शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

हेलो, मैं "मनाली" बोल रही हूँ.

यह पोस्ट है तो पुरानी, पर इस बार फिर जाना हो पा रहा है तो इस लालच में कि शायद कोई "अनदेखा अपना "वहाँ मिल ही जाए सो.................................

नाम तो आपने जरूर सुन रखा होगा, फिर भी अपना परिचय करवाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूँ। मैं मनाली हूं :-

मेरे परिवार हिमाचल में आपका स्वागत है। मेरे परिवार के सारे सदस्य बहुत सुंदर, शांत और आथित्य प्रेमी हैं। मेरे सबसे बड़े भाई शिमले को हिमाचल की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। हम भाई बहन एक से बढ़ कर एक खूबियों के मालिक हैं। मैं और मेरा भाई कुल्लू दोनों जुड़वां हैं। एक राज की बात बताती हूं। कुल्लू थोड़े पूराने विचारों का है। इसीलिए उसकी सारी पूरानी बस्तियां, मंदिर, मोहल्ले वैसे के वैसे ही हैं। पर मेरे बार-बार टोकते रहने पर अब धीरे-धीरे बदलना शुरु कर रहा है। जिसके फलस्वरूप उसे एक फ्लाई-ओवर का पुरस्कार मिला है। इससे पीक सीजन में, अखाड़ा बाजार पर लगने वाले घंटों के जाम से यात्रियों को राहत भी मिल गयी है। उसकी बनिस्पत मैं आधुनिक विचारों की हूं। इसी कारण पर्यटक अब मेरे पास आना ज्यादा पसंद करते हैं। पर इस आधुनिकता का खामियाजा भी मुझे भुगतना पड़ा था, सालों पहले, जब हिप्पी समुदाय के लोगों ने मेरे यहां जमावड़ा डाल, चरस गांजे का अड़्ड़ा बना कर दुनिया भर में मुझे बदनाम कर दिया था। बड़ी मुश्किलों के बाद धीरे-धीरे फिर मैंने अपना गौरव प्राप्त कर लिया है।
कुल्लू से मेरी दूरी 40 किमी की है। व्यास, जिसे नद होने का गौरव प्राप्त है, के दोनों किनारों पर बने सुंदर सड़क मार्ग यात्रियों को मुझ तक पहुंचाते हैं। व्यास के दोनों ओर सैकड़ों गांव बसे हुए हैं पर ठीक बीस किमी पर एक कस्बा पतली कुहल है, जो आस-पास के गांवों की जरूरतों को पूरा करता है। इसी के पास नग्गर नामक स्थान पर विश्व प्रसिद्ध रशियन चित्रकार ‘निकोलस रोरिक’ की आर्ट गैलरी है। रोरिक हिंदी फिल्म जगत की पहली सुपर-स्टार तथा पहले दादा साहब फाल्के पुरस्कार की विजेता देविका रानी के पति थे। पतली कुहल में सरकारी मछली पालन केन्द्र भी है। पर जैसे-जैसे लोगों की आवाजाही बढ़ रही है वैसे-वैसे मेरा प्राकृतिक सौंदर्य भी खतरे में पड़ता जा रहा है। मेरे माल रोड से पांच-सात किमी पहले से ही होटलों की कतारें शुरु हो जाती हैं। जिनकी सारी गंदगी व्यास को भी दुषित बना रही है। यह एक अलग विषय है। अभी आप अपना मूड और छुट्टियां खराब ना कर मेरी अच्छाईयों की तरफ ही ध्यान दें। जहां माल रोड खत्म होता है वहीं से एक सीधी चढ़ाई आप को हिडम्बा माता के मंदिर तक ले जाती है, घबड़ाने की बात नहीं है वहां तक आप अपनी गाड़ी से आराम से पहुंच सकते हैं। इस जगह पहले घना जंगल था पर उसे अब व्यवस्थित कर पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया है। इसकी विस्तृत चर्चा फिर कभी। नीचे मुख्य मार्ग, व्यास को पार कर दूसरे किनारे से आने वाले रास्ते से मिल लाहौल-स्पिति, जो एशिया का सबसे बड़ा बर्फिला रेगिस्तान है, की ओर बढ़ जाता है। इसी पर मेरे माल रोड से एक-ड़ेढ़ किमी की दूरी से एक सड़क उपर उठती चली जाती है महर्षि वशिष्ठ के आश्रम की ओर। यहां उनका प्राचीन मंदिर है। अब कुछ सालों पहले एक राम मंदिर का भी निर्माण हो गया है। यहां एक गर्म पानी का सोता भी है, जिसमें नहाने वालों के चर्म रोगों को मैंने ठीक होते देखा है। जो इस पानी में प्रचूर मात्रा में सल्फर की उपस्थिति से संभव है। पर यहां भी बढ़ती आबादी का दवाब साफ दिखाई पड़ने लगा है। यह सुंदर रमणीक स्थान अब दुकानों घरों से पट गया है। फिर भी प्रकृति ने अपना खजाना मुक्त हस्त से मुझ पर लुटाया है। अभी भी और जगहों की बनिस्पत आप मुझे निसर्ग के ज्यादा पास पाएंगें। बर्फीले पर्वत शिखर उनकी ढ़लानों पर सेवों के बागीचे, सीढ़ी नुमा खेत, खिलौने की तरह के घर और यहां के सीधे-साधे वाशिंदे आपको मोह ना लें तो कहिएगा। अभी भी यहां के हवा-पानी तथा लोगों के दिलों पर बाहरी सभ्यता की बुराईयां पूरी तरह से हावी नहीं हो पायी हैं। हम अपने नाम "देव भूमी" को अभी भी सार्थक करते हैं। अपने बारे में तो कोई भी कहने से नहीं थकता। हो सकता है कि पढ़ने से आप बोर भी हो जायें। पर यह मेरा दावा है कि एक बार यदि आप मेरे पास आयेंगें तो फिर मुझे भूल नहीं पायेंगें। अब तो मुझ तक पहुंचने के लिए हर तरह की सुविधा भी उपलब्ध है।

