एक बड़ी कंपनी की बस से चार-पांच युवक उतर कर एक बार में पीने को घुसे। उन्होंने जम कर पी। फिर वहीं एक लड़की से छेड़खानी शुरु कर दी। वहां बैठे एकमात्र बुजुर्ग ग्राहक ने हस्तक्षेप किया तो उसकी पिटाई की और उसे बाहर धकेल दिया।लड़की ने आकर बुजुर्ग को उठाया और पूछा ज्यादा चोट तो नहीं आई, कमबख्तों ने बहुत मारा है।कोई बात नहीं बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा जब उन्हें अपनी जेबें खाली मिलेंगी तो नानी याद आ जाएगी। कंपनी की बस देखते ही मुझे उनके मालदार होने का विश्वास हो गया था क्योंकि वह कंपनी आज की तारीख में ही वेतन बांटती है। लड़की मुस्करायी और बोली, ईश्वर को धन्यवाद है कि आपकी पिटाई और मेरी एक्टिंग बेकार नहीं गयी।
(बहुत पहले आई एक फिल्म "शान" में जानी वाकर और बिंदिया गोस्वामी के रोल भी इसी ब्राजील की लघु कथा से लिए गये थे शायद।)
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बार से नशे में धुत झुमते-झामते बाहर निकलते हुए श्रीमानजी ने द्वारपाल से पूछा 'आज तक तुम्हें ज्यादा से ज्यादा टिप कितनी मिली है'?
'सौ रुपये सर' उसने जवाब दिया।
'बस! ये लो दो सौ रुपये, वैसे किसने तुम्हें सौ रुपये दिए थे?'
'कल आपने ही सर'
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
हा हा! मजेदार.
शान फ़िल्म का सीन अच्छा याद दिलाया आपने. हुबहू यही था और शायद यहीं से मारा गया होगा. इस लघु कथा में गजब का सस्पेंस है.
रामराम.
मस्त जी बहुत सुंदर
mast rachnayein hai
बहुत बढ़िया!
anokh aur bilkul kuchh alag sa hi...dhanyabad..
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