विड़ंबना है या देश का दुर्भाग्य। ध्येय एक ही होने के बावजूद दसियों सालों से अयोध्या का विवाद क्यों है? जबकि हर पक्ष वहां पूजा, अर्चना ही करना चाहता है।
जिसकी पूजा करनी होती है वह श्रद्धेय होता है। उसके सामने झुकना पड़ता है। अपना बर्चस्व भूलाना पड़ता है।यहां लड़ाई है मालिक बनने की। अपने अहम की तुष्टी की। वही अहम जिसने विश्वविजयी, महा प्रतापी, ज्ञानवान, देवताओं के दर्प को भी चूर-चूर करने वाले रावण को भी नहीं छोड़ा था।
या फिर नजरों के सामने हैं - तिरुपति, वैष्णव देवी या शिरड़ीं ?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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7 टिप्पणियां:
विड़ंबना ही है...
यई तो.... !
सही चिन्तन !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत उम्दा विचार ...आभार
आज ब्लॉग "समयचक्र" हैकर का शिकार हो गया था ....हैकर से बचे अपने पास वार्ड बदल लें ....
हालत बहुत ज़्यादा ही खराब है...
============="हमारा हिन्दुस्तान"
"इस्लाम और कुरआन"
Simply Codes
Attitude | A Way To Success
सही है ..
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