दूध पीते बच्चे को परेशान करती हिचकी, बड़ों को अचानक शुरु हो तंग करती हिचकी, शराबियों की पहचान बनी हिचकी और कभी-कभी जिंदगी की अंतिम हरकत हिचकी। देखने सुनने में शरीर की एक सामान्य सी हलचल, परन्तु ज्यादा देर तक टिक जाये तो मुसीबत।
सांस अंदर लेने से उतकों की कठोर परतों से बना, वक्षस्थल के निचले हिस्से में स्थित, 'डायाफ़्राम' पेट की ओर संकुचित हो फेफडों में हवा भरने देता है। इससे भोजन को श्वास नली में जाने से रोकने वाला 'एपिग्लाटिस' और वाक तंतुओं का प्रवेशद्वार 'ग्लाटिस' दोनो खुल जाते हैं। इस क्रिया में व्यवधान आने पर हिचकी शुरु हो जाती है। इसके आने पर 'डायाफ्राम' में ऐंठन शुरु हो जाती है जिससे हवा तेजी से ग्लाटिस और एपिग्लाटिस पर पडती है, जिससे दोनों झटके से बंद होते हैं और वही आवाज हिचकी के रूप में सुनाई पड़ती है। जब तक व्यवधान दूर नहीं हो जाता यह क्रिया चलती रहती है।
कुछ क्षण सांस रोकने, चीनी चूसने, ठंडा पानी पीने या गिलास के बाहर वाले किनारे से पानी पीने या एक लिफ़ाफ़े को मुंह से फुलाकर उसमें सांस लेने से राहत मिलती है। कागज़ के थैले में नाक द्वारा सांस लेने से कार्बन डाई आक्साईड के मस्तिष्क में पहुंचने से तंत्रिकाओं की क्रियाशीलता में कमी आने के कारण हिचकी रुक जाती है। यदि मस्तिष्क को भ्रमित या अचंभित कर दिया जाए तो भी फ़र्क पडता है। शायद इसीलिए हमारे देश में हिचकी आने पर कहा जाता है कि कोई याद कर रहा है, इस तरह दिमाग का ध्यान बटाने से फ़र्क पड जाता है।
एलोपैथी में उपचार तब ही किया जाता है, जब हिचकी ना रुकने से मनुष्य तनाव में आ जाता है। इन परिस्थितियों में क्लोरप्रोमेज़िन या एमाइल नाइट्रेट जैसी दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं। इनसे फायदा ना होने पर आप्रेशन द्वारा फ्रेनिक तंत्रिका के डायाफ्राम तक जाने वाले भाग को निकाल दिया जाता है। पर इससे सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है।
सांस अंदर लेने से उतकों की कठोर परतों से बना, वक्षस्थल के निचले हिस्से में स्थित, 'डायाफ़्राम' पेट की ओर संकुचित हो फेफडों में हवा भरने देता है। इससे भोजन को श्वास नली में जाने से रोकने वाला 'एपिग्लाटिस' और वाक तंतुओं का प्रवेशद्वार 'ग्लाटिस' दोनो खुल जाते हैं। इस क्रिया में व्यवधान आने पर हिचकी शुरु हो जाती है। इसके आने पर 'डायाफ्राम' में ऐंठन शुरु हो जाती है जिससे हवा तेजी से ग्लाटिस और एपिग्लाटिस पर पडती है, जिससे दोनों झटके से बंद होते हैं और वही आवाज हिचकी के रूप में सुनाई पड़ती है। जब तक व्यवधान दूर नहीं हो जाता यह क्रिया चलती रहती है।
कुछ क्षण सांस रोकने, चीनी चूसने, ठंडा पानी पीने या गिलास के बाहर वाले किनारे से पानी पीने या एक लिफ़ाफ़े को मुंह से फुलाकर उसमें सांस लेने से राहत मिलती है। कागज़ के थैले में नाक द्वारा सांस लेने से कार्बन डाई आक्साईड के मस्तिष्क में पहुंचने से तंत्रिकाओं की क्रियाशीलता में कमी आने के कारण हिचकी रुक जाती है। यदि मस्तिष्क को भ्रमित या अचंभित कर दिया जाए तो भी फ़र्क पडता है। शायद इसीलिए हमारे देश में हिचकी आने पर कहा जाता है कि कोई याद कर रहा है, इस तरह दिमाग का ध्यान बटाने से फ़र्क पड जाता है।
एलोपैथी में उपचार तब ही किया जाता है, जब हिचकी ना रुकने से मनुष्य तनाव में आ जाता है। इन परिस्थितियों में क्लोरप्रोमेज़िन या एमाइल नाइट्रेट जैसी दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं। इनसे फायदा ना होने पर आप्रेशन द्वारा फ्रेनिक तंत्रिका के डायाफ्राम तक जाने वाले भाग को निकाल दिया जाता है। पर इससे सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है।
10 टिप्पणियां:
बहुत उपयोगी..
जानकारी देने के लिए धन्यवाद। हिचकी आने पर डराने या चौंकानेवाली कोई बात बोलने पर भी हिचकी बंद हो जाती है।
आपने अच्छी बात बताई। धन्यवाद।
जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
धन्यवाद अच्छी जानकारी देने के लिये
कहते हे जुल्मी जब याद करे तो भी ..... आती हे
मष्तिष्क को भ्रमित या अचंभित
करने वाली बात है। चाहे किसी भी रूप में हो।
Sir mare Bade bhai ko Bren Apsas h or hichkiya chalti rahti h dr.ki dawa s bhi koi fhark nahi pada Aap koi or salha dae sakte ho to do sir
Sir pllz. Jaldi Riply kare.
Kya aap ke bhai ko hiccaki band ho gye
Or kya dawai li
Hichki Aane Per Kya Kare iska upay bahut acchi batai hai aapne, iske liye aapko dhanaywaad!
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