शुक्रवार, 1 मई 2009

आओ कसाबो, हमारे जले पर नमक छिड़को

आओ हमारे देश में तुम्हारा स्वागत है। आप तो जानते ही हैं कि हम और हमारा देश मेहमानों को देवता स्वरूप समझते हैं। हम खायें ना खायें उन्हें भरपेट भोजन उपलब्ध करवाते हैं। खुद गीले-सुखे में जैसे-तैसे गुजारा कर अतिथी को शैया सुख प्रदान करते हैं। हमारी फितरत है कि आप हमें लतियाते, धकियाते, गलियाते रहें पर हम फिर भी आपको सिर पर बैठाये रखते हैं। हमें सिखाया गया है कि कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल उसके सामने कर दो, कि ले भाई गुस्सा निकाल ले, यह दिल के लिये घातक होता है। पर यदि कहीं आप ज्यादा ही नाराज हो सौ-पचास लोगों का क्रिया करम भी कर देते हैं तो भी हमारे यहां डरने की जरूरत नहीं होती, यहां मानवाधिकारियों की फौज पुरजोर कोशीश करती है कि आप के सलीके से संवारे गये बालों में एक खम भी ना पड़े। जिनकी जान जाती है उनके आत्मियों को भी यह पता है कि यह आपकी करनी नहीं है आप तो सिर्फ माध्यम हो करने वाला तो भगवान है। आत्मा अमर होती है वह चोला बदलती रहती है, इत्यादि-इत्यादि और यह सब हमारी घुट्टी में है। इसलिये बेचारे कुछ दिन रो-गा कर चुप हो जाते हैं। वैसे आप लोग भी कफी समझदार हैं इसीलिए किसी संत्री-मंत्री पर हाथ नहीं डालते क्योंकि वैसे कुछ दिक्कत हो सकती है। आम आदमी की कीमत यहां किसी भुनगे-मकौडे से ज्यादा नहीं है। फिर भी खुदा न खास्ता यदि आप कभी हिरासत में ले भी लिये जाते हैं तो हम वहां भी आपकी खातिर-तवज्जो में कोई कमी नहीं आने देते। आपको बेहतरीन सुविधाओं के साथ-साथ लज़ीज भोजन का स्वाद दिलाया जाता है। आपकी दिनचर्या को खुशगवार बनाने में हम कोई कोर-कसर नहीं छोडते। यहां तक कि नहाने धोने के बाद आपकी पसंद का इत्र-फुलेल भी आपकी खिदमत में प्रस्तुत करने में हिचकिचाते नहीं हैं। आपकी हर फरमाईश को सिर माथे पर रखने के साथ-साथ ही हमारी कोशीश रहती है कि आप सादर और सुरक्षित हमसे विदा लें। फिर वापस आने की तैयारी कर के।
सो आईये, घूमिये-फिरिये, तफरीह करिये, शिकार का शौक फर्माईये और हमारी छती पर मूंग दलिये।
--------------------------------------------
दुनिया में शायद हमारा ही देश है, जहां खून-खराबा करने वाला भी रोज-रोज अपनी नयी-नयी मांगे मनवाने की जुर्रत कर सकता है। कसाब की हिम्मत देखिए कि जेल में अपनी मांगें ऐसे रख रहा है जैसे उसने हमारे लिए कोई बहादुरी का काम किया हो। बिना किसी शर्म, हया लज्जा के आज वह इत्र मांग रहा है, कल मुजरा देखने की भी फर्माइश कर सकता है। काश कोई तो ऐसा होता कि उसी समय उसके मुंह पर एक झापड़ रसीद करता। किस की शह पर उसमें इतनी हिम्मत आ गयी कि वह अपनी कारस्तानियों के कारण डरने की बजाय हमारे जख्मों पर ही नमक छिड़कने पर तुला हुआ है।

12 टिप्‍पणियां:

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

शर्माजी,
आप सही कह रहे है।
शायद इसलिऐ ही भारत लोकतान्त्रिक देश कि सुची मे सबसे उपर के पायेदान पर है। बहुत ही विचारणीय बाते कही है आपने।

आभार
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर

P.N. Subramanian ने कहा…

आपकी बातों से बिलकुल सहमत नहीं हैं. आपने लिखा है "करने वाला तो भगवान् है" नहीं यह अल्लाह है जो ज्यादा पहेलवान है.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुब्रमनियन जी,
मेरे कहना है कि हमें यह सिखाया जाता है कि 'होईहे वही जो राम रचि राखा' अब यहां कौन ठीक बैठता है, देख सोचें।

