सोमवार, 20 सितंबर 2010

एक अनोखा संग्रहालय, शौचालयों का




दुनिया के हर देश मे तरह-तरह के संग्रहालय हैं। जिनमें कोशिश की गयी है अपने-अपने देश के इतिहास, विज्ञान, कला-संस्कृति को सहेज कर रखने की। पर कभी आपने किसी ऐसी चीज के म्यूजियम के बारे में सुना है जो जिंदगी तो क्या रोजमर्रा में काम आने वाली अहम वस्तु है। शायद सुना भी हो।
"शौचालयों का म्यूजियम।" जिसे अंजाम दिया है देश में इंसान को अपने सर पर ‘मैला’ ढोने के अभिशाप से मुक्ति दिलवाने के लिये “सुलभ शौचालयों” की श्रृंखला बनाने वाले डा विंधेश्वरी पाठक ने। अपने एन.जी.ओ. द्वारा।
बिहार से शुरुआत कर सारे देश में धीरे-धीरे स्वच्छता का विस्तार करने वाले पाठकजी के मन में एक ऐसा संग्रहालय बनाने की बात आई जिसमें इस अहम वस्तु के इतिहास और समय-समय पर हुए बदलाव के बारे में पूरी जानकारी हासिल हो। इस योजना को मूर्त रूप देने में इनको अपना अमूल्य समय और ऊर्जा खपानी पड़ी। उन्होंने देश विदेश में आधुनिक और पुरातन काल में काम मे आने वाले शौचालयों के बारे में छोटी से छोटी जानकारी हासिल की। इसके लिये वह जगह-जगह विशेषज्ञों, जानकारों के अलावा अलग-अलग देशों के दूतावासों, उच्चायुक्तों से मिले जिन्होंने उनकी पूरी सहायता कर उन्हें इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव, तकनिकी और शोध की विस्तृत जानकारी तथा फोटो वगैरह उपलब्ध करवाए। जो दिल्ली में "पालम-दाबड़ी मार्ग पर स्थित महावीर एन्कलेव" मे बने संग्रहालय में आम जनता के लिए उपलब्ध हैं। इस अजायबघर का उद्देश्य है, इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव और विकास की लोगों को जानकारी देना । जिससे इस क्षेत्र से सम्बंधित लोगों को अपनी वस्तुएं बनाने में उपयोगी जानकारी मिल सके। जिससे वातावरण को दुषित होने से बचाया जा सके और प्रकृति को स्वच्छ रखने मे मदद मिल सके।
इस जगह का उचित प्रचार नहीं हो पाया है। यही कारण है कि दुनिया के इस एकमात्र अजूबे को देश-विदेश की तो क्या ही कहें, अधिकाँश दिल्ली वासियों को भी इसकी खबर नहीं है।










9 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

विचार कक्ष पर आलेख वाह गज़ब

संगीता पुरी ने कहा…

शौचालयों का म्यूजियम .. बढिया समाचार !!

P.N. Subramanian ने कहा…

इस अनोखी जानकारी के लिए आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

एकदम नई जानकारी!

anshumala ने कहा…

इसके पहले इस तरह का एक संग्रहालय टीवी पर देखा था विदेशी था पर पता नहीं था की ये अपने देश में भी है देशी संग्रहालय ज्यादा सुन्दर और कलात्मक दिख रहा है | जानकारी देने के लिए धन्यवाद

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

लेकिन आज भी मैला सर पर ढो़या जा रहा है... धिक्कार है हम पर...

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर कुसुमाग्रज से एक परिचय, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें

ZEAL ने कहा…

जानकारी देने के लिए धन्यवाद ..

Abhay ने कहा…

are yah to mere pas hi hai. is sunday ko jarur jaugaa.

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