कुछ दिन पहले फ़िल्म अभिनेता राजपाल यादव ने एक चुटकुला सुनाया था कि एक बाप अपने संघर्षरत बेटे को टी वी पर एनिमल किंगडम देखते देख पूछता है कि अब तो कुत्ते बिल्लीयां भी पर्दे पर आ गये तुम कब आओगे। पढ़ सुन कर हंसी आती है पर सच यह है कि माता-पिता कि अपनी संतानों से अपेक्षायें काफी बढ़ गयी हैं। जिसका नज़ारा हम आये दिन छोटे पर्दे पर बढ़ते रियाल्टी शोज़ के रूप में देखते हैं। भाग लेने वाले बच्चों से ज्यादा उनके माँ-बाप टेंश्नाए रहते हैं। अपनी जिंदगी के अधूरे सपनों को वह अपनी संतानों द्वारा पूरा होता देखना चाहते हैं उसके लिए चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
तारे जमीं पर मैने भी देखी है, अच्छी भी लगी थी। उस समय भी एक प्रश्न मन में उठा था, आज यह समाचार पढ़ कर फिर उस सवाल ने सर उठाया कि फ़िल्म का नायक बच्चा यदि अच्छा चित्रकार ना होता तो पिक्चर का अंत क्या होता। आज हजारों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें डिस्लेक्सिया नाम की बिमारी नहीं है, पर वह सब ना पढ़ने में अच्छे हैं नाही किसी कला में, यहां तक कि उनकी किसी चीज विशेष में रुचि तक नहीं है। पर उनके माता-पिता, पालक, परिवार तारे---, या रियाल्टी शोज़ देख कर सफलता के दिवाने हो कर अपने बच्चों से अपेक्षा करने लग जायें कि पढ़ाई ना सही खेल में, खेल ना सही नाच में, गाने में कहीं तो कुछ करो। आमीर ने बहुत अच्छी फ़िल्म बनाई पर उनकी यह बात गले नहीं उतरती कि हर बच्चे में कुछ विलक्षण प्रतिभा छुपी होती है। उल्टे वह महत्वाकाक्षीं मां-बाप की सुप्त कामनाओं को हवा दे देते हैं। उन्होंने तो जिद पकड़ कर अपने नायक को हीरो बना दिया पर आम जिंदगी में ऐसा होना क्या संभव है।
आस्कर पाने वाली फ़िल्में जिंदगी के काफी करीब होती रही हैं। इसलिए तारे----, क्युंकि हमारी फ़िल्म है, सिर्फ़ इसलिए उससे ज्यादा अपेक्षा करना ठीक नहीं होगा।
मेरे अनुसार अब तक आस्कर के लिए भेजी गयीं फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म "मदर इंडिया" थी। पर उस समय जूरी को यह समझाना मुश्किल हो गया था कि एक माँ अपने भूख से बिलखते बच्चों को बचाने के लिए साहूकार का प्रस्ताव क्यों नहीं मान लेती है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
ठेका, चाय की दुकान का
यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार ...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
2 टिप्पणियां:
ऑस्कर पूरा लॉबिंग का खेला है एक स्टेज पर आने के बाद!!
आप की बात से सहमत हू, ्वेसे बहुत कम फ़िल्मे हे जो सही हो ....
धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें