शाम की भड़काऊ वार्ता का सीधा अर्थ था कि जमावड़े की मंशा हंगामा मचाने की है और यह बात सभी को मालुम थी, ऐसे लोगों पर तुरंत कार्यवाही होनी चाहिए थी ! दूसरे दिन और कहीं ना सही लाल किले की सुदृढ़ व्यूह रचना जरूर की जानी चाहिए थी ! क्यों ट्रैक्टर पर तिरंगे के होने भर से शान्ति भंग नहीं होगी, ऐसा विश्वास कर लिया गया ! क्या कोर्ट में पहले जो धार्मिक पुस्तकों पर हाथ रख सच के सिवा और कुछ ना कहने की कसमें खाते थे तो उन पर विश्वास किया जाता था.......!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
गणतंत्र दिवस पर जो कुछ भी हुआ वो बेहद दुखद, कष्टकारक व अपमानजनक था ! आम आदमी अवाक और तिलमिला कर रह गया ! खासकर लाल किले की अस्मिता पर कुछ सिरफिरों के हुड़दंग को देख ! इसके साथ ही यह भी तय हो गया कि आदतानुसार कुछ निर्लज्ज लोग शाम को विभिन्न चैनलों पर आ विष्ठावामन करने लग जाएंगे ! ऐसा ही हुआ भी, आरोपों-प्रत्यारोपों का घिनौना दौर चलना ही था, सो चला ! पर इसके साथ ही कुछ सवाल भी सर उठा खड़े हो गए ! जब घटनोपरांत हर चैनल विभिन्न तथाकथित किसान नेताओं की एक दिन पहले की शाम की भड़काऊ वार्ता को उजागर करने लगा ! जिसका सीधा अर्थ था कि जमावड़े की मंशा हंगामा मचाने की है ! यह बात सभी को मालुम भी थी, तो समय रहते क्यों नहीं ऐसे लोगों पर तुरंत कार्यवाही हुई ! दूसरे दिन और कहीं ना सही लाल किले की सुदृढ़ व्यूह रचना तो जरूर की जानी चाहिए थी ! क्यों ट्रैक्टर पर तिरंगे के होने भर से शान्ति भंग नहीं होगी, ऐसा विश्वास कर लिया गया ! क्या कोर्ट में पहले जो धार्मिक पुस्तकों पर हाथ रख, सच के सिवा और कुछ ना कहने की कसमें खाते थे तो उन पर विश्वास किया जाता था !
क्यों नहीं टिकैत, योगेंद्र, दर्शन पाल और उन जैसे अन्य लोगों पर नकेल कसी गई ! क्यों नहीं अन्य शर्तों के साथ यह जोड़ा गया कि अमन-चैन, जन-धन की हानि होने पर उन जैसे नेताओं की जिम्मेदारी होगी और उसकी भरपाई उन्हीं से होगी
यह भी एक कारण है कि राजधानी की छवि गणतंत्र दिवस के दिन धूमिल हुई ! जब पुलिस को किसान का रूप धारण किए हुए एक-एक इंसान का कच्चा चिठ्ठा मालूम था, तो क्यों उन पर विश्वास किया गया ! टिकैत, योगेंद्र, दर्शन पाल और उन जैसे अन्य कुख्यात लोगों पर तुरंत नकेल कसी जानी चाहिए थी ! शुरू में ही अन्य शर्तों के साथ यह जोड़ देना चाहिए था कि किसी भी तरह अमन-चैन, जन-धन की हानि होने पर उन जैसे नेताओं की जिम्मेदारी होगी और उसकी भरपाई भी उन्हीं से होगी ! जिस गांधी के अनशन को अपने से जोड़ ये छद्म आंदोलनकारी खुद को गौरवान्वित करने की कोशिश करते हैं तब वे यह भूल जाते हैं कि गांधी जी ने हर आंदोलन की अगुवाई खुद की थी ! हर अभियान में खुद सबसे आगे रहते थे ! इनकी तरह दूसरों को आगे कर खुद बिल में नहीं दुबक जाते थे। हर परिणाम का जिम्मा खुद लेते थे ! दूसरों पर आरोप मढ़ किनारा करने की कोशिश नहीं करते थे।
24 टिप्पणियां:
जो भी हुआ वह अक्षम्य है।
किसान आंदोलन की यह नियति देखकर दुख होता है। एक शानदार आलेख के लिए आपको बधाई।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शास्त्री जी
"कुछ" लोगों को छोड सारा देश विचलित और आक्रोशित है
वीरेंद्र जी
नापाक इरादे वाले ऐसे मंचों की फिराक में ही रहते हैं
यशोदा जी
बहुत-बहुत आभार
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
अनीता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद
बिल्कुल सही लिखा है आपने। देश विरोधी तत्वों के खिलाफ सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
शिवम जी
डर ना होने से ही इतने हौसले बढ गए हैं
Bilkul sahi. Doshiyan ko dand milna chahiye
आभार, कदम जी
राष्ट्र की मर्यादा सर्वोपरि है उसकी गरिमा का सम्मान करना देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है । धृष्टता अशोभनीय और अक्षम्य है । चिन्तनपरक लेख ।
बिल्कुल सही कहा आपने, चिंतनपरक लेख।
राष्ट्र की मर्यादा को ताक पर रख जो भी हुआ वो अक्षम्य है।
चिंतन परक सामायिक आलेख।
आक्रोश तो हर दिशा में है पर परिणाम वहीं ढ़ाक के तीन पात।
साधुवाद।
मीना जी
सभी को हक है कि अपनी भलाई के लिए आवाज उठाए पर उसके लिए देश के सम्मान पर आंच आए यह अक्षम्य है
अभिलाषा जी
सदा स्वागत है, आपका
कुसुम जी
मौकापरस्त अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं
चिन्तन परक लेख
आलोक जी
अनेकानेक धन्यवाद
बहुत ही दुःखद रहा कृषक आंदोलन का रूप गणतंत्र दिवस में, कुछ अप्रवासी भारतीय और विपक्षी पार्टियों ने देश विद्रोही काम किया, सरकार का सख़्त क़दम उठाना आवश्यक है, आलेख प्रभावशाली है बधाई।
शांतनु जी
"कुछ" को छोड हर देशवासी का मन आहत है
जी सर, जितनी मेरी समझ है उसके अनुसार आब तो सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीति ही दीख रही है और कुछ नहीं।
सादर।
श्वेता जी
बिल्कुल सही
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