शनिवार, 31 जुलाई 2021

एक अनोखा संग्रहालय, शौचालयों का

अपने देश में भी  ऐसा एक विचित्र वस्तु का संग्रहालय है जिसके बारे में अधिकांश देशवासियों को पता ही नहीं है ! जानकारी है भी तो बहुत कम लोगों को !  वह भी आधी-अधूरी !  हालांकि यह  हर एक इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा है !  वह है शौचालय ! जिसके बिना किसी भी इंसान का दिन सुचारु रूप से शुरू नहीं हो पाता  ! इसी की निर्मात्री संस्था द्वारा एक और अनूठी और अभूतपूर्व पहल भी की गई है ! जिसके तहत हाथ से मैला साफ़ करने जैसे अमानवीय काम से छुटकारा पाने वाले कर्मियों के परिवारों के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए  बुनियादी सुविधाओं और गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा प्रदान करने हेतु एक स्कूल का भी निर्माण किया गया है ................!

#हिन्दी_ब्लागिंग    
संग्रहालय एक ऐसा संस्थान है, जिसमे प्राचीन वस्तुओं, युद्धसामग्री, गहने, ममी, जीवाश्म, चित्र आदि का दुर्लभ और पुप्तप्राय चीजों का संग्रह कर शोध, प्रचार व लोगों के अवलोकनार्थ रखा जाता है।  जिससे जनसामान्य को उन चीजों के बारे में भी जानकारी मिल सके जिन्हें वर्तमान में देख सकना असंभव है ! इनका उपयोग शिक्षा, अध्ययन और मनोरंजन के लिए होता है। दुनिया के हर देश मे तरह-तरह के संग्रहालय हैं। जिनमें कोशिश की गयी है, अपने देश के इतिहास, विज्ञान, कला-संस्कृति को सहेज कर रखने की। समय के साथ विभिन्न अजीबोगरीब वस्तुओं के संग्रहालय भी अस्तित्व में आते चले गए ! जैसे महिलाओं के बालों का, जीते-जागते इंसानों के मोम के पुतलों का, पुरानी कारों का, जीवों की हड्डियों का, लंच बाक्सों का, जादू की चीजों का, बारीक वस्तुओं का, ट्राफियों का !  कुछ तो ऐसी चीजों के संग्रहालय बना दिए गए हैं जिनका यहां उल्लेख भी नहीं किया जा सकता !  


अपने देश में भी एक ऐसा और विचित्र वस्तु का संग्रहालय है जिसके बारे में अधिकांश देशवासियों को पता ही नहीं है ! जानकारी है भी तो बहुत कम लोगों को ! वह भी आधी-अधूरी सी ! हालांकि यह  हर एक इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी  का अहम  हिस्सा है !  वह है शौचालय, जिसके बिना  किसी भी  इंसान का  दिन  सुचारु रूप  से शुरू नहीं हो पाता ! इंसान  को अपने  सर पर ‘मैला’ ढोने  के अभिशाप  से मुक्ति  दिलवाने का  संकल्प ले कर  देश में सुलभ शौचालयों की श्रृंखला बनाने वाले डॉ. विंधेश्वरी पाठक ने  अपने एन.जी.ओ. द्वारा उन्हीं शौचालयों  का एक म्यूजियम देश की राजधानी दिल्ली में बना डाला है !




बिहार से शुरुआत कर सारे देश में धीरे-धीरे स्वच्छता का विस्तार करने वाले पाठकजी के मन में एक ऐसा संग्रहालय बनाने की बात आई जिसमें इस अहम वस्तु के इतिहास और समय-समय पर हुए बदलाव के बारे में पूरी जानकारी हासिल हो। इस योजना को मूर्त रूप देने में इनको अपना अमूल्य समय और ऊर्जा खपानी पड़ी। उन्होंने देश विदेश में आधुनिक और पुरातन काल में काम मे आने वाले शौचालयों के बारे में छोटी से छोटी जानकारी हासिल की। इसके लिये वह जगह-जगह विशेषज्ञों, जानकारों के अलावा अलग-अलग देशों के दूतावासों, उच्चायुक्तों से मिले जिन्होंने उनकी पूरी सहायता कर उन्हें इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव, तकनिकी और शोध की विस्तृत जानकारी तथा फोटो वगैरह उपलब्ध करवाए।  


 



उन्हीं के परिश्रम के फलस्वरूप दिल्ली में ''पालम-दाबड़ी मार्ग'' पर स्थित ''महावीर एन्कलेव" में दुनिया का अकेला, अनूठा, विचित्र और अपूर्व संग्रहालय आम जनता के लिए उपलब्ध हुआ ! इस अजायबघर का उद्देश्य है, इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव और विकास की लोगों को जानकारी देना । प्राचीन काल, इतिहास काल से लेकर अब तक उपयोग में लाए गए उपकरणों के साथ-साथ धन कुबेरों के द्वारा उपयोग में लाए जा रहे सोने के टॉयलेट्स का  विवरण भी यहां उपलब्ध है ! इस संग्रहालय का उद्देश्य अवाम को जानकारी प्रदान करने के अलावा  इस क्षेत्र से सम्बंधित लोगों को अपनी वस्तुएं बनाने में उपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाने तथा उन वस्तुओं की बेहतरी के लिए उच्च स्तर पर शोध में मदद करना है ! जिससे वातावरण को दुषित ना होने देने और प्रकृति को स्वच्छ रखने मे सहायता मिल सके ! 




इसके अलावा इस संस्था द्वारा एक अनूठी और अभूतपूर्व पहल की गई है ! जिसके तहत हाथ से मैला साफ़ करने जैसे अमानवीय काम से छुटकारा पाने वाले कर्मियों के परिवारों के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए  बुनियादी सुविधाओं और गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा प्रदान करने हेतु स्कूल की भी व्यवस्था की गई है ! जिसमें इनके लिए 60% और अन्य जातिसमूहों के लिए 40% स्थान उपलब्ध करवाए जाते हैं ! इस शिक्षण संस्थान का प्रयास है कि इन बच्चों को समाज के हर तबके के साथ साथ मिलने-जुलने-चलने का अवसर मिले जिससे उनमें भी आत्मविश्वास की बढ़ोत्तरी हो ! यह हर्ष का विषय है कि इस स्कूल के बच्चे हर दिशा में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। 
सुलभ पब्लिक स्कूल 


इस संग्रहालय का उचित व व्यापक प्रचार नहीं हो पाया है। यही कारण है कि दुनिया के इस एकमात्र अजूबे की देश-विदेश की तो क्या ही कहें, अधिकांश दिल्ली वासियों को भी खबर नहीं है। यदि कभी मौका मिले तो एक बार इसे देखने जरूर जाना चाहिए !  

