रविवार, 17 मई 2009

लंगडा आम, ऐसा नाम कैसे पडा

अपनी सुगंध, मिठास तथा स्वाद के कारण आम फ़लों का राजा कहलाता है। तरह-तरह के नाम हैं इसके - हापुस, चौसा, हिमसागर, सिंदुरी, सफ़ेदा, गुलाबखास, दशहरी इत्यादि-इत्यादि, पर बनारस का एक कलमी सब पर भारी पडता है। यह खुद जितना स्वादिष्ट होता है उतना ही अजीब नाम है उसका "लंगडा"। यह आमों का सरताज है। इसका राज फ़ैला हुआ है बनारस के रामनगर के इलाके में। इसका नाम ऐसा क्यों पडा इसकी भी एक कहानी है।
बनारस के राम नगर के शिव मंदिर में एक सरल चित्त पुजारी पूरी श्रद्धा-भक्ती से शिवजी की पूजा अर्चना किया करते थे। एक दिन कहीं से घूमते हुये एक साधू महाराज वहां पहुंचे और कुछ दिन मंदिर मे रुकने की इच्छा प्रगट की। पूजारी ने सहर्ष उनके रुकने की व्यवस्था कर दी। साधू महाराज के पास आम के दो पौधे थे जिन्हें उन्होंने मंदिर के प्रांगण में रोप दिया। उनकी देख-रेख में पौधे बड़े होने लगे और समयानुसार उनमें मंजरी लगी। जिसे साधू महाराज ने शिवजी को अर्पित कर दिया। रमता साधू शायद इसी दिन के इंतजार मे था, उन्होंने पुजारीजी से अपने प्रस्थान की मंशा जाहिर की और जाते-जाते उन्हें हिदायत दी कि इन पौधों की तुम पुत्रवत रक्षा करना। इनके फ़लों को पहले प्रभू को अर्पण कर फ़िर फ़ल के टुकडे कर प्रसाद के रूप में वितरण करना, पर ध्यान रहे किसी को भी साबुत फ़ल, इसकी कलम या टहनी अन्यत्र लगाने को नहीं देनी है। पुजारी से वचन ले साधू महाराज रवाना हो गये। समय के साथ पौधे वृक्ष बने उनमें फ़लों की भरमार होने लगी। जो कोई भी उस फ़ल को चखता वह और पाने के लिये लालायित हो उठता पर पुजारीजी किसी भी दवाब में न आ साधू महाराज के निर्देशानुसार कार्य करते रहे। समय के साथ-साथ फ़लों की शोहरत काशी दरबार तक भी जा पहुंची। एक दिन राजा ने भी प्रसाद चखा और उसके दैवी स्वाद से अभिभूत रह गये। उन्होंने उसी समय दरबार के माली को पुजारी के पास, आम की कलम लाने के आदेश के साथ भेज दिया। पुजारीजी धर्मसंकट मे पड गये। राजादेश को नकारा भी नहीं जा सकता था। सोचने के लिये समय चाहिये था सो उन्होंने दूसरे दिन खुद दरबार में हाजिर होने की आज्ञा मांगी। सारा दिन वह परेशान रहे। रात को उन्हें ऐसा आभास हुआ जैसे खुद शंकर भगवान उन्हें कह रहे हों कि काशी नरेश हमारे ही प्रतिनिधी हैं उनकी इच्छा का सम्मान करो। दूसरे दिन पुजारीजी ने टोकरा भर आम राजा को भेंट किये। वहां उपस्थित सभी लोगों ने उस दिव्य स्वाद का रसपान किया। फिर काशी नरेश की आज्ञानुसार माली ने उन फ़लों की अनेक कलमें लगायीं। जिससे धीरे-धीरे वहां आमों का बाग बन गया। आज वही बाग बनारस हिंदु विश्वविद्यालय को घेरे हुये है।
यह तो हुई आम की उत्पत्ती की कहानी। अब इसके अजीबोगरीब नाम की बात। शिव मंदिर के पुजारीजी के पैरों में तकलीफ़ रहा करती थी। जिससे वह लंगडा कर चला करते थे। इसलिये उन आमों को लंगडे बाबा के आमों के नाम से जाना जाता था। समय के साथ-साथ बाबा शब्द हटता चला गया और आम की यह जाति "लंगडा आम" के नाम से विश्व विख्यात होती चली गयी।

16 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह शर्माजी आज तो आपने वाकई लाजवाब जानकारी दी जो हमने तो पहली ही बार सुनी है. बहुत धन्यवाद.

रामराम.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन जानकारी दे दी आपने..पहले कभी न जाना था.

sandeep sharma ने कहा…

कुछ हजम नहीं हुआ...

P.N. Subramanian ने कहा…

बढ़िया जानकारी. लेकिन ऊपर श्री शर्मा जी को हजम नहीं हुआ. आम ज्यादा खाने से भी ऐसा होता है

Nitish Raj ने कहा…

पहली बार इस बारे में जान पाया। संक्षिप्त और अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संदीप जी,
कभी भारत भ्रमण का मौका मिले तो बनारस जरूर जाइयेगा। इस शंका के निवारण के साथ-साथ इसी फल से संबंधित और बहुत से अजूबों की भी जानकारी मिलेगी।

रंजन ने कहा…

मैं तो समझा था कि आम का एक पांव नहीं होता..:) बहुत रोचक कहानी है..

बेनामी ने कहा…

लंगड़ा आम की यह रोचक जानकारी बहुत पसंद आई. मैं भी सोचा करता था कि यह कैसा नाम हुआ लंगड़ा, परन्तु अब आपने सभी शंकाओं का समाधान कर दिया है. बधाई हो!!!

साभार
हमसफ़र यादों का.......

रंजू भाटिया ने कहा…

पहली बार जानी यह रोचक जानकारी शुक्रिया

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत पहले कहीं पढा या फिर शायद किसी से सुनी थी ये कहानी....आपने पुन: स्मरण करवा दी..आभार

ओर हां,आपकी पोस्ट पढते पढते मुहं में आम की मिठास आने लगी है..:)

L.Goswami ने कहा…

yah jankari nayi mili..

Arvind Mishra ने कहा…

सच कहूं फलों में आम मेरी पहली पसंद है -और आमों की चौकडी -लंगडा ,चौसा , सफेदा और दशहरी में मैं चौसा और दशहरी को बराबर बराबर नम्बर देता हूँ ! लंगडा तो दूसरे नंबर पर है -कुछ चोपी होती है इसमें !

Himanshu Pandey ने कहा…

लँगड़े आम की कथा रोचक है । धन्यवाद ।

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

मुझे भी "लंगडा" आम बहुत पसंद है . बहुत बढ़िया जानकारी लंगड़ के बारे में धन्यवाद. जी

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत बढ़िया जानकारी ! कई दिनों से व्यस्तता के चलते आपका ब्लॉग पढ़ नहीं पाए ! आज दैनिक हिन्दुस्थान पढ़ते हुए ब्लॉग वार्ता में रविश कुमार द्वारा आपके ब्लॉग की इसी पोस्ट की चर्चा पढ़ी ! अख़बार में परिचित ब्लॉग के बारे में पढ़कर सुखद अहसास हुआ |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आप लोगों के स्नेह से ही यह संभव हो पाया है।

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