बुधवार, 3 दिसंबर 2008

दानव से ग्रह बना 'राहु'. ग्रहों की कहानी :- ८

समुद्र मंथन के बाद जब भगवान विष्णु मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु देवताओं का भेष बना कर उनके बीच आ बैठा। पर उसको सूर्य और चन्द्रमा ने पहचान लिया और उसकी पोल खोल दी। तत्क्षण विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र द्वारा उसकी गरदन काट डाली। पर तब तक उसने अमृत का घूंट भर लिया था, जिसके संसर्ग से वह अमर हो गया। शरीर के दो टुकड़े हो जाने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से जाना जाने लगा। ब्रह्माजी ने उन्हें ग्रह बना दिया।राहु का मुख भयंकर है। ये सिर पर मुकुट, गले में माला तथा काले रंग के वस्त्र धारण करता है। इसके हाथों में क्रमश:- तलवार, ढ़ाल, त्रिशुल और वरमुद्रा है। इसका वाहन सिंह है। राहु ग्रह मंडलाकार होता है। ग्रहों के साथ ये भी ब्रह्माजी की सभा में बैठता है। पृथ्वी की छाया भी मंडलाकार होती है। राहु इसी छाया का भ्रमण करता है। ग्रह बनने के बाद भी वैर-भाव से राहु पुर्णिमा को चन्द्रमा और अमावस्या को सूर्य पर आक्रमण करता रहता है। इसे ही ग्रहण कहते हैं। इसका रथ अंधकार रूप है। इसे कवच से सजे काले रंग के आठ घोड़े खींचते हैं। इसकी महादशा 18 वर्ष की होती है। कुछ अपवादों को छोड़ कर यह क्लेशकारी ही सिद्ध होता है। यदि कुण्ड़ली में इसकी स्थिति प्रतिकूल या अशुभ हो तो यह शारीरिक व्याधियों, कार्यसिद्धी में बाधा तथा दुर्घटनाओं का कारण बनता है। इसकी शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना श्रेयस्कर होता है।
इसका सामान्य मंत्र है :- “ ऊँ रां राहवे नम:”
इसका एक निश्चित संख्या में नित्य जप करना चाहिये। जप का समय रात्रिकाल है।
* अगला ग्रह :- केतु

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

इसी लिये कहते हओगे कि इस पर राहू के छाया पडी है, धन्यवाद इस जानकारी के लिये.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

स्वागत है आपका

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