सोमवार, 26 जुलाई 2021

अब चिल्ल-पों क्यों

आप किसी पर कटाक्ष करें, उसे उकसाएं, मेरा क्या बिगाड़ लोगे, जैसे विद्रूप के साथ उसके आलोचकों को सही-गलत कहने के लिए अपना मंच प्रस्तुत करें ! और जिस दिन उधर से पलटवार हो जाए उस दिन बंदिशें, अत्याचार, तानाशाही के आरोप ले सड़कों पर उतर आएं ! भले ही यह तय रणनीति के अनुसार ही हो और अपनी उंगलियों का संचालन देख आपका कठपुतलीकार भी संतुष्ट हो जाए पर आम इंसान के लिए यह नैतिकता से परे की बात ही रहेगी ! आप सरे आम आँख मारें और कोई कुछ ना कहे ये तो अब संभव नहीं है..........!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

आजकल भास्कर घराने पर सरकारी कार्यवाही के कारण काफी हो-हल्ला मचा हुआ है ! इसे बदले और सच बोलने के दंड स्वरुप की गई कार्यवाही के रूप में निरूपित किया जा रहा है ! विपक्ष और कुछ ख़ास, आत्मश्लाघि बुद्धिजीवी व पत्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ ले इस मौके को भुनाने के लिए अपना भाड़ सुलगा, उसके पक्ष में आ जुटे हैं ! पर आम जनता को यह समझ नहीं आता कि यदि इन लोगों को कुछ भी बोलने की आजादी है तो वह सिर्फ सरकार के विरोध में ही क्यूँ होती है ! बाकी जगह इनकी टार्च क्यों नहीं प्रकाश डाल  पाती ! वैसे यह बहुत चतुर खिलाड़ी हैं ! अपने पर हो रही कार्यवाही को पत्र के मुख्य पेज पर जगह दे, दोनों हाथों में लड्डू ले बैठ गए हैं ! अब यदि कार्यवाही में दंडित होते हैं तो निर्भीक पत्रकारिता कहलाएगी और यदि कुछ नहीं होता है तो मखौल उड़ाने के काम आएगी ! 

पर सच तो यह है कि यह कार्यवाही सिर्फ सरकार की आलोचना, विरोधी विचारधारा या विपक्ष की हिमायत के कारण नहीं की गई है, यह भ्रष्टाचार, उच्चश्रृंखलता, गरूर, बड़ी आबादी की भावनाओं से खिलवाड़, अपने को न्याय-कानून से ऊपर समझने का भाव तथा सामंतवादी नीतियों का परिणाम है ! सत्य और निष्पक्ष पत्रकारिता की दुहाई तो बचने की सिर्फ आड़ मात्र है ! 

अपने को प्रगतिवादी दिखाने के चक्कर में हिंदू त्योहारों पर पानी बचाओ, ध्वनि प्रदूषण हटाओ, जैसी नसीहतें दे इसने लोगों को भ्रमित व मानसिक रूप से परेशान करना शुरू कर दिया ! पर बकरीद पर इसको कुर्बानी का कोई विरोध ना करते देख पाठकों को भी इसका मकसद जल्द ही समझ आ गया 

समय गवाह है कि भास्कर के संस्थापक रमेश जी के ब्रह्मलीन होने के बाद इसकी विचार धारा और कार्यप्रणाली में काफी बदलाव आया है ! आज इसके निष्पक्ष होने का दावा निर्मूल है ! यदि ऐसा होता तो इसके कॉलमों में सही, निष्पक्ष, निर्विवाद, स्पष्टवादी, देश हितैषी पत्रकारों, जिनकी देश में आज भी कोई कमी नहीं है, के विचार भी जगह पाते ! पर इसके पसंदीदा लोगों में थरूर, राजेंद्र यादव, राजदीप सरदेसाई, चौकसे, प्रीतिश नंदी जैसे मेहमानों की तक़रीबन रोज आमद रहती है ! अब कब तक कोई अपनी छिछालेदर सहेगा और क्यों ! 

1958 में  छोटे से स्तर से शुरू हो, नब्बे के दशक में राम भूमि की रिपोर्टिंग जैसे अपने कई शानदार कामों की वजह से यह जनता का चहेता अखबार तो बना पर लोकप्रियता पाते ही इसके  कदम डगमगा गए और राष्ट्रवादिता छोड़ कमाई की सपाट सड़क पर दौड़ लगा दी ! मजीठिया वेतन आयोग के समय इसका असली रूप लोगों ने देखा। कोई भी संस्थान हो अपने विकास के लिए येन केन प्रकारेण सुविधाएं कैसे जुटाता है, यह अब कोई रहस्य नहीं रह गया  ! अब जो सुविधाएं देता है और जो लेता है उसे एक दूसरे का ख्याल भी रखना पड़ता है ! प्रिंट मिडिया को मिलने वाली सुविधाओं के तहत भास्कर ने भी यहां-वहां, कहां-कहां, कैसे-कैसे, जैसे-तैसे अपने लिए जमीने आवंटित करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ! उदहारण स्वरूप भोपाल में वन विभाग की जमीन ! जिस पर कांग्रेस की मेहरबानी से संस्कार वैली नामक स्कूल की स्थापना कर दी गई ! लोगों को आकर्षित करने हेतु इसका शुभारंभ सोनिया गांधी से करवा, कई निशाने एक साथ साध, आमदनी का अजस्र स्रोत खोल लिया गया ! 

संवेदनहीनता का तो यह आलम था कि इसका एक वेतन भोगी स्तंभकार व्यवस्था की बुराइयां गिनाने में ही इतना मशगूल रहता है कि उसके द्वारा अपने साथी कलमकारों के निधन पर श्रद्धांजलि के दो शब्द तक व्यक्त नहीं किए गए ! वहीं मेहमान लेखकों को मानदेय देने में सदा लापरवाही बरती जाती रही है ! किसी का चेक बाउंस हो जाता था, किसी से हफ़्तों लिखवा भुगतान नहीं किया जाता, अनाप-शनाप कमाई होने के बावजूद ! 

सफलता के शिखर पर से इसे अपने सामने हर कोई बौना नजर आने लगा ! यहां तक कि इसके स्तंभकार मोदी और उनकी सरकार की बुराइयां करने को ही पत्रकारिता का नाम देने लगे ! मोदी जी और उनके मंत्रिमंडल की छवि बिगाड़ने की हर संभव कोशिश होने लगी ! पर समय सब का हिसाब करता और रखता है ! इसी बीच करोड़ों रुपए के घोटाले सामने आ गए ! अपने को प्रगतिवादी दिखाने के चक्कर में हिंदू त्योहारों पर पानी बचाओ, ध्वनि प्रदूषण हटाओ जैसी नसीहतें दे इसने लोगों को भ्रमित व मानसिक रूप से परेशान करना शुरू कर दिया ! पर बकरीद पर इसको कुर्बानी का कोई विरोध ना करते देख पाठकों को भी इसका मकसद जल्द ही समझ आ गया ! आग में घी तब पड़ा जब इसकी पुलवामा हमले की रिपोर्टिंग सामने आई, जवानों के बलिदान से आहत और आक्रोशित जनता ने इसकी लानत-मलानत कर रख दी। 

समय की विपरीत होती गति को फिर भी इसने नहीं पहचाना ! अपने आँख-कानों पर सफलता की पट्टी चढ़ाए, अपने आकाओं की शह और खुद के गरूर में गाफिल, इसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि सामने वाला कितना सशक्त और सक्षम है और एक्शन का रिएक्शन भी होता है। अब आप किसी पर कटाक्ष करें, उसे उकसाएं, मेरा क्या बिगाड़ लोगे, जैसे विद्रूप के साथ उसके आलोचकों को सही-गलत कहने के लिए अपना मंच प्रस्तुत करें ! और जिस दिन उधर से पलटवार हो जाए उस दिन बंदिशें, अत्याचार, तानाशाही के आरोप ले सड़कों पर उतर आएं ! भले ही यह तय रणनीति के अनुसार ही हो और अपनी उंगलियों का संचालन देख आपका कठपुतलीकार भी संतुष्ट हो जाए पर आम इंसान के लिए यह नैतिकता से परे की बात ही रहेगी ! आप सरे आम आँख मारें और कोई कुछ ना कहे ये तो शायद अब संभव नहीं है ! 

