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तकरीबन संसार के सभी धर्मों और जातियों में, समाज में मर्यादा बनाये रखने के लिये, सदाचार की बढोतरी तथा व्यभिचार की रोक-थाम के लिये विवाह की प्रथा का चलन रहा है। हमारे वेदों में भी सारे आश्रमों में गृहस्थाश्रम को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। जिसमें प्रवेश विवाह के पश्चात ही मिल पाता है। इसके आठ प्रकार बताये गये हैं।
* ब्रह्म विवाह :- वर और कन्या ने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपनी शिक्षा पूरी की हो। वे विद्वान और धार्मिक विचारों को मानने वाले हों। व्यवहार कुशल एवं सुशील हों और उनका विवाह आपसी सहमति से हुआ हो।
* देव विवाह :- यज्ञ और ऋत्विक कर्म करते हुए कन्यादान करना, देव विवाह कहलाता है।
* आर्य विवाह :- वर पक्ष से कुछ धन आदि लेकर कन्या का विवाह करना इस श्रेणी के अंतर्गत आता है। कभी-कभी इसका रूप विकृत हो जाता है, जब कन्या का पिता अपने स्वार्थ के लिये अपनी कन्या को बेच देता है। अनेकों जनजातियों में यह प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
* प्राजापत्य विवाह :- इसमें विवाह बुद्धि व धर्म के अनुसार होता है। वर-वधू एक दूसरे के लिये आयु, रूप, गुण आदि में एक दूसरे के लिये सर्वथा उपयुक्त होते हैं। ऐसे विवाह ज्यादातर सफल होते हैं।
* असुर विवाह :- इस प्रकार के विवाह में आपसी सहमति से, एक दूसरे से लेन-देन होता है। आज के युग में जिसे दहेज कहा जाता है। दहेज की विभीषिका को आज सभी जानते हैं।
* राक्षस विवाह :- बलपूर्वक, लड़-झगड़ कर या हर कर कन्या से विवाह करना राक्षस विवाह कहलाता है। प्राचीन काल में भी इसकी स्वीकृति नहीं थी। आज तो यह कानूनी अपराध की श्रेणी में आता है।
*गंधर्व विवाह :- अनियम, असमय, परिस्थितिवश वर-कन्या का संयोग होना गंधर्व विवाह कहलाता है। प्राचीन काल में इसे कुछ हद तक सामाजिक मान्यता प्राप्त थी। आज भी ऐसे विवाह बहुतायद से होते हैं पर ऐसा करने वाले कुछ ही लोग समाज के सामने इसे स्वीकारने की हिम्मत दर्शा पाते हैं।
* पैशाच विवाह :- नशे में चूर, पागल या सोती हुई कन्या के साथ बलपूर्वक या उसकी अनभिज्ञता से संबंध स्थापित करना पैशाच विवाह कहलाता है। वैसे इसे विवाह नहीं व्यभिचार का नाम दिया जा सकता है।
इन आठों प्रकारों में ब्रह्म विवाह सर्वोत्तम, देव एवं प्राजापत्य मध्यम, आर्य, असुर व गंधर्व निम्न तथा राक्षस और पैशाच विवाहों को भ्रष्ट श्रेणियों में माना जाता है।
11 टिप्पणियां:
इस सुंदर और सार्थक विवरण के लिए आपका आभार.जानकारीपरक प्रशंशनीय आलेख है यह.
वह क्या बात है. हम अपना गणित लगा रहे हैं. आभार.
जानकारी के लिए आभार।
जानकारी का आभार !
असुर और राक्षश में अन्तर नही समाज में आया
नई जानकारी मिली आपका सक्रीय लेखन प्रभावित करता है।
hame to pandit wala, molawi wala, father wala aur court wala hi malum the.
आज गंधर्व विवाह के लिए धर्म बदलना पडता है, मन्त्री पद छोडना पडता है, पिता भी धुतकारता है...और गाना पडता है-क्या क्या न सहे सितम ओ सनम तेरे लिए...
इस अच्छी जानकारी के लिए आभार।
ये सारे विवाह-भेद कभी पढे तो थे किन्तु स्मृति लोप हो गए थे । आपने रिफ्रेश कर दिया । धन्यवाद ।
sur yaani dewataa. asur jo dewataa nahee hain.
raakshas ek alag jaati hii ho gayee.
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