शनिवार, 7 नवंबर 2009

किस्मत से ज्यादा क्या सचमुच नहीं मिलता ? (:

बात कुछ पूरानी जरूर है पर है बड़ी दिलचस्प। उस समय संचार व्यवस्था तो थी नहीं। लोग आने-जाने वालों, व्यापारियों, घुम्मकड़ों, सैलानियों से ही देश विदेश की खबरें, जानकारियां प्राप्त करते रहते थे।

ऐसे ही अपने आस-पास के व्यापारियों की माली हालत अचानक सुधरते देख छोटी-मोटी खेतीबाड़ी करने वाले जमुना दास ने अपने पड़ोसी की मिन्नत चिरौरी कर उसकी खुशहाली का राज जान ही लिया। पड़ोसी ने बताया कि दूर देश के राज में बहुत खुशहाली है। वहां इतना सोना है कि लोग रोज जरूरत की मामूली से मामूली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी सोने का उपयोग करते हैं। वहां हर चीज सोने की है। सोना मिट्टी के मोल मिलता है।

ऐसी बातें सुन जमुना दास भी उस देश की जानकारी ले वहां जाने को उद्यत हो गया। पर उसके पास जमा-पूंजी तो थी नहीं। पर इस बार प्याज की फसल ठीक-ठाक हुई थी, उसी की बोरियां ले वह अपने गंत्व्य की ओर रवाना हो गया। उसकी तकदीर का खेल कि वहां के लोगों को मसाले वगैरह की जानकारी नहीं थी, प्याज को चखना तो दूर उसका नाम भी नहीं सुना था। जब जमुना दास ने उसका उपयोग बताया तो वहां के लोग उसे खा खूशी से पागल हो गये और जमुना का सारा प्याज मिनटों में खत्म हो गया। उसकी बोरियों को उन लोगों ने सोने से भर दिया। जमुना वापस अपने घर लौट आया। उसके तो वारे-न्यारे हो चुके थे। अब वह जमुना दास नहीं सेठ जमुना दास कहलाने लग गया था।

उसकी जिंदगी बदलते देख उसके पड़ोसी समर से भी नहीं रहा गया। एक दिन वह भी हाथ जोड़े जमुना दास के पास आया और एक ही यात्रा में करोड़पति होने का राज पूछने लगा। उस समय लोगों के दिलों में आज की तरह द्वेष-भाव ने जगह नहीं बनाई थी। पड़ोसी, रिश्तेदारों की बढोत्तरी से, किसी की भलाई कर लोग खुश ही हुआ करते थे। जमुना ने भी समर को सारी बातें तथा हिदायतें विस्तार से बता समझा दीं और उस देश जाने के लिये प्रोत्साहित किया। पर बात वही थी जमुना जैसी, समर की जमा-पूंजी भी उसकी खेती ही थी। संयोग से उसने इस बार लहसुन की अच्छी फसल ली थी सो वही ले कर वह विदेश रवाना हो गया।

ठीक-ठाक पहुंच कर उसने भी अपना सामान वहां के लोगों को दिखाया। भगवान की कृपा, लहसुन का स्वाद तो उन लोगों को इतना भाया कि वे सब प्याज को भी भूल गये, इतने दिव्य स्वाद से परिचित करवाने के कारण वे सब अपने को समर का ऋणी मानने लग गये। पर उन लोगों के सामने धर्मसंकट आ खड़ा हुआ। इतनी अच्छी चीज का मोल भी वे लोग कीमती वस्तु से चुकाना चाहते थे। उनके लिये सोने का कोई मोल नहीं था। तो क्या करें ? तभी वहां के मुखिया ने सब को सुझाया कि सोने से कीमती चीज तो अभी उनके पास कुछ दिनों पहले ही आई है। उसी को इस व्यापारी को दे देते हैं। क्योंकि इतनी स्वादिष्ट चीज के बदले किसी अनमोल वस्तु को दे कर ही इस व्यापारी का एहसान चुकाया जा सकता है। सभी को यह सलाह बहुत पसंद आयी और उन्होंने समर के थैलों को प्याज से भर अपने आप को ऋण मुक्त कर लिया।
बेचारा समर (: (: (: (:

4 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

स्थान परिवर्तन एवं आवश्यक्ता से वस्तुओं के मुल्य मे वृद्धि हो जाती है, बहुत सुंदर-आभार

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

बहुत ही ज्ञानवर्द्धक कहानी। जब भी हम देखा देखी कर व्‍यापार करते हैं तब ऐसा ही होता है। इसलिए किस्‍मत से ज्‍यादा किसी को कुछ नहीं मिलता।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अक्सर यह थ्योरी अनेकों बार सच पाई गई है. सुंदर आलेख.

रामराम.

बेनामी ने कहा…

ऐसा भी होता है :-)

बी एस पाबला

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