गुरुवार, 13 अगस्त 2020

श्री रामजी की बहन देवी शांता

श्रीराम जिनका नाम बच्चा-बच्चा जानता है। उनके भाईयों के साथ-साथ उनकी पत्नियों के बारे में सारी जानकारी उपलब्ध है। उनके परिवार की तो बात छोड़िए, उनके संगी साथियों, यहां तक की उनके दुश्मनों के परिवार वालों के नाम तक लोगों की जुबान पर हैं। उन्हीं श्रीराम की एक सगी बहन भी थी। उनके बारे में अब जा कर लोग कुछ-कुछ जानने लगे हैं ! यह जानकारी अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इसी बीच उनकी एक और बहन ''कुकबी जी'' का नाम भी सामने आ गया है ! नाम के सिवा उनके बारे में और कोई जानकारी फिलहाल उपलब्ध नहीं हो पा रही है। फिलहाल शांता जी के बारे में जो जानकारी मिलती है उसी को साझा किया है ...........!


#हिन्दी_ब्लागिंग    

अंग देश नरेश रोमपद तथा उनकी पत्नी वर्षिणी को प्रभु-कृपा से दुनिया की हर नियामत उपलब्ध थी। पर बढ़ती उम्र के साथ नि:संतान होने का दुख दोनों को सालता रहता था। यही एक कारण था जो अंदर ही अंदर दोनों को खाए जाता था। एक बार मन बहलाने के लिए दोनों अयोध्या महाराज दशरथ के यहां पधारे। रानी वर्षिणी महारानी कौशल्या की छोटी बहन भी थीं। वहीं उन्होंने सुंदर, सुशील, वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत दशरथ पुत्री शांता को देखा ! दोनों उस पर मोहित हो गए और हंसी-हंसी में ही राजा दशरथ से उसको गोद लेने की इच्छा जाहिर कर दी। दशरथ भी मान गए। बाद में अपने वचन की रक्षार्थ उन्होंने कन्या राजा रोमपद को सौंप दी तथा साथ ही दिलासा भी दिया कि संतान प्रेम उन्हें विचलित न कर दे, इसलिए उसे कभी भी अयोध्या नहीं बुलाएंगे । इस तरह शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। बड़ी होने पर उनका विवाह शृंग ऋषि से हुआ जो महर्षि विभाण्डक और अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। 

इधर अयोध्या में राजा दशरथ अपना कोई उत्तराधिकारी ना होने के कारण चिंताग्रस्त रहने लगे थे। उनकी बढती उम्र और गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए गुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी। राजा को क्या एतराज हो सकता था ! उन्होंने अपनी स्वीकारोक्ति दे दी। पर इस विशेष यज्ञ की यह ख़ास बात थी कि इसे पूर्ण करवाने वाले पुरोहित के सारे पुण्य यज्ञ की ज्वाला में भस्म हो जाते थे। इसलिए ऋषि-महर्षि इस यज्ञ को करने से बचते थे। ऐसे में वशिष्ठ जी ने दशरथ को शृंग ऋषि का नाम सुझाया जो उनके जमाता भी थे। दशरथ ने, अपने शांता को अयोध्या ना बुलाने के संकल्प को याद रख, ससम्मान सिर्फ शृंग ऋषि को प्रस्ताव भेज दिया ! ऋषि पुण्यात्मा, सरल ह्रदय और स्नेहिल व्यक्ति थे। उनमें अथाह आध्यात्मिक क्षमता थी। वे अपने परिवार ख़ासकर शांता से बहुत नेह रखते थे। उसी के कहने और मनाने पर ही वे इस यज्ञ को करवाने के लिए तैयार भी हुए थे।इसलिए अकेले अयोध्या जाने की बात उन्हें ठीक नहीं लगी और उन्होंने यज्ञ करवाने से इंकार कर दिया। फिर बाद में दशरथ ने उनकी बात मानी और यज्ञ पूरा हुआ। अयोध्या से करीब चालीस की मी दूर, जहां शृंग ऋषि का आश्रम भी है, वह जगह आज भी मौजूद है। यज्ञ के पश्चात शृंग ऋषि फिर जंगलों में, अपने खोए हुए पुण्यों को प्राप्त करने, घोर तपस्या हेतु प्रस्थान कर गए।  तुलसी रामायण में शांता जी का जिक्र ना होने के कारण अधिकांश लोगों को उनके बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं है। पर देश में उनके दो-तीन मंदिर जरूर पाए जाते हैं।

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शांता देवी का उल्लेख अपने यहां तो जगह-जगह मिलता ही है, लाओस और मलेशिया की कथाओं में भी उसका विवरण मिलता है। पर आश्चर्य इस बात का है कि रामायण या अन्य राम कथाओं में उसका उल्लेख नहीं है ?  पता नहीं क्यूं, असमान उम्र तथा जाति में ब्याह दी गयी कन्या का अपने समाज तथा देश के लिये चुपचाप किए गए त्याग का कहीं विस्तृत उल्लेख किया गया ? क्या सिर्फ दूसरे कुल में गोद दे दिये जाने की वजह  से ?

