श्रीराम जिनका नाम बच्चा-बच्चा जानता है। उनके भाईयों के साथ-साथ उनकी पत्नियों के बारे में सारी जानकारी उपलब्ध है। उनके परिवार की तो बात छोड़िए, उनके संगी साथियों, यहां तक की उनके दुश्मनों के परिवार वालों के नाम तक लोगों की जुबान पर हैं। उन्हीं श्रीराम की एक सगी बहन भी थी। उनके बारे में अब जा कर लोग कुछ-कुछ जानने लगे हैं ! यह जानकारी अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इसी बीच उनकी एक और बहन ''कुकबी जी'' का नाम भी सामने आ गया है ! नाम के सिवा उनके बारे में और कोई जानकारी फिलहाल उपलब्ध नहीं हो पा रही है। फिलहाल शांता जी के बारे में जो जानकारी मिलती है उसी को साझा किया है ...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
अंग देश नरेश रोमपद तथा उनकी पत्नी वर्षिणी को प्रभु-कृपा से दुनिया की हर नियामत उपलब्ध थी। पर बढ़ती उम्र के साथ नि:संतान होने का दुख दोनों को सालता रहता था। यही एक कारण था जो अंदर ही अंदर दोनों को खाए जाता था। एक बार मन बहलाने के लिए दोनों अयोध्या महाराज दशरथ के यहां पधारे। रानी वर्षिणी महारानी कौशल्या की छोटी बहन भी थीं। वहीं उन्होंने सुंदर, सुशील, वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत दशरथ पुत्री शांता को देखा ! दोनों उस पर मोहित हो गए और हंसी-हंसी में ही राजा दशरथ से उसको गोद लेने की इच्छा जाहिर कर दी। दशरथ भी मान गए। बाद में अपने वचन की रक्षार्थ उन्होंने कन्या राजा रोमपद को सौंप दी तथा साथ ही दिलासा भी दिया कि संतान प्रेम उन्हें विचलित न कर दे, इसलिए उसे कभी भी अयोध्या नहीं बुलाएंगे । इस तरह शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। बड़ी होने पर उनका विवाह शृंग ऋषि से हुआ जो महर्षि विभाण्डक और अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे।
इधर अयोध्या में राजा दशरथ अपना कोई उत्तराधिकारी ना होने के कारण चिंताग्रस्त रहने लगे थे। उनकी बढती उम्र और गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए गुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी। राजा को क्या एतराज हो सकता था ! उन्होंने अपनी स्वीकारोक्ति दे दी। पर इस विशेष यज्ञ की यह ख़ास बात थी कि इसे पूर्ण करवाने वाले पुरोहित के सारे पुण्य यज्ञ की ज्वाला में भस्म हो जाते थे। इसलिए ऋषि-महर्षि इस यज्ञ को करने से बचते थे। ऐसे में वशिष्ठ जी ने दशरथ को शृंग ऋषि का नाम सुझाया जो उनके जमाता भी थे। दशरथ ने, अपने शांता को अयोध्या ना बुलाने के संकल्प को याद रख, ससम्मान सिर्फ शृंग ऋषि को प्रस्ताव भेज दिया ! ऋषि पुण्यात्मा, सरल ह्रदय और स्नेहिल व्यक्ति थे। उनमें अथाह आध्यात्मिक क्षमता थी। वे अपने परिवार ख़ासकर शांता से बहुत नेह रखते थे। उसी के कहने और मनाने पर ही वे इस यज्ञ को करवाने के लिए तैयार भी हुए थे।इसलिए अकेले अयोध्या जाने की बात उन्हें ठीक नहीं लगी और उन्होंने यज्ञ करवाने से इंकार कर दिया। फिर बाद में दशरथ ने उनकी बात मानी और यज्ञ पूरा हुआ। अयोध्या से करीब चालीस की मी दूर, जहां शृंग ऋषि का आश्रम भी है, वह जगह आज भी मौजूद है। यज्ञ के पश्चात शृंग ऋषि फिर जंगलों में, अपने खोए हुए पुण्यों को प्राप्त करने, घोर तपस्या हेतु प्रस्थान कर गए। तुलसी रामायण में शांता जी का जिक्र ना होने के कारण अधिकांश लोगों को उनके बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं है। पर देश में उनके दो-तीन मंदिर जरूर पाए जाते हैं।
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शांता देवी का उल्लेख अपने यहां तो जगह-जगह मिलता ही है, लाओस और मलेशिया की कथाओं में भी उसका विवरण मिलता है। पर आश्चर्य इस बात का है कि रामायण या अन्य राम कथाओं में उसका उल्लेख नहीं है ? पता नहीं क्यूं, असमान उम्र तथा जाति में ब्याह दी गयी कन्या का अपने समाज तथा देश के लिये चुपचाप किए गए त्याग का कहीं विस्तृत उल्लेख किया गया ? क्या सिर्फ दूसरे कुल में गोद दे दिये जाने की वजह से ?
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21 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर जानकारी
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार(14-08-2020) को "ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो" (चर्चा अंक-3793) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
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"मीना भारद्वाज"
सुशील जी
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार
मीना जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
राम की सहोदरी शान्ता के बारे में
अच्छी जानकारी दी है आपने।
शास्त्री जी
हार्दिक धन्यवाद
राम जी की बहन की रोचक जानकारी ...
ये सच है की अधिकाँश लोग इस चरित्र को नहीं जानते ...
लाजवाब ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....
नासवा जी
आपको भी सपरिवार शुभ पर्व की मंगलकामनाऐं
Ansuni, beehatariin jankari
कदम जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है
बेहद रोचक जानकारी
बहुत ही अच्छी जानकारी दी हमने तो पहली बार पढ़ा
ऋषभ जी
अनेकानेक धन्यवाद
सवाई सिंह जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है।
ऐसा माना जाता है कि इन्हीं का वंश आगे चलकर सेंगर राजपूत बना।
बहुत सुंदर जानकारी
राम जी की एक बहन तो थी इसकी जानकारी मुझे थी मगर इतना विस्तृत वर्णन नहीं पता था,राम जी की बहन शांता जी के त्याग को इतिहासकारों ने अनदेखा कर दिया शायद इसीलिए आज भी समाज में बहन-बेटियों के त्याग को अनदेखा कर दिया जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद आपको ये अमूल्य जानकारी साझा करने के लिए.सादर नमन
ओंकार जी
सपरिवार स्वस्थ व प्रसन्न रहें
अनुराधा जी
हार्दिक आभार
कामिनी जी
हमारे ग्रंथों में कथा-कहानियों का अकूत खजाना है। उसके एक अंश को खंगालने के लिए पूरा जीवन भी कम है
गगन भाई, बहुत विस्तृत जानकारी दी है आपने शांता देवी के बारे में।
ज्योति जी
सदा स्वागत है आपका
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