पर ऐसा क्यूँ हुआ कि अयोध्यापति संतान का मुख देखने को तरस गए ! जबकि विष्णु जी ने उनका पुत्र बनने का वचन दिया था ! तीन-तीन रानियां थीं ! पूरा परिवार यौवनावस्था में था ! पहले एक संतान हो भी चुकी थी ! हर सुख-सुविधा मुहैय्या थी ! उस युग में ज्ञान-विज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर था, जैसाकि उन दिनों की कथा कहानियों से निष्कर्ष निकलता है ! तिस पर उन्हें पुत्र वियोग का श्राप भी मिला हुआ था, जो तभी फलीभूत होता जब उनके संतान होती ! फिर ऐसा कौन सा कारण था जो अयोध्या को उसका उत्तराधिकारी नहीं मिल पा रहा था ...........!
#हिन्दी _ब्लागिंग
कई बार कुछ ऐसा पढ़ने को मिल जाता है जो सालों-साल से चली आ रही कथा-कहानियों की किसी घटना या विवरण को एक अलग नजरिया प्रदान कर देता है ! अब जैसे रामायण को ही लें इस महाग्रंथ को कई भाषाओं में विभिन्न विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न रूप में लिखा गया है। रचयिता की जैसी भावना रही, उसने उसी के अनुरूप अपने ग्रंथ में चरित्रों की व्याख्या भी की। कभी-कभी तो ये उप कथाएं अत्यंत रोचक और सटीक भी लगती हैं। अभी रामजी की बहन शांता देवी के बारे में खोज करने पर एक और रोचक विवरण पढ़ने में आया, उसी को साझा कर रहा हूँ।
|
राम भगिनी देवी शांता |
सभी राम कथाओं में यह वर्णित है कि राजा दशरथ को कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्हें पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाना पड़ा था। पर जैसी अन्य कथाओं से जानकारी मिलती है, उससे यह पता चलता है कि उनके कन्या रूपी एक संतान पहले थी, जिसका नाम शांता था। उसे उन्होंने कौशल्याजी की बहन वर्षिणीजी को, जो अंगराज रोमपद को ब्याही गयी थीं तथा कई वर्षों तक निःसंतान रहने के कारण सदा चिंतित, दुःखी व अस्वस्थ रहने लगीं थीं, गोद दे दिया था। उस समय ऐसा करते हुए कोई कारण भी नहीं था जो दशरथ जी को जरा सा भी आभास होने देता कि भविष्य में उनको संतान प्राप्ति के लिए बेहद चिंतित होना पडेगा।
|
राजा दशरथ |
फिर ऐसा क्यूँ हुआ कि अयोध्यापति संतान का मुख देखने को तरस गए ! जबकि विष्णु जी ने उनका पुत्र बनने का वचन दिया था ! तीन-तीन रानियां थीं ! पूरा परिवार यौवनावस्था में था ! पहले एक संतान हो भी चुकी थी ! हर सुख-सुविधा मुहैय्या थी ! उस पर उस युग में ज्ञान-विज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर था, जैसाकि उन दिनों की कथा कहानियों से निष्कर्ष निकलता है ! तिस पर उन्हें पुत्र वियोग का श्राप भी मिला हुआ था, जो तभी फलीभूत होता जब उनके संतान होती ! फिर ऐसा कौन सा कारण था जो अयोध्या को उसका उत्तराधिकारी नहीं मिल पा रहा था ! इसका जवाब दक्षिण की एक राम कथा देती है।
|
रावण |
जब रावण ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया, जिसके अनुसार उसकी मृत्यु का कारण सिर्फ कोई मानव हो सकता था, तो उसने उस मानव के बारे में जानने की ठानी ! वह परम ज्ञानी, त्रिकालदर्शी, ज्योतिष शास्त्री तथा प्रकांड पंडित तो था ही, उसने ज्ञात कर लिया कि उसकी मृत्यु कौशल्या पुत्र के हाथों होगी। इसलिए उसने अपनी मृत्यु को टालने के लिए, जिस दिन सारे लोग दशरथ-कैकेई के ब्याह में व्यस्त थे, मौका पा कर उसने कौशल्या जी का हरण कर उन्हें मंजूषा में बंद कर दूर एक सुनसान द्वीप पर कड़े पहरे के अंतर्गत ले जा कर रख दिया। इस घटना की सूचना नारद जी द्वारा मिलने पर दशरथ जी सेना सहित वहां पहुंचे पर घनघोर युद्ध के पश्चात तकरीबन हार चुके दशरथ जी को जटायु जी की सहायता ने बचा लिया। इसके बाद दशरथ और जटायु अभिन्न मित्र बन गए। उधर श्रीराम के जन्म से पहले ही अपनी मौत को टालने का रावण का प्रयास विफल रहा ! परन्तु उसने ग्रहों-नक्षत्रों को वश में कर कुछ ऐसी अभिसंधि की, जिससे दशरथ को पुत्र प्राप्ति हो ही ना सके। यही कारण था कि वर्षों-वर्ष अयोध्या के राजपरिवार में किसी बच्चे की किलकारी नहीं गूँज पाई !
