सोमवार, 4 अक्टूबर 2010

अब तो सिर्फ खेलों की सफलता की कामना है.

तमाम आरोपों, प्रत्यारोपों, शंकाओं के बावजूद कामनवेल्थ खेल समय पर शुरु हो गये। और क्या खूब शुरू हुए। इतना भव्य, सुंदर, दिल मोह लेने वाला नजारा बहुत कम देखने को मिलता है। दूरदर्शन पर प्रसारित सारे मंजर को लोग मंत्रमुग्ध हो देखते रहे। जिनमें मैं भी था।

अपने दिल की एक बात उजागर करता हूं। सोच कर हंसी भी आती है पर पूरे प्रसारण के दौरान यही प्रार्थना करता रहा कि प्रभू देश की लाज रखना। कहीं ऐसा ना हो कि यह 25 मीटर ऊपर टंगा गुब्बारा या उसमें टंगी कठपुतलियाँ नीचे आ गिरे। भगवान ने मेरी तो सुन ली पर कलमाड़ी की नहीं सुनी। लोगों ने उसके खड़े होते ही जो हूटींग करनी शुरु की उसका प्रभाव उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। लगता है लोगों को सुरक्षा बल द्वारा शांत करवाया गया होगा।

मैं उन सब कलाकारों को हार्दिक बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने अपने मनोबल को तरह-तरह की खबरों के बीच भी बनाए रखा और ऐसी प्रस्तुति दी कि दुनिया देखती रह गयी। नमन है उस रात को यादगार बनाने वाले सारे कलाकारों को।

अब आशाएं टिकी हैं अपने खिलाड़ियों पर जो देश का नाम रौशन करने के लिए उतावले हैं।

जय हिंद।

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"अब तो सिर्फ खेलों की सफलता की कामना है."
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हमको भी यही कामना है!

राज भाटिय़ा ने कहा…

शीला को शायद लोग भुल गये....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

एक भद्दी कहावत है - मेहनत करे मुर्गे साब अण्डे खाये मौलवी साब.... उन अनजान चेहरों ने कार्यक्र्म को सफल बनाया और श्रेय ले रहे है भ्रष्टाचारी :(

hashfamous ने कहा…

namashkar apka blog paheli bar padha bhaut accha laga asie likhte rahiye main vpas aaunga.

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