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

यूट्यूब का इंद्रजाल

तीनों युवकों; चाड हर्ले, स्टीव चैन व जावेद करीम को अपने काम से तसल्ली या संतोष नहीं मिल पा रहा था ! अक्सर आपस में वे कुछ नया और अनोखा करने की योजना बनाते रहते थे। आखिर उनकी सोच और मेहनत रंग लाई और 2005 की 14 फ़रवरी, वैलेंटाइन दिवस के अवसर पर, उन्होंने इंटरनेट पर एक ऐसा प्लेटफॉर्म बना डाला जिस पर कोई भी और किसी भी विडिओ क्लिप को देखे जा सकने के साथ-साथ अपलोड भी किया जा सकता था ! उसी मंच की लोकप्रियता आज इतनी बढ़ चुकी है कि मुंबई समेत दुनिया के 10 शहरों में विडिओ बनाने के लिए  YouTube Space नाम से मिनी स्टूडियो जैसी जगह उपलब्ध करवाई जा रही है.......! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

यूट्यूब अमेरिका में आविष्कृत हुआ एक वीडियो देखने वाला एक ऐसा मंच है, जिसका सदस्य बन कोई भी उस पर अपना विडिओ क्लिप देखने, अपलोड करने के साथ-साथ अपना कमेंट या टिपण्णी भी आसानी से डाल सकता है। आज इसका आकर्षण इतना बढ़ गया है कि आबालवृद्ध सा इसके दीवाने हो गए हैं। कारण भी है, यहां हर विषय पर विडियो कंटेंट उपलब्ध है, चाहे बात ज्ञान और जानकारी की हो या मनोरंजन व फिल्मों की ! इसीलिए दिन ब दिन इसकी लोकप्रियता में बढ़ोत्तरी होती चली जा रही है।यह Google की ही एक फ्री सर्विस है जिसे स्मार्ट फोन, कंप्यूटर या लैप टॉप किसी पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आज यह दुनिया के 88 देशों में 76 भाषाओं के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है। 

फेसबुक ट्वीटर, माय स्पेस, इंस्टाग्राम, टिंडर यहां तक कि यूट्यूब से भी पहले एक वेबसाइट हुआ करती थी जिसका नाम था HOT or NOT. इसे रेटिंग साइट भी कहा जाता था, क्योंकि इस पर पोस्ट किए गए चित्रों की आकर्षकता और सुंदरता का निर्धारण लोगों के द्वारा दिए गए मत और पसंदानुसार, 1 से 10 अंक दे निर्धारित किया जाता था। इसीकी 'Meet Me' साइट पर लोगों को अपना साथी चुनने की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाती थी ! आज इसका नवीनतम रूप एक एप्प ने ले लिया है। इसको यूट्यूब का प्रेरणा स्रोत माना जा सकता है !  

अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के पालो अल्टो शहर में दिसम्बर 1998 में पेपाल (PayPal) नाम की एक कंपनी स्थापित की गई जिसकी मदद से लैपटॉप, कंप्यूटर, स्मार्टफोन या टैबलेट किसी से भी, किसी के भी खाते में पैसे भेजे और लिए जा सकते थे। आज  यह दुनिया की  सबसे बड़ी इंटरनेट भुगतान करने वाली कंपनियों में से एक है। इतनी  अच्छी और बड़ी कंपनी होने  के बावजूद इसमें काम करने वाले तीन युवकों,  चाड हर्ले, स्टीव चैन व जावेद करीम को अपने काम से तसल्ली या संतोष नहीं मिल पा रहा था ! अक्सर  आपस में  वे  कुछ नया और अनोखा  करने  की योजना  बनाते  रहते  थे।  आखिर उनकी सोच व मेहनत रंग लाई और 2005 की 14 फरवरी, वैलेंटाइन दिवस के अवसर पर, उन्होंने इंटरनेट पर एक ऐसा अनोखा मंच,  पटल  या  प्लेटफॉर्म,  जो  भी  कहिए,  बना डाला जिस पर कोई भी और किसी भी  तरह के विडिओ क्लिप को देखे जा सकने के साथ-साथ अपलोड भी किया जा सकता था। 

चाड हर्ले, स्टीव चैन व जावेद करीम 
यूट्यूब के अस्तित्व में आने को ले एक कहानी प्रचलित है कि 2005 के शुरुआती महीनों के दौरान एक रात चैन के घर में दी गई एक डिनर पार्टी में लिए गए वीडियो को जब दोस्तों को शेयर करने में कठिनाई आई, तब हर्ले और चैन के दिमाग में यूट्यूब के विचार ने जन्म लिया। पर इस खोज के तीसरे सहभागी करीम, जो उस पार्टी में शामिल नहीं हो सका था, के अनुसार यूट्यूब की प्रेरणा, HOT or NOT वेब साइट से तब मिली जब 2004 में हिंद महासागर में आए सुनामी तूफ़ान की वीडियो क्लिप, इंटरनेट पर कहीं भी उपलब्ध नहीं हो सकी थी ! जो भी हो आज इस यू नलिका ने दुनिया भर को गोल-गोल घुमा कर रख दिया है ! 

Me at the Zoo 
यूट्यूब पर पहला वीडियो इसी के सह-संस्थापक, बांग्लादेशी पिता और जर्मन माता की संतान जावेद करीम ने 23 अप्रैल 2005 को Me at the Zoo नाम से अपलोड किया था। यह करीब 19 सेकेंड का वीडियो था। जिसे सेन डियागो चिड़ियाघर में उनके स्कूल के दोस्त, याकोव लेपिट्सकी ने शूट किया था। इसमें जावेद हाथियों के पास खड़े हो उनके बारे में जानकारी देते हैं। इस तरह करीम यू ट्यूब पर विडिओ डालने वाले दुनिया के पहले इंसान बन गए और उनके द्वारा कहे गए ''All right, so here we are in front of the, er, elephants, um, and the cool thing about these guys is that, is that they have really, really, really long, um, trunks, and that's, that's cool, and that's pretty much all there is to say''  शब्द, पहले यूट्यूबी वाक्य बन गए !

