संस्थापक और लीड़र बना। वहां उसके हजारों अनुयायी बन गये। पता नहीं क्या खूबी थी उसके व्यक्तित्व में, क्या सम्मोहन था उसकी वाणी में कि कोई भी उसके कहने पर कुछ भी करने को तत्पर रहता था।
समय बीतता गया जोंस की ख्याति, दीन-दुखियों के मसीहा, दर्दमंदों के हमदर्द, अश्वेतों के रहबर और समाजवादी धारा के नायक के रूप में चारों ओर फैल गयी। लोग उसके विचार सुनने के लिए पागल हुए रहते थे। व्यक्ति पूजा का वह एक अद्वितीय उदाहरण बन गया था। उसने लोगों पर तरह-तरह के प्रयोग करने शुरु कर दिए थे।
नवम्बर 1978, उन दिनों वह अपने अनुयायीयों के मन से मौत का ड़र मिटाने का प्रयोग कर रहा था। इसके लिए वह उन्हें मीठा शरबत जहर के नाम पर पिलवाता रहा जिससे लोगों के मन से मौत का खौफ निकल जाए ।
17 नवम्बर की शाम को प्रवचन के बाद उसने सबको दूसरे दिन सुबह-सुबह मंदिर के प्रांगण में इकट्ठा होने का आदेश दिया। 18 नवम्बर की भोर बेला में सैंकड़ों स्त्री-पुरुष अपने बच्चों समेत अपने गुरु की वाणी सुनने घने जंगल में स्थित मंदिर के प्रांगण में आ जमा हुए। कुछ ही देर बाद जोंस वहां नमूदार हुआ और बगैर किसी भूमिका के उसने अपना फरमान सुना दिया "आज तुम सब को अपने दिलों से मौत का खौफ सदा के लिए मिटाने के वास्ते मरना होगा। यह मौत सम्मानजनक होगी। जितना मैं तुम्हें चाहता हूं यदि तुम भी मुझे उतना ही चाहते हो तो तुम्हें मेरा आदेश मानना पड़ेगा।"
भीड़ में ड़र की लहर दौड़ गयी। भय, आतंक, ड़र का साया साफ पसरा दिख रहा था। अधिकांश अपने गुरु का यह आदेश मामने को राजी नहीं थे। पूरा परिसर निस्तब्ध था। माओं ने अपने बच्चे कस कर अपनी छाती से चिपका लिए थे। तभी कहीं से किसी ने रोते हुए पूछा "पर हमारा कसूर क्या है? हमें क्यूं मरना है?"
कोई उत्तर नहीं दिया गया पर जोंस की मौत की तरह ठंडी आवाज गूंजी "शरबत ला कर पहले बच्चों को दिया जाए"।
मांएं चित्कार कर उठीं और अपने बच्चों को अपने में छिपाने की निष्फल कोशिश करने लगीं। इसे देख फिर आवाज आई "भलाई इसी में है कि खुद ही विष पी लो नहीं तो गोली के शिकार बना दिए जाओगे।"बात ना मानते देख पहरेदारों को इशारा हुआ और उन्होंने मांओं से जबरन बच्चों को छीन कर उनके मुंह में विष उड़ेल दिया। बाकियों के लिए भी कोई विकल्प नहीं था। कुछ ही देर में पूरा परिसर सैंकड़ों लाशों से पट गया। यहां तक कि पालतु पशु-पक्षियों को भी नहीं छोड़ा गया। अंत में रेवरेंड़ जोंस ने खुद को भी गोली मार ली।
इस दिन के पहले जो दुखियों का मसीहा, दर्दमंदों का हमदर्द, समाजवादी धारा का नायक और अश्वेतों का रहबर समझा जाता था। उस दिन के बाद से उसकी एक ही पहचान बची थी भगवान से शैतान।
गायना का यह सामूहिक नरसंहार दुनिया का सबसे बड़ा 'Murder Mass Suicide" माना जाता है।
इन अभागे लोगों के साथ वहीं से गुजर रहे पांच लोग भी अपनी उत्सुकता के कारण मारे गये थे। जबकि उनका इस पंथ से कोई लेना-देना नहीं था।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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7 टिप्पणियां:
लेख बहुत अच्छा है। विचारणीय है।
सही कहा कि "व्यक्ति पूजा घातक भी हो सकती है, सहमत हे आप से, धन्यवाद
उपयोगी आलेख!
बढ़िया लेख... अच्छी जानकारी मिली...
बहुत अच्छा लेख बाधाई
कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपनी एक नज़र डालें,
कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये.
व्यक्ति पूजा वास्तव में घातक होती है...कई उदाहरण मिल जायेंगे... अगर हम इन सच्ची घटनाओं से सिख नहीं लेंगे तो नुकसान उठाना पड सकता है.. किसी भी इन्सान में उसके कर्म से कुछ गुण अगर आ जाये तो वो अपने को भगवान समझने लगता है...जो एक मानसिक बीमारी है..और एक बीमार कथित भगवान शैतान कब बन जाए कोई नहीं कह सकता..
आपका आलेख उम्दा और सराहने योग है.
इतिहास का सबसे बड़ा सुसाईड कम मर्डर ज्यादा वाला केस था जी यह।
व्यक्ति पूजा में ही लोग पागल हो रहे हैं। उसका यही नतीजा होता है।
आभार
राम राम
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