देवराज इंद्र इस गलत परंपरा से बहुत क्रोधित थे सो इसके निवारण हेतु उन्होंने सत्यव्रत को फिर नीचे की ओर ढकेल दिया। अब ऋषी के तपोबल और देव प्रकोप के कारण सत्यव्रत कहीं का ना रहा।
सत्ता और धन आज से नहीं हजारों-हजार साल से मनुष्य के दिमाग को विकृत करते आए हैं। फिर उस असंतुलित दिमाग ने अपने स्वामी को अहम से भर सनकी बना अजीबोगरीब काम या फैसले करने पर मजबूर
किया है। ऐसा ही एक चरित्र है "त्रिशंकु"। जिसका असली नाम था सत्यव्रत। सूर्यवंशी राजा सत्यव्रत। उस पर प्रभू की असीम कृपा थी। यश चारों ओर फैला हुआ था। सब ठीक-ठाक था पर उसे कुछ अनोखा करने की इच्छा सदा बनी रहती थी। अचानक एक दिन उसके दिमाग में एक कीडा कुलबुलाया और एक सनक ने जन्म लिया कि मुझे सशरीर स्वर्ग जाना है। बस फिर क्या था इस प्रयोजन के लिए उसने विशेष यज्ञ की तैयारी कर अपने कुलगुरु ऋषी वसिष्ठ को यज्ञ का संचालन करने को कहा। पर वसिष्ठ ने इस प्रकृति विरुद्ध कार्य को करने से इंकार कर दिया। राजा पर तो सनक सवार थी उसने ऋषी वसिष्ठ के पुत्रों के पास जा उनसे इस कार्य को संपन्न करवाने को कहा। पर वे भी इस गलत परंपरा को डालने को किसी भी प्रकार राजी नहीं हुए। समझाने पर भी राजा ने उनकी बात नहीं मानी और उन्हें बुरा-भला कहने लगा जिससे ऋषी पुत्रों को क्रोध आ गया और उन्होंने उसे चांडाल बन जाने का श्राप दे डाला। उसी क्षण राजा की कांति मलिन हो गयी और वह श्रीहीन हो गया। पर उसने भी हठ नहीं छोड़ा और उसी अवस्था में वह ऋषी विश्वामित्र के पास गया और सारी बात बता अपना यज्ञ पूरा करने की प्रार्थना करने लगा। उसका हाल देख ऋषी द्रवित हो गये और उन्होंने यज्ञ संचालित करने की स्वीकृति दे दी। यज्ञ में शामिल होने के लिए सारे ब्राह्मणों को आमंत्रंण भेजा गया पर वसिष्ठ पुत्रों ने यह कह कर आने से इंकार कर दिया कि ब्राह्मण कुल के हो कर वे किसी चांडाल के यज्ञ में भाग नहीं ले सकते जब कि वह यज्ञ भी एक ब्राह्मण द्वारा संचालित ना हो कर एक क्षत्रीय द्वारा किया जा रहा हो। उनके इन कटु वचनों से क्रुद्ध हो कर विश्वामित्र ने उन्हें भस्म हो जाने और अगले जन्म में चांडाल योनि में जन्मने का श्राप दे डाला। फिर उन्होंने यज्ञ पूरा किया और अपने तपोबल से राजा सत्यव्रत को सदेह स्वर्ग भिजवा दिया।
उधर देवराज इंद्र इस गलत परंपरा से बहुत क्रोधित थे सो इसके निवारण हेतु उन्होंने सत्यव्रत को फिर नीचे की ओर ढकेल दिया। अब ऋषी के तपोबल और देव प्रकोप के कारण सत्यव्रत कहीं का ना रहा।
कहते हैं आज भी वह धरती और आकाश के बीच त्रिशंकु बन लटका हुआ है।
4 टिप्पणियां:
चलिए सत्यव्रत को तो सजा मिली पर उनका क्या जो अब इस धरती पर कई गलत प्रथा को चला रहे हैं?
sharma ji...aap ne bahut achchhi baat batayi...isase bahut kuchh sikhane ko milata hai...dhanyabad....
यह सब आज नेता के रुप मे विराजमान हे जी
उपयोगी कथा!
प्रेम दिवस की शुभकामनाएँ!
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