आज हरिया अपने बेटे डा गोविन्द के साथ शहर जा रहा था। गाँव वाले अचंभित थे, गोविन्द के गाँव आने पर, उसके दो-दो नर्सिंग होम थे शहर में, इतना व्यस्त रहता था वह कि अपनी माँ के देहांत पर भी गाँव नहीं आ सका था। पर खुश भी थे, हरिया को चाहने वाले, यह सोच कर कि बीमार हरिया शहर में अपने बेटे के पास रह कर अपनी जिन्दगी के शेष दिन आराम से गुजार सकेगा।
उधर गोविन्द बाप को देख कर ही समझ गया था कि महीने दो महीने का खेल ही बचा है। उसे बाप की देह के किडनी इत्यादि अंग, बैंक बैलेंस में तब्दील होते नजर आ रहे थे।
उधर गोविन्द बाप को देख कर ही समझ गया था कि महीने दो महीने का खेल ही बचा है। उसे बाप की देह के किडनी इत्यादि अंग, बैंक बैलेंस में तब्दील होते नजर आ रहे थे।
7 टिप्पणियां:
विमानवीयकरण की कथा।
प्रिय मित्र
आपकी रचना ने प्रभावित किया बधाई इन्हें प्रकाशित करने के लिए मेरे ब्लाग पर पधारें।
अखिलेश शुक्ल्
http://katha-chakra.blogspot.com
ओह
हैवानीयत की पराकाष्टा!!!!!!!!!
kalyug me kya nahi ho sakataa
shri sharma ji aapne kalyugi shhawan kumar ke bare me likhe samay ke sath - sath lalch ka jankari . thank V. Patel Raipur.
shri sharma ji aapne kalyugi shhawan kumar ke bare me likhe samay ke sath - sath lalch ka jankari . thank V. Patel Raipur.
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