|
श्रृंगी दंपत्ति |
संतान-दुःख, बढती उम्र और चिंता के कारण राजा का मन हर चीज से उचाट हो गया ! राज-पाट से विमुख हो गए ! तब गुरु वशिष्ठ के सुझाव पर श्रृंगी ऋषि को आमंत्रित किया गया, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपने जीवन भर की घोर तपस्या से अर्जित सारे पुण्यों को होम कर दशरथ जी के लिए, कठिनतम माना जाने वाला पुत्रकामेष्ठि यज्ञ सम्पन्न करवा अयोध्या के साथ देश-दुनिया की विपदा भी हर ली। इस यज्ञ के प्रभाव और उसके दैवीय प्रसाद के फलस्वरूप ही रावण-पाश से मुक्ति संभव हो सकी और श्री राम और उनके तीन भाइयों का जन्म निर्विघ्न हो पाया और फिर कालांतर में रावण का वध हुआ।
|
प्रसाद के साथ अग्निदेव, देवी शांता भी प्रतिलक्षित हैं |
यहां एक जिज्ञासा का उठना स्वाभाविक है कि जब पुत्रकामेष्ठि यज्ञ से संतान प्राप्ति संभव थी तो उसे पहले ही क्यों नहीं करवा लिया गया। तो इसके बारे में जो जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार महीनों तक चलने वाले इस बेहद कठिन विधि-विधान वाले यज्ञ को पूर्ण करवाना हर किसी के लिए संभव नहीं था ! यदि ऐसा होता तो गुरु वशिष्ठ या गुरु विश्वामित्र इसे पहले ही करवा चुके होते। इसके लिए ऐसे ऋषि की आवश्यकता थी, जो दिव्य, ज्ञानी, परोपकारी, प्रकांड पंडित, सौम्य, पर-हितकारी और वेदमंत्रों का उद्भट ज्ञाता हो ! जिसका अपनी इन्द्रियों व भावनाओं पर पूरा नियंत्रण हो ! इसके साथ ही अपने जीवन भर के पुण्यों की आहुति, बिना किसी हिचक, सोच या पछतावे के, यज्ञ में होम कर सके ! क्योंकि उन्हीं पुण्यों के तेज और प्रताप से दैवी प्रसाद का निर्माण संभव था। इसीलिए वशिष्ठ जी ने श्रृंगी ऋषि के नाम का अनुमोदन किया था। जो राजा दशरथ के जमाता भी थे और वर्षों, अपनी एक घोर तपस्या को पूर्ण कर उन्हीं दिनों अपने आश्रम लौटे थे। राजा दशरथ के अनुरोध और अपनी पत्नी शांता देवी की सलाह पर त्रिकालदर्शी और ज्ञानी श्रृंगी ऋषि ने जब अपनी दिव्य दृष्टि से यह भी जाना कि उस यज्ञ से प्राप्त संतान के रूप में खुद विष्णु जी, राम रूप में पृथ्वी पर अवतरित होंगें तो वे उस अभूतपूर्व घटना का माध्यम तथा साक्षी बनने को राजी हो गए। इस कार्य हेतु उनकी एक ही शर्त थी कि इस महायज्ञ में उनकी पत्नी भी सहभागी होंगी। दशरथ जी ने उनकी बात मान ली। इस तरह ऋषि दंपत्ति के पुण्य-प्रताप से यज्ञ की पूर्णाहुति हो सकी और खुद अग्नि देव चांदी के पात्र से ढके सोने के कलश में दैवीय प्रसाद को ले प्रकट हुए और उसे राजा दशरथ को सौंप दिया। इस महायज्ञ के पश्चात श्रृंगी ऋषि फिर अपने पुण्यों को अर्जित करने हेतु जंगल में जा घोर तपस्या में लीन हो गए। उनके परिवार की जिम्मेदारी राजा दशरथ ने संभाली।
