विडंबना हर बार की तरह यही है कि इस अभूतपूर्व संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला, इस बार भी वही मध्यम वर्ग है, जो सदैव सारे देश को पालता, उसकी जरूरतें पूरी करता, हारी-बिमारी-मुसीबत में हर बार, हर तरह से उसके काम तो आता है. पर जिसकी कहीं, कभी कोई सुनवाई नहीं होती ! उसे बस निचोड़ा जाता है, सिर्फ निचोड़ा..........................!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
मार्च 19 गुरुवार, अवाम को सम्बोधित करते हुए मोदी जी ने आने वाले 22 मार्च के रविवार को, प्रयोग के तौर पर आजमाए जाने वाले जनता कर्फ्यू में सहयोग करने को कहा ! आसन्न संकट की गंभीरता से अनजान लोगों ने इसे तफरीह के तौर पर ले बड़ी सहजता से सफल बना दिया। नब्ज समझते ही एक दिन बाद मंगलवार को उन्होंने फिर देश को संबोधित कर कोरोना वायरस के अभूतपूर्व संकट, उसकी कोई दवा न होने और सिर्फ संकल्प और संयम से खुद की सुरक्षा ही एकमात्र इलाज होने की बात बता, उसी मध्य रात्रि से यानी 24 मार्च से 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
देश में ऐसे अवकाश का अनुभव लोगों को पहली बार हुआ था। बिना भविष्य की चिंता करे लोगों ने इसे हल्के तौर पर लिया ! कालोनियों, मोहल्लों, गलियों में अपने-अपने घरों की बालकनियों, छतों, खिड़कियों से लोगों ने एक-दूसरे के साथ संवाद और मनोरंजन के लिए तरह-तरह के उपाय ढूँढ निकाले ! रोज शाम को रौनक लगने लगी। इसी बीच दूसरे लॉकडाउन की घोषणा हो गई ! इंसान की फितरत है कि वह जबरदस्ती बंध के नहीं रह सकता। उसे खुलापन व आजादी चाहिए होती है। इस लंबी घर-बंदी से लोग अब ऊबने लगे ! शुरूआती उत्साह ठंडा पड़ने लगा ! जैसे-जैसे निष्क्रिय दिन-हफ्ते-महीने बढ़ते गए, वैसे-वैसे लोगों में बेचैनी, ऊब, हताशा, निराशा घर करने लगी। कई तो डिप्रेशन के शिकार भी हो गए !
बात सिर्फ निष्क्रियता से उपजी ऊब की नहीं थी ! धीरे-धीरे इस ''बंद'' का भयावह व डरावना रूप सामने आने लगा ! ठप्प व्यवसाय, नौकरी से छंटनी ! कुछ अपवादों को छोड़, हर तरफ से आमदनी की आवक अवरुद्ध होते ही अधिकांश घरों में चिंता का सन्नाटा पसरने लगा ! जमा-पूंजी हाथ की रेत के जैसे तेजी से फिसलती जा रही थी ! वैसे भी आज के हालात में मध्यम वर्ग की बचत होती ही कितनी है ! उसे रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में दांतों पसीना आने लगा ! ऊँची दर के ब्याज पर या फिर जेवर गिरवी रख पैसे का जुगाड़ करने की नौबत आ चुकी थी ! फिर इस मुसीबत के ख़त्म होने का कोई निश्चित समय भी तो नहीं था कि इतने सप्ताह या महीनों के बाद इससे राहत मिल जाएगी ! कितना भी कोई आशावादी था इस संकट ने उसे बुरी तरह तोड़ कर रख दिया ! ऊपर से देख भले ही अंदाज ना लगता हो, पर अंदर ही अंदर हर इंसान चिंता-भय-आशंका से ग्रसित हो जल बिन मछली की तरह तड़प रहा है।
अब तक मार चौतरफा हो चुकी है ! बुरी तरह घिरे आम इंसान को बाहर बिमारी और भीतर बेरोजगारी पीसे जा रही है ! बिमारी तो एक तरफ उस पर होने वाले खर्च से वह और भी ज्यादा भयभीत व आतंकित है ! घर से ना निकलने पर उसके सामने भुखमरी का संकट मुंह बाए आ खड़ा हुआ है ! पर घर से निकलते ही कोई रोजगार मिल जाएगा, इसकी भी कहां कोई गारंटी है ! विडंबना हर बार की तरह यही है कि इस अभूतपूर्व संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला, इस बार भी वही मध्यम वर्ग है, जो सदैव सारे देश को पालता, उसकी जरूरतें पूरी करता, हारी-बिमारी-मुसीबत में हर बार, हर तरह से उसके काम तो आता है. पर जिसकी कहीं, कभी कोई सुनवाई नहीं होती ! उसे बस निचोड़ा जाता है, सिर्फ निचोड़ा !!
कहते हैं ना कि दर्द यदि हद से गुजर जाए तो फिर कोई दवा काम नहीं करती, दर्द खुद ही दवा बन जाता है। इसलिए यह बात तो साफ़ है कि इस बहादुर वर्ग को भी डर तभी तक सताएगा जब तक इसकी जेब और रसोई साथ देगी। जिस दिन दोनों रीत गए फिर इसे किसी हारी-बिमारी-कोरोना का डर नहीं रहेगा, चिंता रहेगी तो अपने परिवार की ! क्योंकि है तो वो एक पारिवारिक प्राणी ही !
20 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 01 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
5 अगस्त को। सुन्दर आलेख।
शास्त्री जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
दिव्या जी
सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार
सुशील जी
स्नेह बना रहे
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
02/08/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
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धन्यवाद
Bilkul sahi w satik aaklan, aabhar
कुलदीप जी
पंञ्चामृत में सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
कदम जी
हार्दिक धन्यवाद
सटीक प्रस्तुति
वाह!बेहतरीन !
ओंकार जी
आभार बहुत सारा
शुभा जी
अनेकानेक धन्यवाद
अच्छा लेख
@hindiguru
अनेकानेक धन्यवाद
बहुत सार्थक प्रस्तुति।
कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
असहनीय होता जा रहा माहौल, सामयिक रचना
आभार ¡ पर अभी भी बेनामी रूप ¡
परिचय के साथ आऐं, और खुशी होगी
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