बेनामी ने कहा…

वाह वाह क्या सेकुलर मुजरा होगा जी :) मानवाधिकार है आखिर कसाब का मुजरा देखना हूरो के साथ रहना और इसे पूरा करेगा न्याय और देश के साथ अपने धंधे को समर्पित उसके साथ खडी वकीलो की फ़ौज

ऋषभ कृष्ण सक्सेना ने कहा…

सही कहा आपने. जब तक कांग्रेस के हाथ में इस बेचारे देश की बागडोर है, तब तक तो लाल गलीचे पर चलकर कसाब जैसे लोग ही यहाँ बिरयानी और तंदूरी चिकन उड़ाने आयेंगे. बिना रीढ़ की सरकार से आप उम्मीद ही क्या कर सकते हैं. सुब्रमन्यन जी ने बढ़िया कहा कि अल्लाह पहलवान है. अजी म्लेच्छ सेकुलरों की सरकार में तो भगवान को दबकर ही रहना है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

भाई हमारा तो मत यह है कि जो लंका की राजगद्दी पर बैठेगा वही रावण बन जायेगा.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

भाई हमारा तो मत यह है कि जो लंका की राजगद्दी पर बैठेगा वही रावण बन जायेगा.

रामराम.

बेनामी ने कहा…

अपुन का तो एकच मांग है के, अरुंधती मेडम और तीस्ता का जुगल मुजरा करवाया जाये कसाब के सामने… वो भी खुश अपन भी खुश…

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

क्या ब्लागर या टिप्पणीकार में दम है कि मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था पर चूं भी कर सके। जो भी हो रहा है वह संवैधानिक तरीके से करा जा रहा है, उस आतंकी को वकील दिया जाना और उसकी सेवा-टहल करना। अंग्रेजो ने भी जब भगत सिंह आदि को फ़ांसी दी तब कानून के अनुसार ही दी,बकैती करने का लीचड़पन छोड़ कर यदि हम उस तरह सड़कों पर आएं आफ़लाइन हो कर जैसे कि गूजरों ने अपने पक्ष में लट्ठ के दम पर कानून बनवा लिया लेकिन हम तो सिर्फ़ बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिये एक हो सकते हैं या फिर साबरमती एक्सप्रेस जलाने के लिये। संविधान और न्यायपालिका पर कुछ बोलने में हमारी हवा तंग होती है। जिंदगी आनलाइन नहीं आफ़लाइन होती है। लोकतंत्र नहीं है ये छद्मलोकतंत्र है क्यों नहीं राष्ट्रपति और गवर्नर का चुनाव पब्लिक मैन्डेट से होता। नासमझ जनता इसी में खुश है कि वो सरकार बना रही है कितना बड़ा भ्रम है और कथित बौद्धिक जुगाली करने वाले इस भ्रम का पोषण कर रहे हैं। कसाब क्या हम सब उतने ही दोषी है उन हत्याओं के लिये.....क्योंकि हम बकैती के अलावा कुछ नहीं करते।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्रीवास्तव जी,
अन्यथा ना लें। पर आपकी सारी बातें आपस में ही विरोधाभासी हैं। क्या लठ्ठ के बलबूते पर अपनी बात मनवाना उचित है? रही अंग्रेजों की बात तो ततैया के छत्ते को ना हीं छुया जाये तो बेहतर है। और यह बकैती ही है जो धीरे-धीरे आक्रोश का रूप ले धमाका करती है। वैसे आप ही शुरुआत करें साथ जरूर मिलेगा।

Anil Pusadkar ने कहा…

मेहमां जो हमारा होता है,
वो जान से प्यारा होता है।

लगता है इस गाने को सुनकर आ गये है सारे।

Sajal Ehsaas ने कहा…

jis tarah kasaab ke liye vakeel milne ki baat ko handle kiya gaya hai wo sharm ki baat hai...ek sabhya desh ko sabhya tareeke se chalna hi hoga...jo log kehte hai ki aise logo ko is tarah fasee do,aise maaro,ye karo wo karo,unko shayad bharat mein talibaan chahiye....

hum apni shanti priyata mein jaise bhi hai,kisi asabhya kism ke maahol mein to nahi ji rahe...

विशिष्ट पोस्ट

दीपक, दीपोत्सव का केंद्र

अच्छाई की बुराई पर जीत की जद्दोजहद, अंधेरे और उजाले के सदियों से चले आ रहे महा-समर, निराशा को दूर कर आशा की लौ जलाए रखने की पुरजोर कोशिश ! च...