किसी भी व्यक्ति के प्रति समाज के किसी भी वर्ग का अंधनुकरण या समर्पण घातक होता है। इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं जब धर्म गुरुओं या राज नेताओं ने खुद अपने को पुजवा कर अपनी शक्ति बढा उसका दुरपयोग किया है। भेड़ों की तरह अपने अनुयायियों को अपनी वाणी से सम्मोहित कर उसे काल्पनिक संसार का सपना दिखा, अपनी बात मनवाने को अपना अनुकरण करने को बाध्य कर दिया है। फिर वह अनुयायी इंसान नहीं रह जाता एक वस्तु बन जाता है जिसका उपयोग कर्ता सिर्फ अपने हित को साधने में करने लगता है। अपने पीछे खड़ी भीड़ की ताकत दिखा वह कर्ता लोगों पर, समाज पर और तो और देश पर भी हावी होने का दुस्साहस करने लगता है।
कभी लोग किसी को पूज कर भगवान बना देते हैं कभी कोई खुद को पुजवा कर भगवान बन बैठता है। स्थितियां दोनों ही भयावह होती हैं। पर हम भी क्या करें हमें घुट्टी में घोंट-घोंट कर पिलाया गया है कि अपना जीवन सार्थक करने के लिए किसी की शरण में जाओ। वही तुम्हें सही राह दिखाएगा। सुखी हो तो मोक्ष मिलेगा दुखी हो तो त्राण। अब असुरक्षा की भावना, भावी का ड़र, रोज की कशमकश से छुटकारा पाने को बेताब किसी न किसी की शरण में जा पहुंचता है। वह शरण धार्मिक भी हो सकती है और राजनीतिक भी। वहां के भंवर में जा फंसने के बाद उसका अस्तित्व धीरे-धीरे लोप कर दिया जता है, कर्ता की सम्मोहिनी सत्ता उस पर काबिज हो जाती है। कभी-कभी वहां से उकता कर निकलने की कोशिश भी करता है तो उस मकड़ी के जाले से उसकी मुक्ति नहीं हो पाती। उसके दिमाग पर ऐसा असर डाल दिया जाता है कि अपने गुरु पर कितने आरोप भी सिद्ध हो जाएं अनुयायी विश्वास नहीं करता। अभी हाल ही के दिनों में "चैनलाई स्वयंभू भगवानों" पर कितने ही आरोप प्रमाणित हुए पर भक्तों की आंखें कहां खुलीं।
अभी भी दुनिया में हताश-निराश लोगों की भगवान में आस्था है। वह उसकी शरण में जाता भी है परंतु तुरंत राहत ना मिल पाने की वजह से वह इन कलयुगी भगवानों के चक्कर में फंस जाता है जिन्होंने बड़े ही सुनियोजित तरीके से अपना जाल फैलवा रखा होता है। यह व्यक्ति पूजा धार्मिक लबादा ओढे रहती है। जिसकी आड़ में तमाम अधार्मिक कर्म प्रशय पाते हैं।
व्यक्ति पूजा के दुसरे केंद्र राजनीतिक खेमे में चरण वंदना से खेल शुरु करवाया जाता है। चरण स्पर्श, चाटुकारिता, स्तुति-गान कुछ ऐसी सीढियां हैं जिन पर अपने कुछ खास चहेतों को चढवा कर किसी दुर्लभ जगह काबिज करवा अन्य नये-पुराने पिछ्लगुओं पर अपनी धाक जमा अपने आप को जनता का भाग्य विधाता रोपित करने में कामयाबी हासिल कर लेते हैं । फिर शुरु होती है बाकियों में भी कुछ हासिल करने के लिए उस व्यक्ति विशेष की चापलूसी, जो कभी चप्पल उठा पीछे दौड़ने के रूप में सामने आती है तो कभी जूतों पर का कीचड़ साफ करके, या फिर अपने आका को खुश करने के लिए किसी की बेज्जती कर के। इन रीढ विहीनों का एक ही मकसद होता है कि वह व्यक्ति विशेष किसी भी तरह अपनी नजरें इनायत इन पर कर दे।
यह व्यक्ति पूजा शायद मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही उसके दिमाग में रोपित हो गयी है। इसके लिए किसी देश, धर्म या पंथ की सीमा नहीं है। वह व्यक्ति सिकंदर भी हो सकता है, बाबर भी, हिटलर भी, माओ भी गद्दाफी भी या हमारे "चैनलाई स्वयंभू भगवान" भी।
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* कल ऐसे ही एक गुरु की हिमाकत जिसने करीब हजार अनुयायिओं को एक ही समय में मौत का आलिंगन करने पर मजबूर कर दिया था।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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8 टिप्पणियां:
बहुत ही सशक्त लिखा आपने, शुभकामनाएं.
रामराम
बहुत सही लिखा है आपने मैं तो कभी कोई गुरु बनाने के मूड में ही नहीं हूँ,
अपना ब्लॉग मासिक रिपोर्ट
सहमत हे जी,
bahut sundar...
अज कल के गुरू तो केवल अपनी अपनी तस्वीरों की पूजा ही करवाते हैं भगवान का नाम तो उनके बाद ही आता है। अच्छी पोस्ट के लिये धन्यवाद।
आपने बहुत सार्थक पोस्ट लिखी है...... यह कैसी अंधश्रद्धा है ? आमजन को भी ऐसे लोगों को ईश्वर नहीं मान लेना चहिये.....सहमत
जयललिता के विषय में आपका क्या विचार है क्या यह आपके पोस्ट के दायरे में नहीं आती।
Satya vichar, parantu bahut afsos ki baat hai ki ye aaj ke bharat me jaroorat se jyada ho raha hai. Ye sab knowledge ki kami ke chalte hai.
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