बुधवार, 8 जुलाई 2009

उनकी मौत का जन्म हवन कुंड से हुआ था.

राजकुमार द्रुपद और द्रोण गुरु भाई थे। शिक्षा समाप्त होने पर दोनों अपने-अपने नगर को चले गये। पर समय के साथ जहां एक तरफ द्रुपद राजा बने वहीं द्रोण का गरीबी ने पीछा नहीं छोड़ा। गरीबी भी कैसी कि परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया। बालक अश्वस्थामा, जो द्रोण को जान से भी प्यारा था, के पोषण के लाले पड़ गये। उसको दूध के लिये रोता देख मांग कर लाये गये आटे को घोल कर उसे पिलाते माँ-बाप का कलेजा मुंह को आ जाता था। ऐसी हालत में द्रोण अपनी पत्नि के कहने पर अपने बचपन के मित्र द्रुपद के पास कुछ झिझकते हुए सहायता की आशा में जा पहुंचे। पर वहां का रवैया ही कुछ और था। द्रुपद बचपन की मित्रता को भुला बैठे थे। बातों ही बातों में उन्होंने अपने गरीब मित्र का मजाक बना ड़ाला। उनकी बातों ने द्रोण का कलेजा चीर कर रख दिया। उन्होंने मन ही मन द्रुपद को सबक सिखाने का प्रण कर ड़ाला।
समय बीतता गया। द्रोण द्रोणाचार्य बन कुरु राजवंश के राजकुमारों के गुरु बन गये। युद्ध विद्या में पारांगत करने के बाद जब गुरु दक्षिणा की बारी आयी तो उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिये द्रुपद का राज्य मांग लिया। पांडवों ने द्रुपद को बंदी बना अपने गुरु के चरणों में ला डाला। फिर भी द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य यह कहते हुए वापस कर दिया कि गरीबी अभिशाप होती है सो तुम्हें मैं जीवन यापन के लिये आधा राज्य वापस करता हूं।
संतान विहीन द्रुपद इस अपमान को कभी भूल नहीं पाये। पर पांडव रक्षित द्रोण को हराना भी उनके वश में नहीं था। तब पुत्र प्राप्ति कि इच्छा से उन्होंने कपिल मुनि के द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। महाभारत कथा के अनुसार यज्ञ कुंड से दो बच्चों का जन्म हुआ, धृष्टद्युम्न और द्रोपदी का।
समय के साथ द्रोपदी महाभारत युद्ध का कारण बनी वहीं अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिये धृष्टद्युम्न ने जो द्रोणाचार्य के वध का संकल्प लिया था वह भी महासमर में पूरा किया गया।
फर्रूखाबाद जिले के एक गांव कम्पिल में वह प्राचीन हवन कुंड पुराविदों ने खोज निकाला है जिससे गुरु द्रोणाचार्य के काल के रूप में धृष्टद्युम्न ने जन्म लिया था। कभी पांचाल राज्य की राजधानी के रूप में विकसित कम्पिल आज एक नामालुम सा गांव भर रह गया है। पर विशेषज्ञों का अनुमान है कि यहां खुदाई करने पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकती है।

10 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह शर्मा जी बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने जिसे हम भुल ही गये थे, धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

यह तो आपने बहुत जानने योग्य जानकारी दी. बहुत धन्यवाद आपका.

रामराम.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

यह तो आपने बहुत अच्छी जानकारी दी.....धन्यवाद

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है. उस प्राचीन हवन कुंड में गहराई से नमूने लेकर कार्बन डेटिंग की जानी चाहिए.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी-आभार.

विवेक रस्तोगी ने कहा…

धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य को धोखे से मारा था, जब गुरु द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के वियोग में रथ में ही आसन लगाकर बैठ गये थे और सारे पाण्डव भी यह देख रहे थे पर उसी समय धृष्टद्युम्न ने अपनी तलवार से गुरु द्रोणाचार्य की गर्दन पर अपनी तलवार से प्रहार किया, द्रोणाचार्य को पराजित करने की विद्या किसी के पास नहीं थी। धृष्टद्युम्न ने धोखे से मारा था।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपने जानकारी दी,
धन्यवाद!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

भारत में ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजा नहीं जाता यदि वह मुगलों या अंग्रेजों की न हो तो.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विवेक जी,
बात धोखाधड़ी की नहीं हो रही है। बात है कि किसी की मौत कैसे हुई। जिस छल की बात आप कर रहे हैं यदि वह नहीं होता तो जीत कौरवों की निश्चित थी। कौन सा महारथी बिना कपट के मारा गया था? चाहे भीष्म हों, द्रोंण हों, कर्ण हो यहां तक कि दुर्योधन तक को मारने के लिये इस "धर्म युद्ध" में अधर्म का सहारा लिया गया था।

बेनामी ने कहा…

this is a very useful article by u sir thnx fr helpin me

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