रविवार, 8 नवंबर 2009

रामदेव जी, सारी सृष्टि का जन्म ही "वैसी" जगह से होता है तो?

वैसे ऐसे लोगों के खिलाफ़ कुछ कहना नहीं चाहिए जो लोगों की भलाई में जुटे हुए हों। पर कभी-कभी कुछ ऐसी बात हो जाती है कि मजबूर हो कर कहना ही पड़ता है।
दो-एक दिन पहले श्रीमति जी, अपने हद से ज्यादा पसंदिदा चैनलों को छोड़ सर्च के चक्कर में पड़ी हुईं थीं (बहुत ज्यादा संभावाना थी कि उनके वालों पर विज्ञापन फेंके जा रहे हों) कि अचानक रामदेव बाबा सामने आ गये, और मेरे कानों में कुछ अंडे जैसे शब्द पड़े। सर्चिंग रोकी गयी।
रामदेव जी अंडे की बुराईयों को तरह-तरह के उदाहरण दे कर समझा रहे थे। इतना तो ठीक था पर अचानक उन्होंने उसे और बदतर दिखाने के लिये कहा कि जो चीज (क्षमा चाहता हूं इसमें एक शब्द भी मेरा नहीं है) पैखाने के रास्ते बाहर आती है वह कैसे अच्छी हो सकती है। इस बात को उन्होंने दो-तीन बार दोहराया। बोले कि उसकी सिर्फ पैकिंग ही अच्छी है बाकी उसमेँ ऐसा कुछ नहीं होता कि उसे खाया जाय। "ऐसी जगह से निकलने वाली कोई भी चीज अच्छी हो ही नहीं सकती। वह त्याज्य होती है।" यह बात ठीक है कि वे अपनी रौ में बोलते चले गये और उनका आशय लोगों को मांस भक्षण से दूर करना था, पर अतिरेक में उनका तर्क कुतर्क में बदल गया। इतने विद्वान आदमी के मुच से ऐसी बातें कुछ शोभा नहीं देतीं। आगे उन्होंने कुछ गंद खाने वाले पशुओं का भी जिक्र किया। वह अलग विषय है।
मैं और मेरा पूरा परिवार पुर्णतया शाकाहारी हैं। रामदेव जी की और उनके अभियान के भी हम सब प्रसंशक हैं। पर जो बात उन्होंने अंडे के उद्गम को ले कर कही वही खलने वाली है। उन्हें भी पता ही होगा कि सारी सृष्टि का सुत्रपात ही जन्नेद्रिंयों से होता है। बड़-बड़े ऋषि-मुनि, विद्वान, प्रभू भक्त, यहां तक कि हमारे आराध्यों को भी मां की कोख से ही जन्म लेना पड़ा है। तो ऐसे रास्ते से आने पर वह सब त्याज्य तो नहीं हो गये। मैं खाने-खिलाने की बात नहीं कर रहा हूं, सिर्फ उनका ध्यान इस ओर दिलाना चाहता हूं कि कुछ कर्मकांडों में गो-मुत्र पान करने का विधान है। ऐसी भी कथाएं मिलती हैं कि ऋषियों ने गाय के गोबर में अनपचे अन्न को ग्रहण किया था। फिर धरती का अमृत कहे जाने वाले शहद को क्या कहेंगे जो मक्खी के पेट से बाहर आया उसका लार रूपी भोजन होता है।
हर चीज का आज व्यवसायी करण होता जा रहा है। रामदेव जी भी उससे बच नहीं पा रहे हैं। बाज़ार में खुद को टिका पाना किसी के लिये भी टेढी खीर होता जा रहा है। पर जो भी हो अतिरेक से बचना भी बहुत जरूरी है।

14 टिप्‍पणियां:

उम्मतें ने कहा…

बाबा रामदेव की शान में कोई गुस्ताखी किये बिना आपने बहुत बड़ी बात कह दी है ! "अतिरेक / तर्क / कुतर्क" के विषय में आपका विश्लेषण यथार्थपरक है !

Unknown ने कहा…

bahut bahut bahut sahi baat,,,,,,,

abhinandan aapka !

Unknown ने कहा…

गोमूत्र और गोबर वाली बात आपने एकदम सही कही… वैसे शायद बाबा को ये मालूम नहीं होगा कि फ़िलहाल अण्डा, दाल से ज्यादा सस्ता है… गरीबों के लिये… :)

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

बाबा रामदेव की जे हो . बिना लगाम घोड़ा दौड़ रहा है . कभी तो रजनीश ,चन्द्र स्वामी की तरह इनका भी यही हाल होगा

प्रवीण ने कहा…

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गगन शर्मा जी,
पूर्णतया सहमत हूँ आपसे,
अंडे के बारे में तो आपने सुन लिया और लिख दिया परंतु आप १०-१५ दिन तक रोजाना योगऋषि रामदेव जी के विचार सुनें तो आपके ज्ञात होगा कि कैसे वे अन्य विषयों पर भी अवैज्ञानिक और आधे अधूरे ज्ञान से भरी बातें करते हैं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रवीण जी,
T.V. बहुत कम देख पाता हूं। जब कभी मौका मिलता भी है तो प्रवचन कर्ताओं से बचे रहने की फिराक में ही रहता हूं।

Anil Pusadkar ने कहा…

सत्य वचन महाराज जी।सहमत है आपसे शर्मा जी।

Ashish (Ashu) ने कहा…

भाई आपने बिल्कुल सही कहा "बाज़ार में खुद को टिका पाना किसी के लिये भी टेढी खीर है।" खॆर जो भी हो अब तो बाबा जी को सबक लेना चाहिये ।

Himanshu Pandey ने कहा…

निश्चय ही अतिरेकी तो नहीं ही होना चाहिये । श्रद्धेय जब ऐसा कहने लगें तो सुपाच्य नहीं होता ।

शरद कोकास ने कहा…

मनुष्य ने हज़ारो बरसो मे यह तय किया कि खाद्य क्य और अखाद्य क्या । अब यह मनुष्य पूरी दुनिया मे एक सा नही हो सकता तो उसका खाद्य एक सा कैसे होगा । यह भौगोलिक परिस्थितियो पर निर्भर है और मानना न मानना हमारे ऊपर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया लिखा है।
सहमत हैं।

Smart Indian ने कहा…

बात सही है !

Kranti ने कहा…

जहाँ तक मैं समझता हूँ वो भी एक आदमी ही हैं और १००% में से १०% गलत भी हो सकता है! पर मैं हैरान इस बात से हूँ पर हर बार एक तरह कि दो चीजों में तुलना नहीं की जा सकती. और आप बुराइयों की आलोचना करते हैं तो अच्छाइयों की तारीफ भी करें.
अगर कहीं कुछ गलत लाख तो क्षमा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रविजी,
मैंने पहले ही लिखा है कि वैसे लोगों की आलोचना करना ठीक नहीं लगता जो समाज की भलाई में जुटे हों। पर कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है जिसे जाहिर करना जरूरी हो जाता है।
स्वागत है आपके विचारों का।
धन्यवाद।

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