यूट्यूब स्पेस 
यूट्यूब के इन तीनो संस्थापकों को ख्याति भी बहुत मिली ! पर जिस बात को गूगल ने भांप लिया शायद उसका आकलन ये लोग नहीं कर पाए या फिर उस समय गूगल द्वारा ऑफर की गई, $1.65 billion (करीब 1.16 लाख करोड़) की धन राशि इतनी बड़ी थी कि ये उसे अस्वीकार नहीं कर पाए ! जो भी रहा हो, 2006 में यू ट्यूब का मालिकाना हक़ गूगल को मिल गया ! उस समय  ना तो इसके संस्थापकों और शायद ही गूगल को पता हो कि आने वाले दिनों में यह प्लेटफार्म कितनी बड़ी क्रांति लाने वाला है ! आज यह शौकिया और पेशेवर कलाकारों के लिए सोने की खदान बन चुका है ! सैकड़ों युवा इस पर आ, सेलेब्रिटी बन चुके हैं ! मुंबई समेत दुनिया के 10 शहरों में Youtube Space नाम की जगह उपलब्ध करवाई गई है, जहां कोई भी विडिओ निर्माता, जिसके दस हजार से अधिक सदस्य या ग्राहक या प्रशंसक हों, जाकर अपनी विडियो बना सकता है। यहां कई तरह के सेट, ग्रीन स्क्रीन व साउंड स्टेज की सुविधा उपलब्ध है ! दूसरे अर्थों में इसे विडिओ बनाने का मिनी स्टूडियो कहा जा सकता है। 
आज यू-ट्यूब के यूज़र की संख्या दो अरब को पार कर रही है ! जो नए-पुराने विडिओ, विडिओ क्लिप के साथ-साथ ऐसी पुरानी फ़िल्में भी देख पाते हैं, जो और कहीं मिलती ही नहीं या बड़ी मुश्किल से उपलब्ध हो पाती हैं ! इस पर करोड़ों विडिओ रोज देखे और अपलोड किए जाते हैं। इस पर अपने देश की टी सीरीज, म्यूजिक के ग्राहकों की संख्या 18 करोड़ से ऊपर है और इस संख्या के साथ यह यूट्यूब पर सर्वोच्च स्थान पर विराजमान है ! आज इस पर हर कोई अपनी प्रतिभा दर्शाने में जुटा हुआ है ! चाहे वह बागवानी हो ! पाक शैली हो ! मनोरंजन हो ! तकनिकी हो ! कुछ भी हो ! यदि किसी को लगता है कि उसकी विधा कुछ अलग, ज्ञानवर्धक और लोकलुभावनी है तो वह इस मंच का सहारा जरूर लेता है ! व्यक्तिगत रूप से देखा जाए तो देश के सबसे ज्यादा लोकप्रिय यू ट्यूबर में गौरव चौधरी, आशीष चंचलानी, अजय नागर, निशा मधुलिका निखिल शर्मा जैसे अनेकों लोग शामिल हैं, जो नाम और दाम कमाने में युवाओं के आदर्श बने हुए हैं !
इसकी उपलब्धियां, रेकार्ड, आंकड़े, लोकप्रियता, सब पर एक साथ लिखा जाए तो अच्छा-खासा ग्रंथ बन जाएगा। अब जहां अच्छाई होती है वहां बुराई का होना भी अपरिहार्य सा हो गया है ! यूट्यूब भी इसका अपवाद नहीं है ! कुछ विकृत मानसिकता के लोग इसका दुरूपयोग करने से भी बाज नहीं आते ! मजबूर हो कई बार सरकार को भी हस्तक्षेप करना पड़ता है ! पर उसका प्रयास भी अंतर्जाल की व्यापकता, जटिलता और असीम विस्तार के सामने पूर्णतया सफल नहीं हो पाता ! इसीलिए यह चीन, उत्तर कोरिया तथा ईरान में प्रतिबंधित है ! अब यह तो लोगों की जागरूकता पर ही निर्भर करता है की केबल टीवी से कहीं ज्यादा पहुंच वाले इस माध्यम का उन्हें कैसे उपयोग करना है ! क्या चुनना व क्या देखना है ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शनिवार, 17 जुलाई 2021

मरीचझापी नरसंहार, आजाद भारत का जलियांवाला

हालांकि कानून की नजर में उस जगह को खाली करवाना जरुरी हो सकता है ! पर जिस तरीके से या बदले की भावना से, उसे खाली करवाया गया, वह किसी भी दृष्टि से नैतिक या क्षम्य नहीं माना जा सकता ! सरकार की नियत पर शक और भी पुख्ता हो जाता है, क्योंकि जिस जगह को, भारतीय वन अधिनियम, पर्यावरण और टाइगर रिजर्व जैसे कानूनों का हवाला दे कर तथा वन संपत्ति के दोहन व नुक्सान पहुंचाने तथा पारिस्थितिक असंतुलन खड़ा करने के अभियोग में, हजारों जानों की कीमत पर जबरन खाली करवाया गया था, उसी जगह को, वहां रिफ्यूजीओं द्वारा निर्मित सभी सुविधाओं समेत, वामपंथी सरकार ने अपने चहेते लोगों और समर्थकों को उपहार स्वरूप सौंप दिया..............!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

देश की आजादी के करीब बत्तीस साल बाद 1979 में बंगाल में ज्योति वसु के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार द्वारा एक ऐसा, भयानक, विभत्स व नृशंस नरसंहार हुआ जिसके सामने पंजाब का जलियांवाला काण्ड भी कमतर लगने लगा ! बंगाल के सुंदरवन के मरीचझांपी इलाके को पूर्वी बंगाल से आए हिन्दू दलित शरणार्थीयों से खाली करवाने के लिए जिस बर्बरता, निर्ममता और पाश्विकता का सहारा लिया गया उसकी मिसाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में कहीं नहीं मिलती ! जलियांवाला काण्ड के समय तो फिर भी अंग्रेजों की सरकार थी और पुलिस उनके आदिष्ट थी, पर इस बार तो पुलिस भी अपनी थी और सरकार भी स्वदेशी ! इसमें तकरीबन 3000 के करीब दलित हिंदू बंगाली शरणार्थी पुलिस की गोली का शिकार हुए थे । आजाद भारत में पुलिस की तरफ से किया गया अब तक का यह सबसे बड़ा हत्याकांड है। मरने वालों की मौत का आंकड़ा आज भी इस द्वीप की दलदली भूमि में कहीं दफ़न है ! 

इस भयंकर घटना का बीज बहुत पहले तभी पड़ गया था, जब ''अंग्रेजों की फूट डालो, शासन करो'' की नीति के तहत बंगाल का विभाजन हुआ था। उस समय विभाजन के पक्ष या विपक्ष में वोट डाल, उसी मतदान के आधार पर निर्णय लिया जाना था। इसमें मुस्लिम बहुल इलाके के सारे प्रतिनिधियों के साथ ही बंगाल की शिड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के प्रतिनिधियों ने भी एकीकृत बंगाल के लिए मतदान किया था। पर हिंदू बहुल इलाके के प्रतिनिधियों ने, जिनमें कांग्रेस, हिंदू महासभा और वामपंथी भी शामिल थे, विभाजन के पक्ष में वोट डाल, बहुमत पा कर, निर्णय अपने पक्ष में करवा लिया था। बंगाल के दो टुकड़े हो गए, एक कहलाया पूर्वी बंगाल और दूसरा पश्चिमी बंगाल के नाम से जाना जाने लगा। विभाजन के बाद दलित समुदाय ने, जो अब तक वहां के मुस्लिम नागरिकों के साथ मिल-जुल कर रहते आया था, अब भी वहीं रहने का फैसला कर लिया ! परंतु बाद में इस निर्णय की उन्हें बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ी !

समय गुजरता गया ! देश के तीन टुकड़े कर दिए गए ! जिसमें से दो पकिस्तान के हिस्से में चले गए ! एक हमारे हिस्से आया ! आजादी के बाद पकिस्तान वाले भाग में रुके रहने वाले हिन्दुओं के सारे ख्याल, विचार व अनुमान गलत साबित होते चले गए ! धर्म के नाम पर होने वाली ज्यादितियों, अत्याचारों, हिंसा, लूट-खसोट ने उन्हें वहां से पलायन के लिए मजबूर कर दिया ! पश्चिमी भाग पर तो काबू पा लिया गया पर पूर्वी भाग, जो बाद में बांग्ला देश कहलाया, से रिफ्यूजीओं का भारत आना निर्बाध रूप से जारी रहा (जो अभी भी थमा नहीं है)। बांग्ला देश के मुक्ति संग्राम में तो यह संख्या लाखों तक पहुंच गई ! इस विचार से कि हालात सामान्य होने पर उन्हें वापस भेज दिया जाएगा, उन्हें जगह-जगह बसाया भी गया। उसी समय बांग्ला देश के खुलना जिले में सतीश मंडल के नेतृत्व में ''आदिबास्तु उन्नयनशील समिति'' नामक एक संस्था भी अस्तित्व में आ गई, जिसने भारत के सुंदरवन इलाके की जनविहीन, सुनसान, दलदली जमीन पर अवैध रूप से रिफ्यूजियों को बसाना शुरू कर दिया ! उस जगह का नाम था, मरीचझापी !   

