सोमवार, 10 अगस्त 2020

समयानुसार अहम्, कुंठा व पूर्वाग्रहों को तिलाजंलि दे देनी चाहिए

आडवाणी जी की अनुपस्थिति में दुबले होते लोगों को पहले स्वतंत्रता दिवस के झंडोतोलन पर आजादी के पुरोधा गांधी जी की याद क्यों नहीं आती। जो उस दिन भी कलकत्ते में बैठे आंसू बहा रहे थे !  तब तो उनकी उम्र भी आज के अडवानी जी से काफी कम थी और ना ही कोई अडचन थी ! जबकि देश की आजादी, बाबरी से आजादी से कहीं बड़ा मायने रखती  थी ! किसी को यह समझ क्यों नहीं आता कि गलत समय में सही बात भी कहर ढा सकती है ! आज जब जनता की नब्ज परखने की जरुरत है ! समय के आकलन की आवश्यकता है ! आत्ममंथन की सख्त अपरिहार्यता है ! प्रजा की भावनाओं को समझने का प्रयोजन है ! असंयमित बयानों पर लगाम कसने की जरुरत है तब भी तथाकथित विज्ञ प्रवक्ता (तियाँ) यह ना समझते हुए कि उनके प्रलाप से पार्टी धंसती जा रही है, लगे रहते है विषवमन पर ! इन कुछ सालों में हुआ पराभव भी उन्हें चेता नहीं पा सक रहा ................................! 

#हिन्दी_ब्लागिंग   

जब से राम मंदिर के भूमिपूजन के उत्सव पर आमंत्रित हुए लोगों की सूचि आम हुई तभी से सोशल मीडिया पर हर चौथी पोस्ट आडवाणी जी की अनुपस्थिति को लेकर अफ़सोस करती दिखने लगी। ऐसा नहीं है कि यह सब उनकी अनुपस्थिति की वजह से दुखी हों, या उनके प्रति इनके दिलों में बहुत सम्मान हो ! यह सब दिल की भड़ास निकालने का कोई भी और कैसा भी मौका खोजने वाले कुतर्की लोग हैं। इनके कुतर्क उनकी उम्र और फैली हुई बिमारी का हवाला भी शांत नहीं कर सकता ! क्योंकि शतरंज की बिसात पर हर दांव में मात पा कर इनके आका तो अब किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर रह गए हैं उन्हें तो भरी दुपहरिया में भी अब कोई राह नहीं सूझ रही तो उन्होंने अपने प्यादों को खुली छूट तो दे दी है, पर छूट पाने वाले सिर्फ बगलें झाँक कर रह जा पा रहे हैं। चिल्ला-चिल्ला कर अपनी बात को आगे करने की नाकाम कोशिश भर कर किसी तरह शाम की डांट  से बचने की जुगत भर भिड़ा पा रहे हैं। अभी हाल ही में इनकी एक बड़बोली ''प्रवक्ति'' को एक चैनल पर नायक से खलनायक बना अयोध्या के लोगों ने ऐसा लताड़ा कि अब वह राम या अयोध्या पर बोलने से पहले दस बार सोचेगी।   

एक मान्यता है कि दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है जो महाभारत में नहीं है, उसी तरह स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा कुछ नहीं है जो अधेड़ावस्था को पहुँच चुकी पार्टी में ना हो ! इनसे कोई पूछे कि जब येन-केन-प्रकारेण पहले स्वतंत्रता दिवस पर झंडे की डोर थामी गई थी तो आजादी के पुरोधा गांधी जी कलकत्ते में क्यों बैठे हुए थे। क्यों नहीं उनको दिल्ली लाने की जरुरत महसूस हुई। जबकि बाबरी मुक्ति से तो उनका देश मुक्ति का अभियान तो कोई तुलना ही नहीं रखता। वैसे भी आडवाणी जी का पाकिस्तान जा कर जिन्ना की प्रशंसा करना कई सवाल खड़े कर जाता है। 

आज ढाई-तीन लोग ऐसे भी हैं राजीव जी का नाम राम मंदिर से जोड़ भ्रम पैदा करने की तिकड़म में लगे हुए हैं जब कि पूरी बात बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे कि उस समय ताला कोर्ट के निर्देश पर मजबूरन खोलना पड़ा था जबकि सरकारी वकील से यह कहलवाया जा रहा था कि ताला खोलने से स्थितियां बिगड़ सकती हैं ! जज के आदेश पर ताला तो खुला पर जज महोदय का तबादला दूसरे प्रदेश में कर दिया गया था ! इस आदेश और उस आदेश में भी जमीन आसमान का फर्क है ! तब सरकार मंदिर खोलना नहीं चाहती थी, कोर्ट ने खुलवाया और अभी सरकार खोलना चाहती थी, परिस्थियाँ विपरीत थीं तब कोर्ट ने खुलवाया !

