शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

जादू-टोने से ग्रस्त हैं बहुतेरे देश

जादू-टोने का चलन हमारे ही देश में नहीं विश्व के बहुतेरे देशों में व्याप्त है। इसकी परंपरा दुनिया की प्राय: सभी आदिम जातियों में पायी जाती रही है। आज भी जहां-जहां ऐसी जातियों का अस्तित्व है वहां-वहां टोने-टोटके का भी वर्चस्व मिलता है।

अमेरिका में किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार ज्योतिष, भूत-प्रेत, आत्माओं, टोने-टोटके पर पुरुषों से ज्यादा महिलाएं विश्वास करती हैं।

इंग्लैंड़ में जादू-टोने की परंपरा अठारहवीं सदी तक बहुत प्रचलित रही। सरकार द्वारा कठोर कानूनी प्रतिबंध लगाये जाने के बावजूद इसे खत्म नहीं किया जा सका। सत्रहवीं सदी में यहां जादूगरनियों पर सर्वाधिक मुकदमे चलाये गये।

आज भी विश्व में हवाई द्वीप एक ऐसा देश है जहां टोने-टोटकों पर सर्वाधिक विश्वास किया जाता है। वहां लोगों का मानना है कि द्वीप पर सदा दुष्ट आत्माएं मंड़राती रहती हैं। यहां के पुलिस वाले भी अपने साथ हथियारों के अलावा "टी" नामक पेड़ की पत्तियों को नमक लगा कर रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे बुरी आत्माएं पास नहीं आतीं।

हमारे यहां सम्राट अशोक के समय में जादू-टोने का बहुत प्रचलन था। इसके बढते प्रभाव से अशोक चिंतित रहा करता था। उसने इसके विरुद्ध आदेश पारित किये तथा शिलालेखों पर भी खुदवाया कि यह सब बेकार की बातें हैं इन पर विश्वास ना किया जाये। पर प्रजा ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

मध्य युग मे भी जब राजपूत युद्ध में लड़ने जाते थे तो वे अपनी विजय के लिये तंत्र-मंत्र व जादू-टोने का भी सहारा लेते थे। इसके लिए वे विभिन्न तरह के कवच धारण किया करते थे। इनमें शिव कवच, देवी कवच, नारायण कवच तथा पंचमुखी हनुमान कवच प्रमुख थे।

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

जिस प्रकार अन्य कर्म काण्डों के प्रति आस्था है उसी प्रकार लोगों में जादू-टोने के प्रति भी आस्था है और वो जाने वाली नहीं........

आपका आलेख अनुपम है....बधाई !

समयचक्र ने कहा…

अंधविश्वास के चलते कुप्रथाओं को भी बढ़ावा मिलता है ....आधुनिक युग में नेट पर भी कुछ लोग टोने टुटके सिखा रहे हैं ओर लोग बाग़ सीख भी रहे हैं ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यही तो हमारी विशेषता है!
जो दुनिया में हमारी अलग पहचान दर्शाती है!

मनोज कुमार ने कहा…

एक तथ्यपरक आलेख, अच्छा लगा पढकर!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…


बेहतरीन लेखन के बधाई


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