बंगाल की खाड़ी में गंगा की दो धाराएं, एक हुगली जो भारत से बहती हुई आती है, दूसरी पद्मा जो बांग्ला देश से होती हुई आती है, समुद्र में मिलने के पहले एक द्वीप सा निर्मित करती हैं ! जो लगातार पानी के सम्पर्क में रहने के कारण दलदली भूमि में परिवर्तित हो गया था। सदाबहार पेड़ों से घिरी उस जगह में जंगली झाड़ियों, लता-गुल्मों के सिवा और कुछ भी नहीं था। पूरी तरह सुनसान, बियाबान, कीड़े-मकौड़े, छोटे-बड़े जीव-जंतुओं से भरा वह इलाका मरीचझापी कहलाता था। जो किसी भी तरह मानव के रहने लायक नहीं था। पर वह मानव ही क्या जिसने हर विपरीत परिस्थिति को अपने अनुकूल न कर लिया हो !

उस समय बंगाल में कांग्रेस की सरकार थी। मुख्य विपक्षी दल CPI (M) था। जो खुद को सर्वहारा, गरीबों, दलितों, वंचितों और मजदूर वर्ग की पार्टी होने का दावा करता था। उसके लीडरों ने खुल कर एलान कर रखा था कि हमारे सत्ता में आते ही शरणार्थियों को पुर्नवास के लिए जगह-जमीन तथा अन्य सुविधाओं के साथ नागरिकता भी प्रदान कर दी जाएगी। राजनितिक दाव-पेंच के तहत अपने वोट बैंक को मजबूत करने के पार्टियों के इस षड्यंत्र को रिफ्यूजी ना समझ पा कर फंसते चले गए ! जब 1977 में वामपंथियों की सरकार बनी तब उनको इनकी जरुरत नहीं रह गई और यही रिफ्यूजी उन्हें भार स्वरूप लगने लगे ! पर नई-नई सत्ता में आई सरकार ने तुरंत किसी बड़ी कार्यवाही को ना करते हुए एक मुनादी पिटवा दी कि जो लोग सीमा पार से आना चाहते हैं वे आ सकते हैं पर उनको किसी भी तरह की कोई भी सुविधा नहीं दी जाएगी। परंतु इस चेतावनी का कोई भी असर रिफ्यूजीओं पर नहीं हुआ और ठठ्ठ के ठठ्ठ लोग, अपने से पहले आए हुए सगे-संबंधियों, मित्रों, जान-पहचान के लोगों के पास पहुंचते रहे। इसमें मुख्य जगह थी मरीचझापी, जिसकी आबादी 40000 तक जा पहुंची। 

उस समय वामपंथी सरकार थी और उसने सीमा पार से लोगों को इधर आने का न्योता दिया था ! आज तृणमूल की सरकार है और वह भी उसी तरह रिफ्यूजीओं का आह्वान कर रही है ! फर्क सिर्फ इतना है कि तब आने वाले हिन्दू दलित थे और आज रोहिंग्या मुसलमान.. 

इस आबादी ने उस दलदली जमीन को बिना किसी सरकारी मदद या इमदाद के सिर्फ अपने बलबूते और कठोर मेहनत की बदौलत खेती लायक बनाया। कुछ लोग मछली पालन के उद्योग से जुड़ गए ! धीरे-धीरे बच्चों के लिए स्कूल भी खोल दिया गया। आकस्मिक चिकित्सा सुविधा का भी इंतजाम कर लिया गया। एक बाजार, पुस्तकालय तथा नौका बनाने-मरम्मत करने की इकाई भी स्थापित कर ली गई। जगह का नया नामकरण भी कर दिया गया, नेताजी नगर ! एक सुनसान, जनविहीन स्थान गुलजार हो गया ! कहते हैं कि राम कृष्ण मिशन और भारत सेवाश्रम संघ जैसी मानव कल्याणकारी संस्थाओं उनकी सहायता करनी भी चाहि थी, वामपंथी सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। 

उधर सत्ता में आते ही कम्युनिस्टों को सालों पहले बंग-भंग के समय इन्हीं दलितों द्वारा किए गए अपने विरोध की याद भी ताजा हो आई ! उन्हें इस बात का भी आक्रोश था कि ये वही लोग थे जिन्होंने भारत नहीं आना चाहा था ! अब यहां उनको फलते-फूलते देख, बदले की भावना के तहत वामपंथी सरकार ने मरीचझापी को भारतीय वन अधिनियम, पर्यावरण और टाइगर रिजर्व जैसे कानूनों का हवाला दे तथा वन संपत्ति के दोहन व नुक्सान पहुंचाने तथा पारिस्थितिक असंतुलन बनाने के अभियोग लगा, उस पूरी जगह को तुरंत खाली करने का हुक्म जारी कर दिया। अपनी वर्षों की खून-पसीने की मेहनत को यूं एक झटके में गंवाने के लिए कोई भी रहवासी तैयार नहीं हुआ। उन्होंने फरमान मानने से इंकार कर दिया।


उनकी नाफरमानी देख सरकार अपनी पर उतर आई ! 26 जनवरी 1979 को जब पूरा देश गणतंत्र दिवस मनाने में व्यस्त था, उसी दिन बंगाल सरकार ने पूरे मरीचझापी द्वीप पर 144 धारा लागू कर दी ! पूरी जगह को चारों ओर से पुलिस की नौकाओं से घेर दिया गया ! किसी के भी वहां आने-जाने व किसी भी तरह का सामान, भोजन, दवा लाने-ले जाने पर भी रोक लगा, आर्थिक नाकेबंदी कर दी गई ! पीने का पानी जहरीला बना भूखे-प्यासे रहने पर मजबूर कर दिया गया ! कई दिन गुजर गए ! भूख-प्यास-पानी के बिना सैंकड़ों जानें जाने के बावजूद वहां लोग टस से मस नहीं हो रहे थे ! सरकार का गुस्सा बढ़ता जा रहा था ! ऐसे में ही एक दिन तक़रीबन 40000 निहत्थे, निस्सहाय, मजबूर लोगों को, जिसमें महिलाएं, बच्चे, वृद्ध, अशक्त, बिमार सभी सम्मिलित थे, चारों ओर से घेर कर निर्ममता से गोलीबारी शुरू कर दी गई। पहले हमले में ही हजारों लोग हताहत हो गए ! सैंकड़ों लोग जान बचाने के लिए पानी में कूद गए, जिनका फिर कोई पता नहीं चला !  

सशक्त हथियारबंद पुलिस के सामने कितनी देर टिका जा सकता था ! लिहाजा लोग आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हो गए ! फिर भी उन्हें छोड़ा नहीं गया ! अनेकों पुरुषों को गोली मार दी गई ! महिलाओं के साथ अनाचार हुआ ! दुधमुंहे बच्चों तक को बक्शा नहीं गया उनके सर कलम कर दिए गए ! लाशों को यूं ही लावारिस छोड़ दिया गया, जिन्हें खा कर पहली बार वहां के शेर नरभक्षी बन गए ! बचे-खुचे लोगों को ट्र्कों में लाद कर अन्य स्थानों में भेज दिया गया ! उस दिन कितने लोग काल-कल्वित हुए इसका कोई ठोस या प्रामाणिक आंकड़ा आज तक उपलब्ध नहीं हो पाया है ! प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार यह दस हजार भी हो सकता है ! 