हमारे ऋषि-मुनियों ने जो भी नियम-कायदे बनाए और उन्हें तरह-तरह की कथा-कहानियों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की उसका एक ही उद्देश्य था कि लोग सरल, सहज, अहम् रहित, धर्मपरायण रह समाज कल्याण हेतु जीवन यापन करें। जीव-जंतुओं का हित हो ! देश-प्रदेश में सुख-समृद्धि-ऐश्वर्य का वास रहे। मानव संस्कृति फले-फूले। उन्हीं महान आत्माओं का प्रताप है कि तरह-तरह के बलशाली, विशाल प्रणियों के अस्तित्व के लुप्त हो जाने के बावजूद मानव इस धरा पर विद्यमान है और निरंतर प्रगति भी कर रहा है।
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
27 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 18 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रवीन्द्र जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
रोचक आलेख
सुशील जी
यूं ही स्नेह बना रहे
व्वाहहहहह
आभार नई जानकारी हेतु
सादर नमन
बहुत सुन्दर और जानकारीपरक आलेख।
दुर्लभ जानकारी से सजा रोचक और ज्ञानवर्धक लेख ।
दिव्या जी
आपका सदा स्वागत है
शस्त्री जी
प्रतिक्रिया हेतु अनेकानेक धन्यवाद
मीना जी
उत्साह बढ़ाने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
Adbhut. Aisa Bhi ho sakta hai kabhi socha hi nahin, aabhar
वाह!बहुत ही दुर्लभ जानकारी से सजा सुंदर लेख ।धन्यवाद ।
आदरणीय सर,
बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक लेख। सुंदर जानकारियों के लिए हृदय से आभार।
कामिनी जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
कदम जी
आभार आपका, पधारने हेतु
शुभा जी
अनेकानेक धन्यवाद
अनंत जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है,आपका
कौशल्या हरण की कथा तो सुनी हुई है परंतु श्रृंगी ऋषि वाली नहीं। रावण ने कौशल्या का भी हरण किया और उनकी पुत्रवधू सीताजी का भी, यह बात भी बड़ी रोचक लगती है। इन कहानियों से हमें हमारे धर्म और संस्कृति की जानकारी मिलती है।
मीना जी
हमारे ग्रंथ भरे पड़े हैं अद्भुत किस्से-कहानियों से, बस खोजने की जरुरत है
आपके ब्लॉग के नामानुसार ही आज कुछ अलग सा जानने मिला! यह जानकारी पहली बार पढ़ने में आई।
बेहद रोचक और नवीन जानकारी, वाकई अद्भुत है हमारा पौराणिक साहित्य
ज्योति जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
अनीता जी
अनेकानेक धन्यवाद
पौराणिक प्रसंग पर अत्यंत ज्ञानवर्धक आलेख। हार्दिक आभार ।
स्वराज्य जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है, आपका
अद्भुत जानकारी के साथ रोचक कथाएं।
बहुत सुंदर।
कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए अनेकानेक धन्यवाद व आभार
एक टिप्पणी भेजें