गुरुवार, 20 अगस्त 2020

हमीं ने दर्द दिया, हमें ही दवा देनी है

कुछ वर्षों पहले तक बाजार में हर तरह का सामान तक़रीबन खुला मिलता था। चाहे घर के किराने का सामान हो, चाहे सब्जियां-फल वगैरह हों, बेकरी की चीजें हों या अन्य घरेलू जरुरत का सामान ! दूध और पानी की पैकिंग तो शायद ही कोई सोचता हो। आज साफ़-सफाई या शुद्धता का हवाला दे कर हर चीज को प्लास्टिक में लपेटा जाने लगा है। पहले लोग सामान वगैरह लाने के लिए थैला वगैरह ले कर ही घर से चलते थे ! उधर दुकानदार सामान देने के लिए कागज़ के ठोंगों या लिफाफों को काम में लाते थे। पर पॉलीथिन के चलन में आते ही वे सब बीते दिनों की बात हो गए। अब छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी चीज यहां तक कि झाड़ू-झाड़न जैसी  चीजें भी रैपर में लिपटी मिलने लगी हैं। बाजार ने हमें अच्छी तरह समझा दिया है कि सस्ती खुली मिलने वाली वस्तुएं हमारे और हमारे परिवार के लिए कितनी हानिकारक हैं ! अब साफ़-सफाई या शुद्धता का तो पता नहीं पर इस चलन से पलास्टिक या पॉलीथिन का कचरा बेलगाम-बेहिसाब बढ़ना ही था सो बढ़ता चला जा रहा है...................! 


#हिन्दी_ब्लागिंग 

कुछ साल पहले तक हमारे कृषि प्रधान देश को भरपूर उपज, खुशहाली, समृद्धि व जलीय आपूर्ति के लिए जीवन दायिनी पावस ऋतु का बड़ी बेसब्री से इन्तजार रहा करता था। पर अब इसकी जरुरत तो है, इन्तजार भी रहता है, पर साथ ही इसकी भयावहता को देख-सुन-याद कर एक डर, एक खौफ भी बना रहता है। अब हर साल बरसात के साथ आने वाला जलप्लावन हमारी नियति ही बन गया है। पता ही नहीं चला कब यह जीवन दायिनी ऋतू, प्राण हरिणी के रूप में बदल गई ! ऐसा भी नहीं है कि यह सबअचानक हो गया हो ! कायनात वर्षों से हमें चेताती आ रही थी पर हम अपने लालच, अपनी महत्वकांक्षाओं, अपनी लिप्सा में अंधे हो उसका शोषण करने से बाज ही नहीं आ रहे थे। विकास की अंधी दौड़ में ऐसी-ऐसी चीजों का आविष्कार कर डाला गया जो प्रकृति को नुक्सान पहुंचाने में अव्वल थीं। इन्हीं चीजों में एक है प्लास्टिक ! जिससे सारा विश्व त्रस्त हो चुका है। दुनिया भर के सागर-नदी-तालाबों में टनों के हिसाब से इस ना गलने-सड़ने-नष्ट होने वाले दानव का जमावड़ा पृथ्वी के अस्तित्व के लिए भी ख़तरा बनता जा रहा है ! इस विश्वव्यापी संकट से हमारा देश भी अछूता नहीं है ! आज जगह-जगह जलभराव होने का यह एक प्रमुख कारण है। 