हालांकि कानून की नजर में उस जगह को खाली करवाना जरुरी हो सकता है ! पर जिस तरीके से या बदले की भावना से, उसे खाली करवाया गया, वह किसी भी दृष्टि से नैतिक या क्षम्य नहीं माना जा सकता ! सरकार की नियत पर शक और भी पुख्ता हो जाता है, क्योंकि जिस जगह को, भारतीय वन अधिनियम, पर्यावरण और टाइगर रिजर्व जैसे कानूनों का हवाला दे कर तथा वन संपत्ति के दोहन व नुक्सान पहुंचाने तथा पारिस्थितिक असंतुलन खड़ा करने के अभियोग में, हजारों जानों की कीमत पर जबरन खाली करवाया गया था, उसी जगह को, वहां रिफ्यूजीओं द्वारा निर्मित सभी सुविधाओं समेत, वामपंथी सरकार ने अपने चहेते लोगों और समर्थकों को उपहार स्वरूप सौंप दिया ! इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है ! पर शायद यह उन असहाय मृतकों की आहों का श्राप ही था, जो आज बंगाल से वामपंथ का पूरी तरह सफाया हो चुका है !  

इस कांड को दबाने की भारी कोशिश के बावजूद घटना सामने आ ही गई । हो-हल्ला मचा ! बात दिल्ली तक पहुंच गई। उस समय केंद्र में मोरार जी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की विभिन्न मतों और अनेक बैसाखियों पर टिकी  हुई  सरकार थी ! जिसे वामपंथियों के सहारे की भी जरुरत थी ! सो इस बात को तूल ना देते हुए उसे वहीं छोड़ दिया गया ! रसूख के चलते इस काळा अध्याय को इतिहास के पन्नों से भी हटा दिया गया ! इसीलिए आज तक यह काण्ड कभी कभी भी राजनितिक मुद्दा नहीं बन पाया ! ना तब और ना हीं अब ! दरअसल इसका एक कारण यह भी है कि यह एक ऐसा समुदाय है, जो कहीं का नागरिक नहीं है ! सो राजनितिक दृष्टि से इनका महत्व शून्य है इसीलिए किसी भी सरकार ने इन्हें तवज्जो नहीं दी ! 

इतिहास में इसका भले ही विस्तृत विवरण ना रहने दिया गया हो ! भले ही जुबान ए खंजर पर रोक लगा दी गई हो ! फिर भी आस्तीन का खून अपनी कहानी कह ही जाता है ! उसी कहानी को कुछ जागरूक पत्रकारों और लेखकों ने अपनी, Blood Island, The Hungry Tide व ''आशोले की घोटे छिलो'' जैसी किताबों में विस्तार से उजागर करने की चेष्टा की है। एक फिल्म की भी तैयारी है ! उस घटना का सच  धीरे-धीरे ही सही सबके सामने आता जा रहा है !


इतिहास गवाह है कि देश में सिर्फ वोटर बदलते हैं ! सरकार चाहे किसी की भी हो उसकी फितरत कमोबेस वैसी ही रहती आई है ! आज बंगाल में इतिहास फिर अपने को दोहरा रहा है ! उस समय वामपंथी सरकार थी और उसने अपने हित के लिए प्रलोभन दे कर सीमा पार से लोगों को आने का न्योता दिया था ! आज तृणमूल की सरकार है और वह भी उसी तरह रिफ्यूजीओं का इधर आने का आह्वान कर रही है ! फर्क सिर्फ इतना है कि तब आने वाले हिन्दू दलित थे और आज रोहिंग्याओं को सिर्फ अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मेहमान बनाया जा रहा है ! 

इतने साल बीतने के बावजूद उस समय के आए हुए बंगाली हिंदू शरणार्थियों की नागरिकता का विवाद कब हल होगा, यह तो समय ही बताएगा ! समय को तो यह भी बतलाना है कि कब वे सारे हिन्दू शरणार्थी अपनी पहचान पा एक सम्मानित जिंदगी पा सकेंगे ! समय को तो यह भी बतलाना है कि अपनी तुच्छ राजनीती के तहत देश,समाज, लोगों का अहित करने वाली  क्या हश्र होगा ! 

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

सुखदाई सावन के साथी, कुछ दुखदाई पाहुन

सीधी-सच्ची बात या लब्बोलुआब तो यही है कि इस दुनिया में ''हमारा'' रहने का एक ही या एकमात्र स्थान हमारा शरीर ही है ! वह है, तभी हम हैं ! वह है, तभी सारी अनुभूतियां हैं ! वह है, तभी सुख-दुःख, भोग-विलास, प्रेम-प्यार, मोह-ममता, तेरा-मेरा, जमीन-जायदाद, धन-दौलत इन सबका उपयोग व उपभोग संभव है ! यदि शरीर ही नहीं रहे तो फिर हर चीज बेमानी है ! इसलिए सबसे पहले इसे संभालने, स्वस्थ रखने और सदा चलायमान बनाए रखने का उपक्रम और ध्यान होना चाहिए...........!                       

#हिन्दी_ब्लागिंग               

इस बार दिल्ली में गर्मी का मौसम कुछ ज्यादा ही टिक गया ! जाते-जाते भी अपने तेवरों से लोगों को कुछ ज्यादा ही परेशान कर गया ! हालांकि इसमें हमारे प्रति उसकी नेकनीयती ही थी, क्योंकि इस बार पूरे देश में मानसून जैसे तेवर दिखा रहा है वह बहुत ही खतरनाक, डरावना व भयावना है ! चारों ओर से भीषण दुर्घटनाओं की ख़बरें आ रही हैं ! जान-माल का अत्यधिक नुक्सान हुआ है ! शायद इसीलिए दिल्लीवासियों को बरखा के कहर से बचने के लिए ग्रीष्म कुछ और दिनों के लिए ठहर गया हो ! पर कितने दिन ! प्रोटोकॉल तो मानना ही पड़ता है ! 

आखिरकार देर से ही सही अपने राजा इंद्र देवता की इजाजत से बरखा रानी ने दिल्ली की धरती पर भी अपने कदम रखे। मौसम कुछ सुहाना हुआ ! पेड़-पौधों ने धुल कर राहत की सांस ली ! पशु-पक्षियों की जान में जान आई ! कवियों को नयी कविताएं सूझने लगीं। हम जैसों को भी चाय के साथ पकौड़ियों की तलब लगने लगी। बस यहीं से शुरु हो गई बेचारे शरीर की परेशानी। सब अपने में मस्त थे पर मानव शरीर साफ सुन पा रहा था बरसात के साथ आने वाली बिमारियों की पदचाप। इस मौसम में जठराग्नि मंद पड़ जाती है। सर्दी, खांसी, फ्लू, डायरिया, डिसेन्टरी, जोड़ों का दर्द और न जाने क्या-क्या, और ऊपर से कोरोना ! सच्चाई तो कि बरसात की सुहानी रिमझिम सुखदाई तो बहुत है पर उसके साथ ही कई दुखदाई बिन बुलाए मेहमान भी आ  धमकते हैं !


