आजकल फिल्मी दुनिया में इश्क भी एक जरिया या माध्यम हो गया है। अपनी सहूलियत, अपने मतलब, अपने फायदे के लिये इसका उपयोग होने लगा है। इश्क में से प्रेम की गहराई गायब हो गयी है। मौजूदा पीढी की वफादारी एक शुक्रवार से दूसरे शुक्रवार तक सीमित हो कर रह गयी है। सामाजिक या पारिवारिक मर्यादाओं का इस दुनिया में कोई स्थान नहीं रह गया है। हमारा लचर कानून भी इनके दरवाजे की दहलीज लांघने की हिम्मत नहीं कर पाता है। आज किसी विवाहित प्रेमी का बसा बसाया घर उजाड़ने में किसी अभिनेत्री को कोई परहेज, ड़र या गम नहीं होता। अब तो बात और भी आगे बढ गयी है "लीव इन रिलेशनशिप" तक।
ऐसा नहीं है कि प्रेम प्रसंग पहले नहीं होते थे। समझ लीजिए कि फिल्मों की शुरुआत के साथ-साथ ही इस रोग का भी जन्म हो गया था। पर उस समय यह मतलब पूरा करने का जरिया ना हो कर आपसी समझ थी, लगाव था, साथ-साथ रहने की ललक थी। बहुत पीछे ना जाते हुए आजादी के बाद के कुछ जाने-माने नामों का जिक्र करते हैं। जिनमें कुछ सफल रहे तो कुछ दुखांत।
जद्दन बाई और मोहन बाबू : जद्दन बाई सुप्रसिद्ध अभिनेत्री नर्गिस की मां थीं। वह अपने समय की मशहूर गायिका थीं। मोहन बाबू पंजाब से थे। दुनिया, धर्म, परिवारवालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर दोनों ने विवाह कर लिया था। जो सदा सुखमय रहा था।
किशोर शाहू तथा स्नेहप्रभा प्रधान : किशोर शाहू जाने माने अभिनेता (दम मारो दम, गाइड) तथा फिल्म निर्माता थे तथा स्नेहलता उनकी नायिका, दोनों ने प्रेम विवाह किया था जो सफल नहीं हो सका था। दोनों में तलाक हो गया था।
राज कपूर और नर्गिस : शादी-शुदा होने के बावजूद राज कपूर का नर्गिस के साथ लगाव जग जाहिर था। पर सामाजिक-पारिवारिक दवाब के कारण यह कोई और नाम धारण ना कर सका था।
शम्मी कपूर व गीता बाली : शम्मी कपूर शुरु से ही विद्रोही स्वभाव के रहे थे। हजार अड़चनों के बावजूद उन्होंने गीता बाली से विवाह रचा ड़ाला था। पर गीता बाली की कुछ समय बाद बिमारी से मृत्यु हो गयी थी।
देवानंद और सुरैया : शायद फिल्मी दुनिया की यह सबसे दुखद कहानी रही है। दोनों के लाख प्रयासों के बावजूद उनकी शादी नहीं हो सकी। देव ने तो बाद में शादी कर ली पर सुरैया जीवनपर्यंत कुवांरी ही रही।
दिलीप कुमार और मधुबाला : मधुबाला का प्रेम प्रसंग पहले प्रेमनाथ के साथ था। पर अपने दोस्त दिलीप कुमार के कारण प्रेम नाथ ने अपने पैर पीछे खींच लिए थे। पर फिर भी मधुबाला के घर वालों की वजह से दिलीप और उसका निकाह नहीं हो सका था।
नाम तो बहुत सारे हैं, रणधीर कपूर-बबीता, ऋषी कपूर-डिंपल, अमिताभ-रेखा, अक्षय-रविना, अभिषेक-करिश्मा, और और और, जो साथ साथ काम करते-करते एक दूसरे में अपना जीवन साथी खोजते रहे। जिसमे कुछ सफल रहे तो कुछ असफल । बहुतों ने लायक ना होते हुए भी अपनी प्रेमिकाओं के लिए ढेरों फिल्में गढ डालीं जैसे चेतन आनंद और प्रिया राजवंश या व्ही. शांताराम और संध्या। यह दुनिया ही अजूबा है जिसमें ऐसी बातें होती रही थीं, होती रही हैं और होती रहेंगी।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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4 टिप्पणियां:
राधे राधे....जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
अब तो प्रेम प्रसंग भी एक पब्लिसिटी स्टंट है :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन दिवस पर हार्दिक
शुभकामनाएँ!
प्रेम प्रसंग भी आज व्यापार हो गया है जी,
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