पर आज सब ऐसा राममय हो गया है, स्थिति ऐसी बन गई है, अवाम के गुस्से का डर ऐसा तारी हो गया है कि राम को काल्पनिक कहने वाले, उनकी जन्म स्थली पर सवाल उठाने वाले, राम सेतु का विध्वंस करने का षड़यत्र रचने वाले, ग्रंथों का मजाक उड़ाने वाले, धर्म को अफीम कहने वाले लोग भी अपने घरों में पूजा का आयोजन कर जनता को अपने धार्मिक होने का संदेश देने में जुट गए हैं या यूं कहें कि अपने राहू ग्रसित भविष्य का आभास पा मजबूरन जुटना पड़ रहा है ! पर साथ ही वोट के लिए बाहर आ तरह-तरह के प्रपंच और बोल बच्चन रचने से भी बाज नहीं आ रहे हैं ! पता नहीं इनकी दो नावों की सवारी का क्या हश्र होगा ! सबसे बड़ी बात यह है कि ये नीम हकीम अवाम की नब्ज नहीं समझ पा रहे हैं ! अब नहीं समझ पा रहे, तो खामियाजा तो भुगतना ही पडेगा !!

अधेड़ावस्था के पार जा चुकी अति अनुभवी पार्टी के लंबरदारों को यह क्यों नहीं समझ में आता कि गलत समय में सही बात भी कहर ढा सकती है ! फिर यहां तो बातें ही ऊल-जलूल की जा रही हैं। अपना इतिहास भूल, लंका विजय के समय आप रावण का गुणगान करोगे ! देश की आवश्यकता पूर्ती पर आप सवाल खड़े करोगे ! जिससे तनातनी चल रही हो उसी के घर जा कर गलबहियां डालोगे ! सिर्फ विरोध के लिए विरोध करोगे ! सच को झूठ साबित करने से बाज नहीं आओगे ! अपने घर के सदस्यों के विरोध पर दूसरों को दोष दोगे और फिर कहोगे कि जनता को बरगलाया गया है ! आज जब जनता की नब्ज परखने की जरुरत है ! समय के आकलन की आवश्यकता है ! आत्ममंथन की सख्त अपरिहार्यता है ! अवाम की भावनाओं को समझने का प्रयोजन है ! असंयमित बयानों पर लगाम कसने की जरुरत है तब भी तथाकथित समर्पित, विज्ञ प्रवक्ता (तियाँ) यह ना समझते हुए कि उनके प्रलाप से पार्टी धंसती जा रही है, लगे रहते है विषवमन पर ! इन कुछ सालों में हुआ पराभव भी उन्हें चेता नहीं पा सक रहा ! क्या इसे ही विनाश काले, विपरीत बुद्धि कहते हैं ! सोचने की बात है !!

10 टिप्‍पणियां:

Rishabh Shukla ने कहा…

सुन्दर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

अपनी अपनी समझ है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ऋषभ जी
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
यह तो है ही

Meena Bhardwaj ने कहा…

सटीक और यथार्थ के धरातल पर चिन्तनपरक लेख . बहुत सुन्दर सर.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
अनेकानेक धन्यवाद

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

विचारणीय और सार्थक आलेख , पूर्वाग्रह अच्छा नहीं है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुरेन्द्र जी
कुंठा, अहम और पुर्वाग्रह त्याग देश समाज अवाम की फिक आज किसी को कहां रह गई है

Kamini Sinha ने कहा…

"असंयमित बयानों पर लगाम कसने की जरुरत है तब भी तथाकथित समर्पित, विज्ञ प्रवक्ता (तियाँ) यह ना समझते हुए कि उनके प्रलाप से पार्टी धंसती जा रही है, लगे रहते है विषवमन पर ! इन कुछ सालों में हुआ पराभव भी उन्हें चेता नहीं पा सक रहा ! क्या इसे ही विनाश काले, विपरीत बुद्धि कहते हैं !"
बिलकुल सही कहा आपने ,सादर नमन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
एक आम इंसान इस बात को समझ रहा है पर जिम्मेदार लोगों के कान पर कोई कीड़ा नहीं रेंगता

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