तबियत ऐंड-बैंड होने के पहले ही हम सब को शरीर की इसी आवाज की अवहेलना ना कर स्वस्थ रहते हुए स्वस्थ बने रहने की प्रक्रिया शुरु कर देनी चाहिये। क्योंकी बिमार होकर स्वस्थ होने से अच्छा है कि बिमारी से बचने का पहले ही इंतजाम कर लिया जाए। इसमें कुछ ज्यादा भी नहीं करना पड़ता, बस थोड़ी सी सावधानी ! थोड़ा सा परहेज ! थोड़ा सा आत्मनियंत्रण ही काफी है । इसमें हमारे पीढ़ियों से चले आ रहे घरेलु नुस्खे सदा खरे उतरते रहे हैं,  जिनके प्रयोग से लाभ ही होता है हानि कुछ भी नहीं  !

यहां वही सारी बातें हैं जो मैं सपरिवार अपने उपयोग में लाता हूँ ! किसी उपदेशक या विशेषज्ञ की हैसियत से नहीं बल्कि अनुभव जनित लाभ से प्रेरित हो यह सब साझा करने का प्रयास किया है 
* इस मौसम में जठराग्नि मंद पड़ जाती है। रोज एक चम्मच अदरक और शहद की बराबर मात्रा लेने से पेट को भोजन पचाने में सहायता मिल जाती है। दुआ देता रहेगा !    

* बदलते मौसम और पल-पल बदलते तापमान के कारन सर्दी-खांसी-जुकाम आम बात होती है, इसके लिए एक चम्मच हल्दी और शहद गर्म पानी के साथ लेने से बहुत राहत मिलती है। आजकल तो किसी के छींकते-खांसते ही लोगों की भृकुटि टेढ़ी हो जाती है ! उससे भी बचे रहेंगे यदि दिन में एक-दो बार नमक मिले गर्म पानी से गरारे भी कर लिए जाएं !

* पावस ऋतु में वातावरण में जीवाणुओं-कीटाणुओं का प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है ! इसलिए दही, फलों के रस, हरी पत्तियों वाली सब्जियों का प्रयोग बिल्कुल कम कर दिया जाए तो बेहतर रहता है !

* तुलसी की पत्तियां भी जलजनित रोगों से लड़ने में सहायक होती हैं। इसकी 8-10 पत्तियां रोज चबा लेने से बहुत सी बिमारियों से बचा जा सकता है। साथ में मीठी नीम के चार-पांच पर्ण भी ले लिए जाएं तो और भी उत्तम ! वैसे भी चाय वगैरह में तुलसी और-अदरक-दालचीनी का उपयोग करना बहुत फायदेमंद रहता है ! 

* बरसात हो और पकौड़ों की याद ना आए यह तो हो ही नहीं सकता ! पर उन पर दया बनाए रखनी चाहिए, कम मात्रा में सेवन कर ! वैसे भी तले-तलाए व्यंजन शरीर में ''स्लीपर सेल'' के काम को ही अंजाम देते हैं ! कब क्या कर जाएं पता नहीं ! सो उनके क्रिया-कलापों पर विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।       

* खाना खाने के बाद यदि पेट में भारीपन का एहसास हो तो एक चम्मच जीरा पानी के साथ निगल लें। पंद्रह-बीस मिनट के अंदर ही राहत मिल जाती है। वैसे अजवायन भी बहुत मुफीद रहती है !

* इन दिनों बाहर के खाने से बचें, खासकर मैदे से बने और चायनिज खाद्य पदार्थों से इन दिनों दूरी बनाये रखें। ज्यादा देर से कटे फल और सलाद का उपयोग भी ना हीं करें तो बेहतर, खासकर प्याज का !
 
* इन दिनों घरों में आने वाला पानी भी कुछ दूषित सा होता है ! उसके लिए थोड़ी सी नीम की पत्तियों को उबाल कर उस पानी को अपने नहाने के पानी में मिला कर नहाना तो सर्वोत्तम है, पर यह हम सब के वश की बात भी नहीं है, झंझट सा लगता है ! सो नहाने के पानी में डेटाल जैसा कोई एंटीसेप्टिक मिला लेने से भी टारगेट पूरा हो जाता है ! 

* आज कल तो हर घर में पानी के फिल्टर का प्रयोग होता है। पर वह ज्यादातर पीने के पानी को साफ करने के काम में ही लिया जाता है। भंड़ारित किये हुए पानी को वैसे ही प्रयोग में ले आया जाता है। ऐसे पानी में एक फिटकरी के टुकड़े को कुछ देर घुमा कर छोड़ देने से पानी की गंदगी नीचे बैठ जाती है, इसके उपरांत वह पानी हानिरहित हो जाता है। यदि रात को ऐसा कर दिया जाए तो साफ़ होने का इंतजार भी नहीं करना पडेगा ! 


सीधी-सच्ची बात या लब्बोलुआब तो यही है कि इस दुनिया में ''हमारा'' रहने का एक ही या एकमात्र स्थान हमारा शरीर ही है ! वह है, तभी हम हैं ! वह है, तभी सारी अनुभूतियां हैं ! वह है, तभी सुख-दुःख, भोग-विलास, प्रेम-प्यार, मोह-ममता, तेरा-मेरा, जमीन-जायदाद, धन-दौलत इन सबका उपयोग व उपभोग संभव है ! यदि शरीर ही नहीं तो फिर हर चीज बेमानी है ! इसलिए सबसे पहले इसे संभालने, स्वस्थ रखने और सदा चलायमान बनाए रखने का उपक्रम और ध्यान होना चाहिए। खासकर हर बदलते मौसम में इस पर कुछ अतरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है ! पर विडंबना है कि हम इसी का ध्यान नहीं रखते ! चौबीस घंटों में इसे आधा-पौना घंटा देने का समय भी हमारे पास नहीं होता ! 

यहां वही सारी बातें हैं जो मैं सपरिवार अपने उपयोग में लाता हूँ ! किसी उपदेशक, ज्ञानी या विशेषज्ञ की हैसियत से नहीं बल्कि अनुभव जनित लाभ से प्रेरित हो यह सब साझा करने का प्रयास किया है। वैसे भी यदि इस शरीर को एक घंटा और इसके बनाने वाले को आधे घंटे का समय भी दे दिया जाए तो शायद नब्बे प्रतिशत बीमारियां तो हमारे पास फटकें भी नहीं ! पर हम तभी चेतते है जब कोई बिमारी हमें घेरती है या फिर कोई मुसीबत ! तभी हमें अपना और भगवान का ध्यान आता है ! यदि सुख में ही ध्यान कर लें तो दुःख आए ही नहीं !  

