आजकल "देने के सुख का सप्ताह" यानि Joy of giving week चल या चलाया जा रहा है। जो याद दिला रहा है कि कुछ दान दक्षिणा करो भाई देखो कितना सुख मिलता है (किसे? खरीदना तो बाजार से ही है ना :-)) याद करो तुम्हारे पूर्वज कैसा-कैसा दान करते थे, देते-देते खुद नंगे-भिखमंगे हो जाते थे। बहुतों ने तो इस सुख के लिए अपनी जान तक गंवा दी थी। कयी रसातल में जा पहुंचे थे। बहुतों ने तो अपना परिवार तक गंवा दिया था। तुम भी सोचो मत दूसरों को कुछ तो दो।
इस समझाइश से थोड़ा जागरुक हो कर अपने चारों ओर नजर दौड़ाई तो पाया कि प्रकृति और भगवान जैसी दार्शनिकता को छोड़ भी दें तो भी कोई ना कोई कुछ ना कुछ तो दे ही रहा है। और बदले में खुश हो रहा है।
कुंठाई देने लेने को देखें तो नेता वर्षों से आश्वासन देता आरहा है और परिवार समेत खुश रहता है। कारोबारी प्रलोभन देता है और अपनी खुशी का इंतजाम करता है। छोटे व्यापारी तीन के बदले चार जैसा कुछ देते हैं, देने वाला जेब कटवा कर और लेने वाला दाम बना कर खुश हो जाते हैं।
पर कहीं-कहीं आपको सचमुच कुछ देकर भी खुश होने वाले लोग हैं। जिनसे आप रोज कुछ पाते हैं पर ध्यान नहीं देते। बुजुर्ग आशीर्वाद देते हैं जिससे आपको संबल मिलता है, मनोबल बना रहता है। पत्नी मुस्कान देती है, आपका हाथ बटाती है, घर-घर लगता है। भाई-बहन स्नेह देते हैं। बच्चे प्यार देते हैं। आपका जीवन सुखमय बना रहता है।
इतना सब मनन-चिंतन कर मैंने सोचा कि देखूं तो मैंने क्या दिया है दूसरों को? कुछ समझ नहीं आया, फिर थोड़ा ध्यान लगाया, याद किया सुबह से अपनी गतिविधियों को तो पाया कि सुबह से मैं भी बहुत कुछ देता आ रहा हूँ सभी को।
सबेरे मां पापा को बिना मिले, बताए निकल आया था, चिंता सौंप आया अब दिन भर फिक्र करेंगे कि गुमसुम सा गया है सब ठीक-ठाक हो।
महीने का अंत है, पर्स कहता है मुझे हाथ मत लगाओ, पत्नी परेशान थी कुछ जरूरी खरीदारी करनी थी, ड़पट दे कर आया था।
बच्चे तना चेहरा देख दुबके रहे भारीपन महसूसते तो होंगे ही।
दफ्तर आ कर दो-चार को हड़कान दी बेवजह तनाव बनाया।
काम जरूरी था। बास सोच रहा था शर्मा आएगा तो हो जाएगा। उसे भी टेंशन थमा दिया कि आज तो पूरा नहीं ही हो पाएगा।
लगा मुझे यह कैसा है मेरा देना? जो चारों ओर तनावयुक्त माहौल बनाता है। सभी को तो कुछ ना कुछ तो दिया ही पर कोई भी खुश नजर नही आता। यहां तक कि मैं खुद अजीब सा महसूस कर रहा हूं। सिर भारी हो गया है। धड़कनें तेज हो रही हैं। रक्त-चाप बढा हुआ लग रहा है। थकान हावी है। यह कैसा सुख है देने का?
सोचीए ध्यान से कहीं आप भी तो मेरी तरह ऐसा ही कुछ तो नहीं दे रहे दूसरों को ?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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3 टिप्पणियां:
विचारणीय पोस्ट!
अजी हम भी आप को इस सुंदर लेख के बदले टिपण्णी देने आये है ले लिजिये :)
अरे वाह !
सुख तो मिला।
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