तो कब आ रहे हैं, मैं इंतजार में हूं।

7 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जी , बहुत रोचक ढंग से आप ने मनाली जी से मिलवाया.
धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

ये बढ़िया रोचक तरीका निकाला आपने मनाली से मिलवाने का.

K.P.Chauhan ने कहा…

aapne manaali ke sondary kaa varnan bahut hi sundar shabdon me kiyaa hai vaise main kabhi bhi manaali nahin gayaa sunaa jaroor thaa par aapke dwaaraa vahaan kaa varnan asmarneey hai isliye main koshish karungaa ki is manaali jaisi sundar jagah ko dekhkar lutf uthaauun , jaankaari ke liye dhanywaad

K.P.CHAUHAN

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

ओहो, आप मनाली हैं।
आपका एक गुमनाम भाई मलाना भी तो है।
नग्गर से ट्रैकिंग करते हुए तीन दिन का रास्ता है, और भुन्तर-मनीकरन रोड पर स्थित जरी से कुछ घण्टों का रास्ता है।
कृपया अपने उस भाई से किसी दिन जरूर मिलवाइये।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

मनाली जी से मिलना बडा सुखद लगा, इस गर्मी में मनाली जी के नाम से ही ठंडक घुल गई.

रामराम.

Sanjay Sharma ने कहा…

ऐसी गर्मी में मनाली घूमने का मजा ही और है ... अच्छी रचना ... खूब लिखा है !!!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नीरज जी,
मलाणा पर दो पोस्टें लिख चुका हूं। यदि कभी जाने का मौका मिले तो 15 अगस्त के दिन पहुंचने की कोशिश करें । उस दिन वहां उनका देवता मंदिर के बाहर आता है। उस दिन बाहर से आने वाले के आदर-सत्कार का पूरा जिम्मा गांव वालों के ऊपर रहता है। पहुंचना जरूर कष्ट साध्य है पर एक ना भूलने वाला सफर और यादगार रहेगी।

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