मेहमानों की आवाजाही से हमारे यहां तो रौनक लगी रही। पहले तो गणपतजी पधारे, वैसे तो उनसे संपर्क बना रहता है पर उनका आना साल में एक बार ही हो पाता है। काफी व्यस्त रहते हैं। उनकी आवभगत में समय का पता ही नहीं चल पाया। उनके जाने के दूसरे दिन ही पितरों का आगमन हो गया, कल ही उनकी विदाई हुई और आज माँ के स्वागत का सौभाग्य प्राप्त हो गया। अपनी तो मौजां ही मौजां।
आज से नवरात्र पर्व शुरु हो रहे हैं। आप सब को भी माँ का ढ़ेरों- ढ़ेर प्यार और आशीष मिले। इन नौ दिनों में माँ के नौ स्वरुपों की पूजा होती है। आज पहला दिन है और आज माँ का "शैलपुत्री" के रूप में पूजन होता है। पर्वत राज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका यह नाम पड़ा। इनका वाहन वृषभ है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित रहता है। इनका विवाह भी भगवान शिवजी से ही हुआ। नव दुर्गाओं में प्रथम, माँ शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत मानी जाती हैं। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का शुभारंभ होता है
वन्दे वाच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010
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2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं
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