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पहला मंदिर : शृंग ऋषि तथा शांता जी का  एक मंदिर  हिमाचल प्रदेश  के कुल्लू जिले  से  करीब  पचास की.मी. दूर  बंजार उपमंडल की चैहणी कोठी  के ''बागा'' नामक स्थान में  एक छोटी सी पहाड़ी पर सुरम्य परिवेश में बना हुआ है  ! जहां पर शांता और उनके पति ऋषि श्रंगी की एक साथ पूजा की जाती है। दृढ  मान्यता के अनुसार  यहां पर जो भी व्यक्ति उन दोनों की पूजा करता है उसे प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद जरूर  प्राप्त  होता है।  इस  मंदिर में भगवान श्रीराम से जुड़े सभी उत्सव जैसे राम जन्मोत्सव, दशहरा आदि भी बड़ी ही धूम-धाम से मनाए जाते हैं। 
 


दूसरा मंदिर : कर्नाटक के कदुर जिले में तुंगभद्रा नदी के किनारे शृंगेरी में स्थित है।  जिसका नाम शृंगगिरि पर्वत के नाम पर पड़ा है। यहीं के ''किग्गा'' नमक स्थान पर श्रृंगी ऋषि और देवी शांता के मंदिर हैं। श्रृंगेरी को यह नाम ऋषि श्रृंगी से प्राप्त हुआ है। श्रृंगेरी प्राचीन काल से बसा हुआ है। यहीं उनका जन्म हुआ था। अत: केरल और तमिलनाडु के कई क्षेत्रों में उनकी और श्री राम जी की बहन शांता की बहुत मान्यता है। ऐसे ही छत्तीसगढ़ सहित कुछ और इलाकों में भी ये मान्यता है कि भगवान राम के जन्म से पहले दशरथ और कौशल्या जी की एक संतान और भी थी, जिसका नाम शांता था। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन विरूर है जो यहां से करीब साठ की.मी. की दूरी पर है। 

ऐसी ही एक तीसरी जगह है, अयोध्या से लगभग चालिस किलोमीटर दूर विकासखंड मया अंतर्गत स्थित पौराणिक स्थल श्रृंगी ऋषि आश्रम, जहां राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए गुरु वशिष्ठ की सलाह पर श्रृंगी ऋषि से पुतेष्ठि यज्ञ करवाया था। यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है, जो  यहां आकर श्रृंगी ऋषि के विग्रह के सम्मुख अपनी विपदा हरने की प्रार्थना करते हैं। साथ ही बगल में स्थित मां शांता देवी की गुफा में भी वे मत्था टेंकना नहीं भूलते। सरयू नदी की गोद में बसे इस पौराणिक स्थल पर साधु संतों की मंडली भी इस मौके पर उपस्थित होती है। 

देवी शांता के बारे में तुलसी दास जी के मानस में कोई उल्लेख्य नहीं मिलता लेकिन दक्षिण के पुराणों में स्पष्ट रूप से शांता के चरित्र का वर्णन किया गया है | युद्धोपरांत माँ कौशल्या के बताने पर जब चारों भाई अपनी बहन शांता से मिलते हैं तो वे अपने भाइयों से अपने त्याग का फल मांगते हुए उन्हें सदैव साथ रहने का वचन लेती हैं | भाई अपनी बहन के त्याग को व्यर्थ नहीं जाने देते और जीवन भर एक दुसरे की परछाई बनकर रहते हैं |   

21 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर जानकारी

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार(14-08-2020) को "ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो" (चर्चा अंक-3793) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

"मीना भारद्वाज"

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

राम की सहोदरी शान्ता के बारे में
अच्छी जानकारी दी है आपने।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
हार्दिक धन्यवाद

दिगम्बर नासवा ने कहा…

राम जी की बहन की रोचक जानकारी ...
ये सच है की अधिकाँश लोग इस चरित्र को नहीं जानते ...
लाजवाब ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
आपको भी सपरिवार शुभ पर्व की मंगलकामनाऐं

Kadam ने कहा…

Ansuni, beehatariin jankari

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है

Rishabh Shukla ने कहा…

बेहद रोचक जानकारी

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत ही अच्छी जानकारी दी हमने तो पहली बार पढ़ा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ऋषभ जी
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सवाई सिंह जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है।
ऐसा माना जाता है कि इन्हीं का वंश आगे चलकर सेंगर राजपूत बना।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी

Kamini Sinha ने कहा…

राम जी की एक बहन तो थी इसकी जानकारी मुझे थी मगर इतना विस्तृत वर्णन नहीं पता था,राम जी की बहन शांता जी के त्याग को इतिहासकारों ने अनदेखा कर दिया शायद इसीलिए आज भी समाज में बहन-बेटियों के त्याग को अनदेखा कर दिया जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद आपको ये अमूल्य जानकारी साझा करने के लिए.सादर नमन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी
सपरिवार स्वस्थ व प्रसन्न रहें

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनुराधा जी
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
हमारे ग्रंथों में कथा-कहानियों का अकूत खजाना है। उसके एक अंश को खंगालने के लिए पूरा जीवन भी कम है

Jyoti Dehliwal ने कहा…

गगन भाई, बहुत विस्तृत जानकारी दी है आपने शांता देवी के बारे में।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
सदा स्वागत है आपका

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