@सभी चित्र अंतर्जाल के  सौजन्य से   

गुरुवार, 8 जुलाई 2021

सोनू सूद, कुछ कही कुछ अनकही

बहुत से ऐसे लोग हैं जो सर्वस्व देकर भी गुमनाम रहना चाहते हैं, बिना किसी अपेक्षा के समाज की  सेवा करते रहते हैं ! अब राजकुमार राव को ही ले लीजिए, फिल्मों में आए उन्हें ज्यादा समय नहीं हुआ ! धन-यश के मामले में सोनू से कोसों पीछे भी हैं पर उन्होंने भी इस आपदा में बिना किसी शोर-शराबे के पांच करोड़ रुपयों का दान किया ! कितने लोगों को पता चला ! कुछ होते हैं जो देते हैं तो बदले में कुछ अपेक्षा भी रखते हैं ! लब्बोलुआब यह है कि किसी ने चाहे कैसे भी, यदि कुछ दिया तो मुसीबत में किसी जरूरतमंद की सहायता तो हुई ही ! फिर चाहे देने वाले की मंशा कुछ भी हो...................!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
दो-तीन से लगातार चल रही बरसात की झडी आज सोमवार को जा कर कहीं थमी थी। मौसम सुहाना हो गया था। सुबह के ग्यारह बज रहे थे। कल इतवार की छुट्टी के बाद बाजार खुलने लगे थे। वैसे भी पंजाब के इस कस्बाई शहर मोगा में जरुरत के सामान को छोड़ बाकी दुकानें तकरीबन ग्यारह बजे के आस-पास ही खुलती थीं। लाला शक्ति सागर सूद भी अपनी कपडे की दूकान, बॉम्बे क्लॉथ हाउस, की साफ़-सफाई करवा, सामान वगैरह व्यवस्थित कर बैठे ही थे कि एक युवक दौड़ता हुआ आया और दूर से ही चिल्ला कर बोलने लगा, लालाजी बधाई हो ! पुत्तर दे पेओ बण गए ओ !'' लाला शक्ति सूद ने खुशखबरी सुनते ही अपनी मोटरसाइकिल उठाई और उसी क्षण घर की ओर रवाना हो लिए ! दिन था, 30 जुलाई, 1973, घडी दोपहर के बारह बजा रही थी !
लब्बोलुआब यह है कि किसी ने चाहे कैसे भी, यदि कुछ दिया, तो मुसीबत में किसी जरूरतमंद की सहायता तो हुई ही ! फिर देने वाले की मंशा चाहे कुछ भी हो 
व्यवसाई पिता शांति सागर सूद और शिक्षिका सरोज सूद की दूसरी संतान को सब लाड से सोणा पुत्तर, सोणा पुत्तर कह कर बुलाते थे ! समय के साथ वही संबोधन कुछ बदल कर सोनू हो, बच्चे का नाम ही बन गया ! यह संबोधन सबकी जुबान पर ऐसा चढ़ा कि फिर किसी को कुछ और नाम रखने का कभी विचार ही नहीं आया ! स्कूल-कॉलेज-कर्म क्षेत्र सभी जगह इस नाम ने ही पहचान बनाई ! यहां तक कि 2020 की महामारी रूपी आपदा में तो यह बड़े-बड़े दानवीरों को पीछे छोड़ जन-जन का सगा बन गया !
सोनू सूद नागराज के गेटअप में 
बचपन से ही सोनू को लोगों के आकर्षण का केंद्र बनना और किसी भी तरह चर्चा में बने रहना बहुत भाता था। फिल्मों के प्रति भी उसका बहुत रुझान था । उसके प्रिय कलाकार हॉलीवुड के स्टार सिल्वेस्टर स्टैलोन और अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर थे । उनकी बॉडी बिल्डिंग से प्रभावित हो इसने भी अपने शरीर को वैसा ही बनाने की ठान ली, जिसमें वह सफल भी रहा। एक्टिंग में उसके आदर्श सदा से ही अमिताभ बच्चन रहे।सेक्रेड हार्ट स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही सोनू का रुझान फिल्मों की तरफ हो गया था। पर माँ के अनुशासन के कारण उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी और स्कूल के बाद नागपुर के यशवंतराव कालेज से अपनी इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग की डिग्री भी प्राप्त कर ली पर फिल्मों में काम करने की चाहत कम नहीं हुई ! एक्टिंग का कीड़ा उसे लगातार काटे जा रहा था !

                            https://www.youtube.com/watch?v=PXLzpVpx12A
                                     (सोनू सूद अभिनीत नागराज की विडिओ क्लिपिंग )
एक्टिंग के कीड़े का इलाज सिर्फ मुंबई में ही संभव था ! सो जाना तो बनता ही था ! पर वहां इलाज इतना आसान भी नहीं था ! कहते हैं मुंबई किसी को भी सफलता देने के पहले उसका कठोर से कठोर इम्तिहान लेती है। जिसमें लियाकत होती है वही सफल होता है ! सोनू ने भी कई पापड बेले ! 1999 में तम‍िल फिल्म कल्लाझागर से एक्ट‍िंग डेब्यू किया था ! साल 2001 में शहीद-ए-आजम फिल्म में भगत सिंह के किरदार से बॉलीवुड में एंट्री की थी ! इसके बाद और भी आधा दर्जन से ऊपर फिल्मों में काम किया पर फिर भी कोई ख़ास पहचान नहीं बन पाई। इसी बीच नागराज कॉमिक्स के प्रमोशन के लिए चमकती आँखों और गहरे हरे रंग के कॉस्ट्यूम में एक विज्ञापन फिल्म भी की, जिसको करने का बाद में अफ़सोस भी बहुत हुआ: पर पेट जो ना करवाए वही कम ! आखिर सफलता की देवी मुस्कुराई और युवा, चंद्रमुखी, आश‍िक बनाया आपने, जोधा अकबर, सिंह इज किंग, एक विवाह ऐसा भी, दबंग, आर राजकुमार, गब्बर इज बैक जैसी एक के बाद एक सफल होती फ़िल्में मिलती चली गईं ! मोगा जिले का वही छोटा सा सोनू नाम चल निकला ! पर जहां शोहरत होती है वहां विवाद भी होता है ! सोनू की बढ़ती शोहरत ने भी विवाद को जन्म देना ही था, दिया ! बहुत से लोगों का मानना था कि महामारी के आपातकाल को सोनू ने अपने हक़ में भुनाया ! नाम कमाने के इस मौके को हाथों-हाथ लपका गया ! 

समय के लिए तो अपने लिए भी समय नहीं होता ! वह निर्बाध रूप से चलता रहता है ! इस दौरान बहुत कुछ बदल जाता है ! आमूल-चूल परिवर्तन हो जाते हैं ! पर सोनू की छुटपन से ही चर्चित होने की लालसा में समय के साथ भी कोई बदलाव नहीं आया ! लाइमलाइट में आने का कोई भी मौका उसने नहीं छोड़ा ! चाहे फिल्मों का कोई सीन हो या फिर अपने सहकर्मियों के साथ विवाद ! कुछ लोगों की नज़र में यह बात थी भी ! तो जब ऐसा ही एक अवसर, कोरोना की महामारी के दौरान उसके हाथ लगा, जिसे खूब भुनाया गया ! प्रचार और प्रसार ऐसा हुआ जैसे इस एक अकेले ने ही लोगों की सहायता की हो ! क्योंकि होती है कुछ लोगों में खबरों में बने रहने की लालसा ! कुछ लोगों को यह बात नागवार गुजरी ! पर क्यों यह तो वही लोग जानें ! 

संसार में हर तरह के लोग होते हैं ! बहुत से ऐसे लोग हैं जो सर्वस्व देकर भी गुमनाम रहना चाहते हैं ! बिना किसी अपेक्षा के समाज और लोगों की सेवा-सहायता करते रहते हैं ! अब राजकुमार राव को ही ले लीजिए, फिल्मों में आए उन्हें ज्यादा समय नहीं हुआ ! धन-यश के मामले में सोनू से कोसों पीछे भी हैं पर उन्होंने भी इस आपदा में बिना किसी शोर-शराबे के पांच करोड़ रुपयों का दान किया ! कितने लोगों को पता चला ! कुछ होते हैं जो देते हैं तो बदले में कुछ अपेक्षा भी रखते हैं और कुछ लोग सिर्फ विघ्नसंतोषी होते हैं जो हर अच्छाई में भी बुराई ढूंढने में खपे रहते हैं। लब्बोलुआब यह है कि किसी ने चाहे कैसे भी, यदि कुछ दिया तो मुसीबत में किसी जरूरतमंद की सहायता तो हुई ही ! फिर चाहे देने वाले की मंशा कुछ भी हो ! लोग कुछ भी कहें ! उनका क्या है, वे तो वैसे भी कहते ही रहते हैं !!

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