मंगलवार, 28 सितंबर 2010

आस्कर रूपी छलावे के पीछे दौड़ते आमिर

बहुतों का मेरी इस सोच से इत्तफाक नहीं होगा। पर जितना ही आमिर जाहिर करते रहे हैं कि उन्हें पुरस्कारों से लगाव नहीं है उतना ही उनका झुकाव आस्कर की ओर नजर आने लगा है। जैसे वही एक लक्ष्य रह गया है उनके लिये। लगता है कि उनकी दिली तमन्ना है कि वे अपने प्रतिद्वदियों को दिखा दें कि क्या तुम और तुम्हारे "इंडियन एवार्ड" देखो मैं आस्कर ले कर आया हूं।
वैसे भी इस पुरस्कार की दौड़ में शामिल होते ही सुर्खियां बटुरने लगती हैं। यह साल में इक्का-दुक्का फिल्म करने वाले आमिर को खबरों में बनाये रखने के लिए संजीवनी सा काम भी करती रहती है। यह तो सच है कि आमिर की फिल्में अपने विरोधियों से सदा 21 ही रहती हैं भले ही कभी-कभी टिकट खिड़की पर उतना पैसा ना बटोर पाएं। पर इस बार जिस फिल्म पर उन्होंने आशा बांधी है वह पूरी होती नहीं लगती। 'पिपली लाइव' उस स्तर की फिल्म नहीं बन पाई है जो आस्कर को भारत ला सके। यदि इस फिल्म से आमिर का नाम हट जाए तो वह किस स्तर की रह जाती है ?

इस फिल्म को लेकर जो भी जो भी शोर-शराबा हुआ (36 गढ को छोड़ कर, यहां तो इससे भावनाएं जुड़ गयीं) यह जो भी रंग जमा सकी वह सिर्फ आमिर के नाम, दाम और प्रचार के कारण ही संभव हो पाया था। अब विदेश में भी पैसा और प्रचार आंधी-पानी की तरह बहेगा पर कोई सकारात्मक परिणाम निकलेगा इसमें................

काश आमिर "इकबाल" या "बम-बम भोले" जैसी फिल्मों से जुड़े होते।

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बिल्कुल सही!
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मगर बाज तो कोई भी नहीं आता!

anshumala ने कहा…

भारतीय अवार्ड के लिए आमिर का मानना है की वह निष्पक्ष नहीं होते है जब उनको गुलाम के लिए फिल्म फेयर अवार्ड न दे कर अनिल को बेटा के लिए दे दिया गया तो उनको लगा की ये पक्षपात है तभी से वे नाराज है | फिल्मो को ऑस्कर के लिए भेजने का प्रस्ताव एक कमेटी करती है चार बार आमिर से जुडी फिल्मो का चुना जाना ये दर्शाता है की वो दूसरो से बेहतर काम कर रहे है ना केवल ढंग की फिल्मो अभिनय कर रहे है बल्कि कुछ सार्थक फिल्मो का निर्माण भी कर रहे है | ऐसे समय में जब की सभी पूरी तरह से मशाला फिल्मे बना कर पैसे बना रहे है उनके बिच यदि वो कुछ अच्छी फिल्मो को बनाने में अपना सहयोग कर रहे है तो मुझे लगता है की ये अच्छी बात है साथ ही सार्थक फिल्मे बनाने वालो का भी उत्साह बढ़ता है | और हम जैसे दो चार साल में एक फिल्मे देखने वालो के लिए एक बेहतर फिल्म मिल जातिहै

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

पीपली लाइव तो बनायी गई है आस्कर को ध्यान रखकर . भारत की गरीबी आस्कर दिलाने मे आज तक काम आई है गांधी हो या स्लमडाग मिलेनियर

राज भाटिय़ा ने कहा…

देश की इज्जत के बदले.... लेना चाहते है ईनाम, घर मै हम केसे भी हो कभी भी पडोसियो को घर की बात नही बताते, अब आमिर को कोन समझाये?

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