शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

किसान आंदोलन या उसकी आड़ में कुछ और

शाम की भड़काऊ वार्ता का सीधा अर्थ था कि जमावड़े की मंशा हंगामा मचाने की है और यह बात सभी को मालुम थी, ऐसे लोगों पर तुरंत कार्यवाही होनी चाहिए थी ! दूसरे दिन और कहीं ना सही लाल किले की सुदृढ़ व्यूह रचना जरूर की जानी चाहिए थी ! क्यों ट्रैक्टर पर तिरंगे के होने भर से शान्ति भंग नहीं होगी, ऐसा विश्वास कर लिया गया ! क्या कोर्ट में पहले जो धार्मिक पुस्तकों पर हाथ रख सच के सिवा और कुछ ना कहने की कसमें खाते थे तो उन पर विश्वास किया जाता था.......!!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

गणतंत्र दिवस पर जो कुछ भी हुआ वो बेहद दुखद, कष्टकारक व अपमानजनक था ! आम आदमी अवाक और तिलमिला कर रह गया ! खासकर लाल किले की अस्मिता पर कुछ सिरफिरों के हुड़दंग को देख ! इसके साथ ही यह भी तय हो गया कि आदतानुसार कुछ निर्लज्ज लोग शाम को विभिन्न चैनलों पर आ विष्ठावामन करने लग जाएंगे ! ऐसा ही हुआ भी, आरोपों-प्रत्यारोपों का घिनौना दौर चलना ही था, सो चला ! पर इसके साथ ही कुछ सवाल भी सर उठा खड़े हो गए ! जब घटनोपरांत हर चैनल विभिन्न तथाकथित किसान नेताओं की एक दिन पहले की शाम की भड़काऊ वार्ता को उजागर करने लगा ! जिसका सीधा अर्थ था कि जमावड़े की मंशा हंगामा मचाने की है ! यह बात सभी को मालुम भी थी, तो समय रहते क्यों नहीं ऐसे लोगों पर तुरंत कार्यवाही हुई ! दूसरे दिन और कहीं ना सही लाल किले की सुदृढ़ व्यूह रचना तो जरूर की जानी चाहिए थी ! क्यों ट्रैक्टर पर तिरंगे के होने भर से शान्ति भंग नहीं होगी, ऐसा विश्वास कर लिया गया ! क्या कोर्ट में पहले जो धार्मिक पुस्तकों पर हाथ रख, सच के सिवा और कुछ ना कहने की कसमें खाते थे तो उन पर विश्वास किया जाता था ! 

अब जब किले पर तथाकथित झंडा टांगने वाले उस सिरफिरे का नाम, पता सब मालुम है तो उसे तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए ! यदि सभी मानते हैं कि उसने देश के गौरव क साथ खिलवाड़ किया है तो उसके परिवार का हुक्का-पानी बंद किया जाना चाहिए ! सरे-राह उनको धिक्कारा जाना चाहिए ! कुछ तो होना चाहिए जिससे न्याय-व्यवस्था की मर्यादा बनी रहे ! कुछ तो डर-भय होना चाहिए, जिससे कुछ भी गलत करते समय उसकी सजा के खौफ का ख्याल आ अपराधी के रौंगटे खड़े हो जाएं ! कब तक हम घर फूँक कर तमाशा देखते रहेंगे ! कब तक किसी राज्य का सीएम देश के प्रधान मंत्री को गाली देता रहेगा ! कब तक केंद्र के फरमानों की अवमानना होती रहेगी ! कब तक पूर्वाग्रही प्रवक्ता देश हित को किनारे कर स्वहित में अमर्यादित हो विषवमन करते रहेंगे ! क्योंकि ऐसी ही बातों से ओछे नेताओं और उनके पालित गुर्गों की हौसला अफजाई होती है ! उन्हें पता रहता है कि आका के रहते हमारा कुछ नहीं बिगड़ने वाला ! 

क्यों नहीं टिकैत, योगेंद्र, दर्शन पाल और उन जैसे अन्य लोगों पर नकेल कसी गई ! क्यों नहीं अन्य शर्तों के साथ यह जोड़ा गया कि अमन-चैन, जन-धन की हानि होने पर उन जैसे नेताओं की जिम्मेदारी होगी और उसकी भरपाई उन्हीं से होगी     

यह भी एक कारण है कि राजधानी की छवि गणतंत्र दिवस के दिन धूमिल हुई ! जब पुलिस को किसान का रूप धारण किए हुए एक-एक इंसान का कच्चा चिठ्ठा मालूम था, तो क्यों उन पर विश्वास किया गया ! टिकैत, योगेंद्र, दर्शन पाल और उन जैसे अन्य कुख्यात लोगों पर तुरंत नकेल कसी जानी चाहिए थी ! शुरू में ही अन्य शर्तों के साथ यह जोड़ देना चाहिए था कि किसी भी तरह अमन-चैन, जन-धन की हानि होने पर उन जैसे नेताओं की जिम्मेदारी होगी और उसकी भरपाई भी उन्हीं से होगी ! जिस गांधी के अनशन को अपने से जोड़ ये छद्म आंदोलनकारी खुद को गौरवान्वित करने की कोशिश करते हैं तब वे यह भूल जाते हैं कि गांधी जी ने हर आंदोलन की अगुवाई खुद की थी ! हर अभियान में खुद सबसे आगे रहते थे ! इनकी तरह दूसरों को आगे कर खुद बिल में नहीं दुबक जाते थे। हर परिणाम का जिम्मा खुद लेते थे ! दूसरों पर आरोप मढ़ किनारा करने की कोशिश नहीं करते थे।   

