गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

इज्जत बचाने के लिए कुछ भी करेगा

हम में से अधिकांश लोगों का यह सोचना है कि आज के खिलाड़ियों को पिछले समय से ज्यादा धन प्राप्त होता है। इसका कारण भी है कि कुछ ही सालों पहले, अभी सोने की खन बने क्रिकेट को खेलने वाले खिलाड़ी सायकिलों पर खेलने आया जाया करते थे और दो-तीन सौ रुपयों के लिए अकड़ु क्लर्क के सामने खड़ा रहना पड़ता था। पर कैलिफोर्निया विश्विद्यालय के प्राध्यापक डा.डेविड यंग ने अपनी खोजों से जो बातें दुनिया के सामने रखी हैं वे हैरतगेंज हैं। डा.यंग बताते हैं कि ईसा से पहले प्राचीन ग्रीक औलंपिक में रोमन खिलाड़ी ढाई लाख पौंड सालाना के बराबर पैसा कमा लेते थे। उस समय एक जीत हासिल करने पर उन्हें ताउम्र दस हजार पौंड के बराबर पेंशन मिला करती थी। अच्छे खिलाड़ियों के लिए एक साल में पांच-सात जीत हासिल करना कोई बड़ी बात नहीं थी।
डा. यंग के अनुसार उस समय खेलने वालों को सिर्फ पैसा ही नहीं मिलता था बल्कि उन्हें आजीवन मुफ्त खाना, रहना तथा अन्य कीमती उपहार भी प्राप्त होते रहते थे।
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ऊपर बात थी अपनी मेहनत के बल पर कुछ प्राप्त करने की। अब देखीए ईर्ष्या के कारण चीजें इकट्ठी करने की लत।

किश्तों पर अपना सामान बेचने वाली एक फर्म ने बोस्टन की अदालत में मिसेज फोरमैन से अपना सामान वापस लेने के लिए मुकदमा दायर किया था। फर्म का कहना था कि मिसेज फोरमैन ने उनकी फर्म से वाशिंग मशीन, रेफ्रिजेटर, वैक्यूम क्लीनर, रंगीन टी.वी., हेयर ड्रायर जैसा सामान ले तो लिया पर उसकी एक भी किश्त नहीं चुकाई।
मजे की बात यह कि यह सारा बिजली का सामान लिया तो गया पर उनके घर पर बिजली का कनेक्शन ही नहीं था। जज ने हैरान हो पूछा कि जब आपके घर में बिजली नहीं थी तो आपने इतने सारे बिजली से चलने वाले उपकरण क्यों खरीदे?
इस पर मिसेज फोरमैन ने जवाब दिया, सर मेरी सारी पड़ोसनों के पास ऐसी सारी चीजें थीं जिनकी बातें सुन मुझे शर्म आती थी इसलिए मैने ये सारी चीजें ले लीं।
जज ने पूछा आपके पति ने आपको कभी मना नहीं किया इस बात के लिए?
जी कभी नहीं। उन्होंने भी तो इस फर्म से इलेक्ट्रिकल रेजर खरीदा है। मिसेज फोरमैन का जवाब था।


कैसी लगी यह हिमाकत बताईयेगा।

4 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

अच्छी लगी.

समय चक्र ने कहा…

दोनों पहलू बहुत बढियां लगे....आभार

anshumala ने कहा…

क्या कहा जाये इंसानी स्वभाव को

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जी, पहले खिलाडी देश के लिये खेलते थे, आज पेसो के लिये खेलते हे...

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