सृष्टि की सृजन क्रिया में जीवाणु से लेकर मनुष्य तक, तथा एल्गी-कवक से लेकर वृक्ष-वनस्पतियों तक करोड़ों तरह के उत्पाद अस्तित्व में आए। जिनके संरक्षण के लिए जल-थल -आकाश-अग्नि -वायु का सहयोग लिया गया। इन सब में संतुलन बनाए रखने के लिए एक सुसम्बद्ध चक्र का निर्माण किया गया। जिसके लिए अपने आप में महत्वपूर्ण करोड़ों जीव-जंतुओं की श्रृंखला बनी। जिनमें सिरमौर रहा, इंसान !
#हिन्दी_ब्लागिंग
कायनात ने इस धरा को खूबसूरत बनाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। तरह-तरह के पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़-पौधे ! उनके अनुसार हवा-पानी, खान-पान, रहन-सहन का पूरा इंतजाम ! हरेक अपने आप में पूर्ण रूप से एक स्वतंत्र इकाई ! फिर भी सबकी अपनी अहमियत, खासियत व हैसियत ! सभी का इस वसुंधरा को सुरक्षित, खुशहाल, सुन्दर तथा पूर्ण बनाने में किसी ना किसी तरह का सहयोग। प्रकृति ने मनुष्य, पशु, पक्षी, पौधे व पर्यावरण सब को एक दूसरे का पूरक बनाया, जिससे संतुलन बना रहे। इस काम के लिए ईश्वर ने मनुष्य को सभी प्राणियों से कुछ ज्यादा समझदार बनाया और अपनी बनाई हुई दुनिया की बागडोर उसके हाथों सौंप दी। जिससे वह अपने ''साथियों'' की देख-भाल तो कर ही सके, साथ ही उसकी बनाई इस अद्भुत कृति की भी ठीक तरह से सार-संभार हो सके।
प्रकृति ने अपनी बगिया को सजाने के लिए तरह - तरह की करोड़ों नेमतों की रचना की। विभिन्न तरह के उत्पादों का सृजन किया। जिसके लिए छोटे से छोटे जीवाणु से लेकर मनुष्य, एल्गी-कवक से ले कर वृक्ष-वनस्पतियों तक अस्तित्व में आए। जिनके संरक्षण के लिए जल - थल - आकाश -अग्नि-वायु का सहयोग लिया गया। इन सब में संतुलन बनाए रखने के लिए एक ''सुसम्बद्ध चक्र'' का निर्माण किया गया। इसके लिए अपने आप में महत्वपूर्ण करोड़ों जीव-जंतुओं की श्रृंखला बनी: जिनमें सिरमौर रहा, इंसान !इंसान कुदरत की बेहतरीन रचना तो है, पर संतुलन बनाए रखने के लिए, उसे दिमागी तौर पर तो सर्वश्रेष्ठ बनाया पर उतनी शारीरिक क्षमता नहीं दी। समस्त चराचर की जीवन प्रणाली देखी जाए तो शायद ही कोई जीव अपने सृजनकर्ताओं पर इतना निर्भर होता है जितना कि इंसान ! जहां जन्म के कुछ ही समय के बाद सब, अपने लिए ही सही, स्वछंद जिंदगी जीना आरंभ कर देते हैं ! वहीं इसके उलट मानव को अपने पैरों पर खड़े होने, अपनी हिफाजत करने, सोचने - समझने लायक होने में वर्षों लग जाते हैं। परन्तु इसीलिए वह एक पारिवारिक - सामाजिक जीव भी बन पाता है। जो ता-उम्र अपनी संतति की चिंता में अपने आप को डुबाए रखता है। पहले अपने बच्चों और फिर उनके बच्चों की परवरिश में अपने को उलझाए-उलझाए जीवन गुजार देता है। पर इन्हीं उलझावों से ही लगाव, स्नेह जैसी भावनाएं ! प्रेम, दया, करुणा, ममता, त्याग, परोपकार, सहानुभूति, जैसे सद्विचार भी पनप पाते हैं ! जो मानव को उत्कृष्ट और सर्वोपरि बनाते हैं। उसको दूसरों का सुख - दुःख समझने की लियाकत देते हैं। उसे मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों, पेड़-पौधे, पर्यावरण को बचाने की भी समझ प्रदान करते हैं। सिर्फ अपने लिए ही नहीं समस्त जगत के लिए जीने का हौसला देते हैं।यह सही है कि जहां अच्छाई होती है, वहां कुछ ना कुछ बुराई भी होती है ! पर साथ ही यह भी सच्चाई है कि दुनिया में अच्छाई की बहुलता है और उसी के प्रयासों से ही यह संसार भी कायम है ! हालांकि कुछ भ्रष्ट लोगों ने पृथ्वी पर उपलब्ध जल, अनाज, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे व ऊर्जा के स्त्रोतों पर अपना मालिकाना हक़ समझ, उनका असंतुलित दोहन कर लिया। जिसका खामियाजा दुनिया भर के लोगों को अपने जान-माल से करना पड़ा ! प्रकृति से नसीहत मिलते ही आदमी को अपनी औकात समझ में आ गई और वह आखिरकार अपनी भूल सुधारने के लिए मजबूर भी हुआ ! अब तो यही आशा करनी चाहिए कि हाल में आन पड़ी जानलेवा, बेकाबू आपदाओं से सबक सीख समस्त मानव जाति अपने आप को ही जहान भर का मालिक ना समझ, सिर्फ रखवाला ही मानेगी और अपने साथ-साथ पृथ्वी और पृथ्वीवासियों के हक़ का सम्मान कर उन्हें भी अपनी तरह से जीने और रहने का हक़ प्रदान करेगी ।
18 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर लेख। बाकी प्रकृति है तो हम है..!
शिवम जी
अतीरेक भी तो हो गया है। उद्दंडता पर तो मॉं भी चपतियाती है
सुन्दर आलेख
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुशील जी
हार्दिक आभार
दिग्विजय जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
प्रकृति पर बहुत सुन्दर आलेख ।
आभार
मीना जी
प्रभावशाली लेखन - - सार्थक प्रकृति पर आधारित आलेख।
शांतनु जी
अनेकानेक धन्यवाद
काश ... ऐसा हो जाये
विभा जी
हाल ही का ऐसा सबक मिलने के बाद समझदारी आनी तो चाहिए
सुंदर आलेख। प्रकृति संतुलन माँगती है। जब तक संतुलन रहेगा हम भी रहेंगे। वरना खामियाजा भुगतेंगे। हमें सीखना होगा।
प्रकृति पर सारगर्भित आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई गगन जी, प्रकृति का असंतुलन हमें बहुत भारी पड़ता है, परंतु हम सबक़ नहीं लेते..
विकास जी
हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार
जिज्ञासा जी
यही विडंबना है, समय बीतते ही हम फिर लापरवाह हो जाते हैं
सोचने को मजबूर करता लेख
कदम जी
देर-सबेर सुधरना तो पडेगा ही
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