मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

बाहर वाले भी हमारी बेवकूफी पर हंसते होंगे

स्विस बैंक के एक प्रबन्धक ने भारत की अर्थ व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारत की जनता गरीब हो सकती है पर देश गरीब नहीं है। उसने आगे कहा कि वहां का इतना पैसा स्विस बैंकों में जमा है जिससे :-

# भारत सरकार 30 सालों तक बिना टैक्स का बजट पेश कर सकती है।

# 60 करोड़ नौकरियां वहां उपलब्ध करवा सकती है।

# दिल्ली से देश के हर गांव तक 4 लेन सड़क बनवा सकती है।

# बिजली की अनवरत सप्लाई की जा सकती है।

# वहां के हर नागरिक को साठ साल तक 2000 रुपये दे सकती है।

# ऐसे देश को किसी भी वर्ल्ड बैंक या कर्ज की कोई जरूरत नहीं पड़ सकती।

यह कहना था वर्ल्ड बैंक के एक जिम्मेदार अधिकारी का। जरा गंभीरता से सोचिये कि भ्रष्टता की यह कौन सी सीमा है। ऐसी कौन सी मजबूरी है सरकार पर या वह कौन सी ताकते हैं जिनके सामने किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही कुछ करने की और उस धन को वापस लाने की।

12 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

बिलकुल ठीक कहा आपने ....
शुभकामनायें !

ठाकुर पद्म सिंह ने कहा…

हद है भाई !!
ये जमाखोर इन पैसो का करेंगे क्या ... खाएँगे पिएंगे सोएँगे ... आखिर सब यहीं छूट जाना है... अगला चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ा जाना चाहिए और जनता की पहली मांग यही हो कि जो विदेशों मे जमा धन लाएगा गद्दी पर वही बैठेगा/....

भ्रष्टाचार शर्म नहीं फैशन बन गया है

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

ठीक कहा आपने ....
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

.

बस अंत हो जाये ... इस भ्रष्ट आचरण का.
इंतज़ार अप्रवासी ... लक्ष्मी आगमन का.
'कुछ अलग सा' रंग है ... आपके गगन का.
स्वर आ रहा है पर्स से ... शारदा के धन का.

...... आज शारदा के धन से ही गुजारा चल रहा है.
...... लक्ष्मी तो विदेश जाकर बैठ गयी.
...... कोमनवेल्थ काल में लक्ष्मी के उल्लुओं ने भरपूर कमाई की.

.

Anil Pusadkar ने कहा…

इसीलिये तो कहता हूं शर्माजी,अमीर धरती गरीब लोग।

संगीता पुरी ने कहा…

बाहरवालों के हंसने का भी हमारे नेताओं पर कोई असर नहीं !!

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

जानदार और शानदार प्रस्तुति हेतु आभार।
=====================
कृपया इस मुक्तक का रसास्वादन कीजिए।
==============================
नेता की अय्यारी ने॥
अफ़सर की मक्कारी ने॥
सदाचार को दिया है-
गोली भ्रष्टाचारी ने॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

क्या हम बाबर के आक्रमण से लडे थे... क्या हम अंग्रेज़ों की लूट से भिडे थे, ... तो फिर, अपने देशवासियों की लूट का दुख कैसा????????? :)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

मेरा भारत महान.

रामराम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप की बात से सहमत हे जी, यही कमीने अगले जन्म मे भिखारी ओर कोडी बन कर एक एक दाने को तरसेगे

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

एक का तो माल किसी दूसरे ने ही निकाल लिया और वह लिफ़्ट में ही मर गया।

वाणी गीत ने कहा…

आखिर सब यहीं छोट जाना है , ये नहीं मानते ...पूरी सात पीढ़ियों का इंतजाम है !

विशिष्ट पोस्ट

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में  ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...