इस बार अपने देश का अधिकतर भाग गर्मी की चपेट में है। इससे बचने के लिये पहाड़ों पर जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं और प्रकृति की सुंदरता को करीब से देखना चाहते हैं तो अपेक्षाकृत कम जानीजाने वाली जगहों को अपनी छुट्टियों के लिये चुने। वहां मशहूर जगहों की अपेक्षा कम भीड़-भाड़ और ज्यादा सकून मिल पायेगा। ऐसी ही एक जगह है “मंडी”।
यह चण्ड़ीगढ कुल्लू मार्ग पर व्यास नदी के तट पर बसा बेहद खूबसूरत नगर है, जो प्राकृतिक सौंदर्य, एतिहासिक महत्ता और धार्मिक स्थलों के लिये खासा मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि मांड़व्य ने यहां घोर तपस्या की थी जिस कारण इसे मांडव्य के नाम से जाना जाने लगा। जो कालांतर में मंडी बन गया। यही वह स्थान है जहां महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी।
यहां वर्षों तक सैन वंश का शासन रहा जिन्होंने अपने शासन काल में सैंकड़ों मंदिरों, स्मारकों व किलों का निर्माण करवाया था। यहां अभी भी सौ से ज्यादा मंदिर हैं । जिनमें नीलकंठ महादेव, भूतनाथ, एकादश रुद्र, त्रिलोकी नाथ, अर्ध नारिश्वर, सिद्धकाली, सिद्धभद्रा, महामृत्युंजय आदि प्रमुख हैं।
यहां घूमने-देखने के लिये ढेरों स्थानों में रिवाल्सर,कमरूनाथ, पाराशर झील जैसी अनेकों जगहें हैं जिन्हें देख प्रकृति प्रेमियों का वापस जाने का दिल नहीं करता।
मंडी से 40 कि.मी. दूर पराशर झील के किनारे ऋषि पराशर का एक खूबसूरत पैगोड़ा शैली का बना हुआ मंदिर है। इस में लकडी पर उकेरी गयी आकृतियां इतनी लाजवाब हैं कि देखने वाला खड़ा का खड़ा रह जाता है। इस मंदिर में लक्ष्मी, विष्णू, दुर्गा तथा शिव जी की प्रतिमायें स्थापित हैं।
इसी तरह रिवाल्सर झील जो मंडी से 25कि.मी. की दूरी पर स्थित है, अपनी सुंदरता में अद्वितीय है। यह जगह महर्षि लोमष की तपोभूमी के रूप में जानी जाती है। जो शिव जी के अनन्य भक्त थे।
मंडी से ही 50 कि.मी. की दूरी पर एक और खूबसूरत झील कमरूनाग है। यहां का पहुंच मार्ग इतना सुंदर है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। यहीं कमरुनाथ जी का प्रसिद्ध बेहद प्राचीन मंदिर भी है।
मंडी से ही शिमला जाने के रास्ते में ‘तत्ता पानी’ नाम की एक और दर्शनीय जगह आती है। जो एक अजूबे की तरह है। एक तरफ सतलुज नदि का बर्फ के समान ठंड़ा पानी है तो वहीं नदि के आगोश से निकलता हुआ गर्म जल किसी परी कथा की याद दिला देता है।
तो जब भी, कभी भी, पहाड़ों का रुख करें तो विख्यात जगहों को छोड़ कुछ अनजानी जगहों को तलाशें। यकीन मानिये कभी भी निराशा हाथ नहीं लगेगी।
यह चण्ड़ीगढ कुल्लू मार्ग पर व्यास नदी के तट पर बसा बेहद खूबसूरत नगर है, जो प्राकृतिक सौंदर्य, एतिहासिक महत्ता और धार्मिक स्थलों के लिये खासा मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि मांड़व्य ने यहां घोर तपस्या की थी जिस कारण इसे मांडव्य के नाम से जाना जाने लगा। जो कालांतर में मंडी बन गया। यही वह स्थान है जहां महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी।
यहां वर्षों तक सैन वंश का शासन रहा जिन्होंने अपने शासन काल में सैंकड़ों मंदिरों, स्मारकों व किलों का निर्माण करवाया था। यहां अभी भी सौ से ज्यादा मंदिर हैं । जिनमें नीलकंठ महादेव, भूतनाथ, एकादश रुद्र, त्रिलोकी नाथ, अर्ध नारिश्वर, सिद्धकाली, सिद्धभद्रा, महामृत्युंजय आदि प्रमुख हैं।
यहां घूमने-देखने के लिये ढेरों स्थानों में रिवाल्सर,कमरूनाथ, पाराशर झील जैसी अनेकों जगहें हैं जिन्हें देख प्रकृति प्रेमियों का वापस जाने का दिल नहीं करता।
मंडी से 40 कि.मी. दूर पराशर झील के किनारे ऋषि पराशर का एक खूबसूरत पैगोड़ा शैली का बना हुआ मंदिर है। इस में लकडी पर उकेरी गयी आकृतियां इतनी लाजवाब हैं कि देखने वाला खड़ा का खड़ा रह जाता है। इस मंदिर में लक्ष्मी, विष्णू, दुर्गा तथा शिव जी की प्रतिमायें स्थापित हैं।
इसी तरह रिवाल्सर झील जो मंडी से 25कि.मी. की दूरी पर स्थित है, अपनी सुंदरता में अद्वितीय है। यह जगह महर्षि लोमष की तपोभूमी के रूप में जानी जाती है। जो शिव जी के अनन्य भक्त थे।
मंडी से ही 50 कि.मी. की दूरी पर एक और खूबसूरत झील कमरूनाग है। यहां का पहुंच मार्ग इतना सुंदर है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। यहीं कमरुनाथ जी का प्रसिद्ध बेहद प्राचीन मंदिर भी है।
मंडी से ही शिमला जाने के रास्ते में ‘तत्ता पानी’ नाम की एक और दर्शनीय जगह आती है। जो एक अजूबे की तरह है। एक तरफ सतलुज नदि का बर्फ के समान ठंड़ा पानी है तो वहीं नदि के आगोश से निकलता हुआ गर्म जल किसी परी कथा की याद दिला देता है।
तो जब भी, कभी भी, पहाड़ों का रुख करें तो विख्यात जगहों को छोड़ कुछ अनजानी जगहों को तलाशें। यकीन मानिये कभी भी निराशा हाथ नहीं लगेगी।
5 टिप्पणियां:
महाभारत यहीं रची गयी, ये तो मैं जानता ही नहीं था ।
बहुत सुन्दर. काश हम मंडी देख पाते.
मंडी के बारे में बहुत बढ़िया सारगार्वित जानकारी देने के लिए आभार . मौका मिला तो एक बार जरुर देखने की कोशिश करूँगा .
सत्य को दर्शाता हुआ लेख बहुत अच्छा हैं।
बधायी स्वीकार करें।
हाँ जी, यकीन मानने की बात ही तो है. जाऊँगा मैं भी कभी मण्डी और पराशर.
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