वैसे यह सोच कर आश्चर्य भी होता है कि बिना आजमाए, बिना उसका अंजाम जाने सिर्फ आशंका के चलते जो लोग इतने बड़े देश की शक्तिशाली सरकार का विरोध इतने बड़े पैमाने पर कर सकते हैं तो ये ही लोग भविष्य में यदि कुछ हुआ भी, तो क्या उस समय अपने विरोधी को दिन में तारे नहीं दिखा सकते ! तब क्यों नहीं आंदोलन हो सकता ! तब क्यों नहीं इनकी एकता काम आ सकती ! तब क्यों नहीं अपनी सुरक्षा की जा सकती ! तब तो अवाम भी इनके साथ कंधे से कंधा मिला खडा हो जाएगा ! इससे तो यही धारणा  बनती है कि अपने विदेशी आकाओं के निर्देशानुसार वर्षों से देश को खोखला बनाने वाली देश विरोधी ताकतों को अपने मनसूबों के लिए  फिर एक मौका मिल गया है ! जो देश की तरक्की व खुशहाली बर्दास्त नहीं कर सकते ! 

                                  
 कहते हैं कि ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है ! किसान आंदोलन के नाम पर हुए इस हुड़दंग से कइयों के चेहरे बेनकाब हो गए हैं ! ये तो शीशे की तरह पहले ही साफ़ था कि इन कानूनों की आड़ ले कर लुटे-पिटे, हारे-थके, हाशिए पर सिमटा दिए गए कुछ दल बाहरी ताकतों की शह पर अपने अस्तित्व के लिए आखिरी लड़ाई जरूर लड़ेंगे ! वार्ता के बार-बार असफल करवाए जा रहे प्रयास इसके गवाह हैं। अब तक अवाम की जो थोड़ी-बहुत सहानुभूति आंदोलन के साथ थी. वह भी इनकी इस हिमाकत से तिरोहित हो चुकी है। अब तो हर आम नागरिक की ख्वाहिश यही है कि जब इनका असली सूरत ए हाल सबके सामने आ चुका है तो इनकी हर उद्दंडता का माकूल व कठोर जवाब दिया जाए। 

24 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जो भी हुआ वह अक्षम्य है।

Vocal Baba ने कहा…

किसान आंदोलन की यह नियति देखकर दुख होता है। एक शानदार आलेख के लिए आपको बधाई।

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 29 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
"कुछ" लोगों को छोड सारा देश विचलित और आक्रोशित है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वीरेंद्र जी
नापाक इरादे वाले ऐसे मंचों की फिराक में ही रहते हैं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
बहुत-बहुत आभार

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा है आपने। देश विरोधी तत्वों के खिलाफ सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
डर ना होने से ही इतने हौसले बढ गए हैं

Kadam ने कहा…

Bilkul sahi. Doshiyan ko dand milna chahiye

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, कदम जी

Meena Bhardwaj ने कहा…

राष्ट्र की मर्यादा सर्वोपरि है उसकी गरिमा का सम्मान करना देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है । धृष्टता अशोभनीय और अक्षम्य है । चिन्तनपरक लेख ।

Abhilasha ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने, चिंतनपरक लेख।

मन की वीणा ने कहा…

राष्ट्र की मर्यादा को ताक पर रख जो भी हुआ वो अक्षम्य है।
चिंतन परक सामायिक आलेख।
आक्रोश तो हर दिशा में है पर परिणाम वहीं ढ़ाक के तीन पात।
साधुवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
सभी को हक है कि अपनी भलाई के लिए आवाज उठाए पर उसके लिए देश के सम्मान पर आंच आए यह अक्षम्य है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अभिलाषा जी
सदा स्वागत है, आपका

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
मौकापरस्त अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं

आलोक सिन्हा ने कहा…

चिन्तन परक लेख

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आलोक जी
अनेकानेक धन्यवाद

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

बहुत ही दुःखद रहा कृषक आंदोलन का रूप गणतंत्र दिवस में, कुछ अप्रवासी भारतीय और विपक्षी पार्टियों ने देश विद्रोही काम किया, सरकार का सख़्त क़दम उठाना आवश्यक है, आलेख प्रभावशाली है बधाई।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शांतनु जी
"कुछ" को छोड हर देशवासी का मन आहत है

Sweta sinha ने कहा…

जी सर, जितनी मेरी समझ है उसके अनुसार आब तो सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीति ही दीख रही है और कुछ नहीं।
सादर।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी
बिल्कुल सही

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