एक बहुत विद्वान ब्राह्मण थे। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। वे घूम-घूम कर लोगों में ज्ञान बांटा करते थे। एक बार इसी तरह विचरण करते हुए वह एक राजा के यहां जा पहुंचे। राजा ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। उन्हें अपने महल में ठहराया। रोज ही उनके सत्संग रूपी प्रकाश से राज्य की जनता अपना अज्ञान रूपी अंधकार मिटाती रही। इसी तरह कुछ दिन व्यतीत होने पर ब्राह्मणदेव ने अपनी यात्रा जारी करने की इच्छा जाहिर की। जाते समय राजा ने उनसे गुरुमंत्र देने को कहा। इस पर उन्होंने राजा से कहा कि सदा आलस्य रहित होकर, शान्ति, मित्रता, दया और धर्म से अपने राज्य का संचालन करते रहना। इस पर राजा ने प्रसन्न होकर उन्हें एक गांव भेंट करना चाहा पर ब्राह्मणदेव ने उसे लेने से इंकार कर दिया और अपनी राह चल पड़े।
चलते-चलते वे एक नदी किनारे आ पहुंचे। वहां का मल्लाह निपट मूर्ख था। उसे सिर्फ अपने पैसों से मतलब था। उसने आज तक किसी को भी बिना पैसा लिये पार नहीं उतारा था। पैसे के लिये वह लड़ाई-झगड़ा करने से भी बाज नहीं आता था। अब ब्राह्मण को उस पार जाना था सो उन्होंने नाविक से पूछा कि क्या भाई मुझे उस पार ले जाओगे ? नाविक ने कहा क्यों नहीं, किराया क्या दोगे? पंडितजी ने कहा मैं तुम्हें ऐसा उपाय बताउंगा जिससे तुम्हारे धन और धर्म दोनों की वृद्धि होगी। यह सुन कर मल्लाह ने उन्हें पार उतार दिया और उधर जा पैसे की मांग की। पंडितजी ने कहा कि तू पार उतारने के पहले ही यात्रियों से पैसा ले लिया कर, बाद में उनका मन बदल सकता है। यह धन की वृद्धि का उपाय है। नाविक ने सोचा कि इस सलाह के बाद ये पैसे भी देगा, सो उसने फिर किराया मांगा। पंडितजी ने कहा अभी तुझे धन की वृद्धि का उपाय बताया अब तू धर्म वृद्धि का उपाय भी जान ले, कैसा भी समय हो जगह हो कभी क्रोध मत करना इससे तेरा धर्म बढ़ेगा और तू सदा सुखी रहेगा। पर इस शिक्षा का मल्लाह पर कोई असर नहीं हुआ उसने कहा क्या यही तेरा किराया है? इससे काम नहीं चलनेवाला पैसे निकालो। पंडितजी ने कहा भाई मेरे पास तो शिक्षा ही है और कुछ तो है नहीं। मल्लाह चिल्लाया कि अरे भिखारी तेरे पास पैसे नहीं थे तो तू मेरी नाव में क्यूं चढ़ा, इतना कह उसने पंडितजी को नीचे गिरा पीटना शुरु कर दिया। इसी बीच नाविक की पत्नि आ गयी और उसने किसी तरह पंडितजी को छुड़ाया।
पंडितजी जाते-जाते सोच रहे थे कि इसी शिक्षा को सुनकर राजा मुझे गांव देने को तैयार था और उसी शिक्षा को सुन यह जाहिल मेरी जान के पीछे पड़ गया था।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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17 टिप्पणियां:
:))
वैसे ये महोदय इस कहानी में ब्राह्मण नहीं भी होते सिर्फ विद्वान रहते तो भी कहानी की प्रभावोत्पादकता बनी रहती
बहुत ही अच्छी कहानी रही
शायद इसीलिये कहा गया होगा कि ज्ञान सुयोग्य पात्र को ही दिया जाना चाहिये !
रामराम !
अलग सा जी
नव वर्ष मुबारक हो.
बढ़िया कहानी.
कहावत भी तो है कि गधे के आगे बंसुरी बजाना बेकार है.
धन्यवाद
सुंदर कहानी. हमें एक और कहानी याद है जिसमे ब्राह्मण नाव में बैठ्ने की बजाय टायर कर पार जाता है. फिर कभी. आपको नव वर्ष की षभकामनाएँ. आपको कह दिया तो परिवार भी उसमे समाहित है. आभार.
बहुत ही अच्छी कथा
सचमुच ज्ञान और दान हमेशा सुयोग्य एवं सुपात्र व्यक्ति को ही देना चाहिए.
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
नव -वर्ष मँगलमय हो
कथा का सबक सही है -
पात्र और सुपात्र और कुपात्र
तीनोँ के भेद ही
रज तमस सत गुणवती
माता प्रकृति प्रधान बनीँ हैँ
सादर स्नेह व अनेकोँ बधाई एवँ शुभकामनाएँ
- लावण्या
नए साल का हर पल लेकर आए नई खुशियां । आंखों में बसे सारे सपने पूरे हों । सूरज की िकरणों की तरह फैले आपकी यश कीितॆ । नए साल की हािदॆक शुभकामनाएं-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
ज्ञानी वही जो पात्र और कुपात्र का भेद भी जाने!
First of all Wish u Very Happy New Year...
Gyanvardha kahani aur sath hi bhod may....
Regards...
लाजवाब कहानी ,नव वर्ष की शुभकामनाये
कहानी बहुत अच्छी लगी।
आपको नव वर्ष की हार्दिक मंगलकामानाएं।
लाजवाब कहानी ..........
गगन जी,
आपको, आपके परिजनों और आपके मित्रों और परिचितों को भी नव वर्ष की शुभकामनाएं. ईश्वर आपको सुख-समृद्धि दे!
अनुराग शर्मा
@masijeevi …
पता नहीं पुरानी कहानियां कुछ ऐसे ही शुरू होती थीं, '' एक गरीब ब्राह्मण था.......... :-)
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