ललित जी तो निकल लिए चुपचाप दिल्ली क लिए । अपन रह गये वहीं के वहीं वह भी महज एक जिद के कारण। अच्छी भली 6x2 की चलायमान सरकारी जगह भी आरक्षित थी, दिन भी निश्चित था, कार्यक्रम भी बना पड़ा था बस जबान धोखा दे गयी। खुद तो कह कर भीतर घुस गयी मुसीबत झेलनी पड़ी सारे शरीर को।
क्या है कि किसी ग्रह चक्कर के झांसे में आ मुंह से निकल गया कि आफिस में बहुत काम है मेरा जाना नहीं हो सकेगा। बस! फिर लाख मनुहारें हुईं, समझाइशें दी गयीं, पर इधर जो कह दिया सो कह दिया की तर्ज पर अपनी बीन बजाते रहे। बाद में जाने के समय "ईनो" के विज्ञापन की तरह हमने लाख हाथ हिलाए पर उधर यही समझा जाता रहा कि "बाय-बाय" हो रही है, और सब जने 1 2 3 ।
अब किस्सा कोताह यह कि एक जिद के कारण नहीं गये तो संसार की हर शह पिल पड़ी हमारे ऊपर। शरीर का कोई पुर्जा टेढा हुआ और पूरा का पूरा सिस्टम ऐंड़-बैंड़ हो कर रह गया।
अब शुरू होता है "खुदा का सेंस आफ ह्युमर।"
घर पर पदार्पण होता है मेरे मित्र त्यागराजन जी का।
"अरे!! शर्मा जी, क्या हाल बना रखा है? क्या हो गया? शुक्रवार तक तो ठीक थे।" जब उन्हें सारी बात बताई तो बोले " चिंता की कोई बात नहीं है। इधर-उधर का खाना बंद करें। दोनो समय मेरे यहां से खाना पहुंच जाएगा। वैसे क्या खायेंगे" फिर खुद ही बोले "तबियत ठीक नहीं है तो एक समय तो खिचड़ी ठीक रहेगी। सब्जी कौन सी खाते हैं?" मैंने कहा ऐसी कोई बात नहीं है मैं हर सब्जी खा लेता हूं। वे बोले नहीं नहीं फिर भी? क्या बोलूं ना बोलूं, मुंह से लौकी निकल गया। सारा मामला फिट।
अब जो मंगलवार से खिचड़ी और लौकी शुरु हुई तो रवीवार आ गया। मैं संकोच के मारे कुछ बोल नहीं पा रहा था। आप सब मेरी हालत का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं। आखिर भगवान को ही मेरे हाल पर दया आई। रवीवार मेरे पास आते ही उन्होंने कहा कि गीता (उनकी श्रीमती जी) कह रही थीं कि भाई साहब एक ही चीज रोज-रोज कैसे खाते हैं, उनको बदलने को पूछो। यह सुन मैंने कहा भाई मेरे आप जो प्रेम से ला रहे हो, खिला रहे हो, मैं खा रहा हूं। आप बदल देंगे तो मेहरबानी।
वे बोले, चलिए कल से आयटम बदलेंगे।
मैंने भी राहत की सांस ली और संकल्प किया कि धोनी जैसे कल के लड़के चाहे विज्ञापनों में कितना भी चिल्लायें, जिद करो, जिद करो। अपन ने फिर कभी जिद नहीं करनी।
इसी संदर्भ में श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के साथ घटी एक घटना याद आ गयी, जो उन्होंने ही कभी अपने अनुभव बांटते समय बताई थी।
एक बार वे महाराष्ट्र के दौरे पर थे। पहले दिन उन्हें नाश्ते में, दोपहर के भोजन में तथा रात्रि के समय भी खाने के साथ गुलाबजामुन परोसे गये। उन्हें कुछ अजीब तो लगा पर सौजन्यवश कुछ बोले नहीं। दूसरे दिन दूसरी जगह भी बार-बार वही गुलाबजामुन की मिठाई मिली फिर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। लेकिन जब तीसरे दिन भी वही गुलाबजामुनी हादसा पेश आने लगा तो उनसे नहीं रहा गया। यथासंभव प्रेम से उन्होंने पूछा कि क्या महाराष्ट्र में गुलाबजामुन ही अत्यधिक प्रिय मिठाई है? तो जो जवाब उन्होंने पाया उसे सुन वह हंसते-हंसते लोट-पोट हो गये। उन्हें बताया गया कि केंद्रीय कार्यालय से आपकी पसंद के बारे में एक पत्रक आया था जिसमें लिखा था कि आपको गुलाबजामुन बहुत प्रिय हैं, सो.............
बाजपेयी जी ने हंसते हुए बताया कि मैंने लौट कर पहला काम यही किया कि मेरी पसंद नापसंद को कार्यालय से भेजने की मनाही कर दी।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
हा हा हा
खिचड़ी और लौकी की सब्जी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है,बाबा रामदेव तो रोज खाने की सलाह देते हैं। आप क्यों पीछे हट रहे हैं? हमने भी कल खिचड़ी ही खाई थी क्योंकि पनीर जो पचाने थे।:)
बहुत रोचक प्रसंग है। चलो अब आगे से ऐसे मौकों पर बोलते हुए हम भी ध्यान रखेगें.... कहीं हम भी इसई तरह ना फंस जाएं;)
ओह!
ध्यान रखना पड़ेगा सब्जी के मामले में
गुलाबजामुन तो चल जाएगी :-)
रोचल प्रसंग
वाह वाह जी आंईदा हमे भी अकल आ गई कोई पूछे तो हम यही कहे गे सुबह अलग अलग परोंठे, दोपहर को रोजाना अलग अलग तरह की हरी सब्जियां साथ मै दही, ओर सालाद साथ मै उवला हुआ पानी(ठंडा कर के) फ़िर बडिया सा गुड, रात के खाने मै दही, कोई भी ताजी सबजी, सुखी या तरई वाली, थोडी सी दाल, सालाद ओर उबला हुआ पानी( ठंडा ) अगर बीयर हो जाये तो इंकार नही
बहुत ही उपयोगी और रोचक!
भाटिया जी,
सामने वाला तो यही सोचेगा कि हे प्रभू मैं ही क्यूं ना बिमार पड़ा :-)
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