समुद्रमंथन के समय छल से अमृतपान करने के कारण भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु तथा धड़ केतु कहलाया। केतु राहु का ही कबन्ध है। राहु के साथ ही केतु भी ग्रह बन गया। पुराणों के अनुसार केतु बहुत से हैं। जिनमें धूमकेतु प्रधान है। यह छाया ग्रह है। व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ यह समस्त सृष्टि को भी प्रभावित करता है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह राहु की अपेक्षा सौम्य होता है और विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुंचा देता है। इसका मंडल ध्वजाकार माना जाता है। इसका वर्ण धूएं के समान है तथा मुख विकृत है। इसके दो हाथ हैं। एक हाथ में गदा तथा दूसरा वरमुद्रा धारण किये रहता है। इसका वाहन गीध है। कहीं-कहीं ये कपोत पर आसीन भी दिखाया जाता है। केतु की महादशा सात साल की होती है। किसी व्यक्ति की कुंडली में अशुभ स्थान पर रहने पर यह अनिष्टकारी हो जाता है। ऐसे केतु का प्रभाव व्यक्ति को रोगी बना देता है। केतु का सामान्य मंत्र :- “ऊँ कें केतवे नम:” है। इसका नित्य एक निश्चित संख्या में श्रद्धापूर्वक जाप करना चाहिये। जाप का समय रात्रि-काल है।
* केतु के साथ ही नवग्रहों की सक्षिंप्त जानकारी पूर्ण होती है। नवग्रहों का पुराणों में कैसा चित्रण है, उसकी यह एक हल्की सी झलक थी। कोई विद्वतापूर्ण लेख नहीं था। किसी भी तरह के पूजा-पाठ, हवन, जप वगैरह को विद्वानों के मार्ग-दर्शन में ही आरंभ और पूरा करना चाहिये।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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2 टिप्पणियां:
लगता हौ मुझ पर भि केतू की छाया है, क्योकि मेने आज तक कभी भी पुजा पाठ दिल से नही किया, मंदिर जाता हु तो भी दिल नही लगता, वहा.
लेकिन कर्म से मै पुजा करता हुं.
धन्यवाद
सही बात है। कभी-कभी पूजास्थलों की लूट-खसोट देख मन उचाट हो जाता है। इन अघाये हुओं से अच्छा किसी अनाथाश्रम, अंधविद्यालय और सबसे बेहतर किसी जरूरतमंद की सहायता मन को सकून देती है।
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