आज प्लास्टिक हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा है। हमारे जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां इसका दखल नहीं है ! इस बेहद लचीले और मजबूत पदार्थ ने हमें सुविधाएं तो बहुत दीं, पर अब अपनी सैंकड़ों खूबियों और उपयोगिताओं के नावजूद यह हमारी जिंदगी, हमारे वातावरण, हमारे पर्यावरण यहां तक की हमारी पृथ्वी के लिए भी विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। इसमें भी इसका दोष उतना नहीं है जितनी हमारी इस पर निर्भर होते चले जाने की विवेकहीन, अदूरदर्शी निर्भरता ! सुबह टूथ ब्रश करने से लेकर रात बिस्तर पर सोने तक हम सैकड़ों तरह की प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का, बिना उनका दुष्परिणाम जाने, उपयोग करते रहते हैं। इसीलिए घरों से निकलने वाले कचरे में साल-दर-साल प्लास्टिक की वस्तुओं की मात्रा बढ़ती जा रही है। जागरूकता की कमी के चलते इसके अंधाधुंध इस्तेमाल के बाद फेंक दिये जाने वाले प्लास्टिक के रैपर, बोतलें, पॉलीबैग्स, पैकेट्स, डिब्बे और ना जाने कौन-कौन सी चीजों के कचरे से हमारी धरती, हवा, पानी, सागर, नदियां, तालाब सब कुछ प्रदूषित हो गए हैं। जिससे मानव तो मानव, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के जीवन को भी भयानक खतरे का सामना करना पड़ रहा है

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प्लास्टिक को लेकर बहुत गुल-गपाड़ा मचता रहता है ! पर जब हम सुबह टूथब्रश करने से लेकर रात बिस्तर पर सोने तक सैकड़ों तरह की प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का, बिना उनका दुष्परिणाम जाने, उपयोग करते रहेंगें, बाजार से पॉलीथिन में लिपटी चीजें लेते रहेंगें तो इसकी खपत कम कैसे होगी ! इसीलिए घरों से  निकलने वाले कचरे में दिन-प्रति-दिन प्लास्टिक की वस्तुओं की मात्रा बढ़ती जा रही है

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कुछ वर्षों पहले तक बाजार में हर तरह का सामान तक़रीबन खुला मिलता था। चाहे घर के किराने का सामान हो, चाहे सब्जियां-फल वगैरह हों, बेकरी की चीजें हों या अन्य घरेलू जरुरत का सामान ! दूध और पानी की पैकिंग तो शायद ही कोई सोचता हो। आज साफ़-सफाई या शुद्धता का हवाला दे कर हर चीज को प्लास्टिक में लपेटा जाने लगा है। पहले लोग सामान वगैरह लाने के लिए थैला वगैरह ले कर ही घर से चलते थे ! उधर दुकानदार सामान देने के लिए कागज़ के ठोंगों या लिफाफों को काम में लाते थे। जो कुछ ही समय में अपने को प्रकृति के समरूप कर लेते थे। पर पॉलीथिन के चलन में आते ही वह सब बीते दिनों की बात हो गए। अब छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी रोजमर्रा की चीजों के साथ-साथ अनाज, फल, सब्जियां, बेकरी उत्पाद यहां तक कि झाड़ू-झाड़न जैसी चीजें भी रैपर में लिपटी आने लगी हैं। ड्राइक्लीन करने वाले भी अब कपड़ों को पॉलीथिन के लिफ़ाफ़े में रख देने लगे हैं। बाजार ने हमें अच्छी तरह समझा दिया है कि खुली मिलने वाली वस्तुएं हमारे और हमारे परिवार के लिए कितनी हानिकारक हैं !! बिना पैकिंग की चीज यानी घटिया स्तर की !! अब जब हर चीज को प्लास्टिक या पॉलीथिन में सजा कर पेश किया जाएगा तो उसका उपयोग तो बढ़ेगा ही ! जितना उपयोग बढ़ेगा उतनी मात्रा में उसका कचरा भी बढ़ना तय है। ध्यान इस ओर देने की भी आवश्यकता है ! सिर्फ रेहड़ी-ढेले वालों पर जोर डालने से तो यह संक्रमण रुकने से रहा !! 


आज इस भयानक समस्या की ओर सभी का ध्यान जरूर गया है पर हमारी लापरवाही, गैर जिम्मेदाराना हरकतों, जागरूकता की कमी और सिर्फ अपने परिवेश का ध्यान, इसका हल नहीं निकलने दे रहे ! आज भी, हमारा घर साफ़ रहे, बाहर का हमें क्या, वाली मानसिकता के तहत अधिकांश घरों से रसोई का कचरा पॉलीथिन में भर आसपास किसी खुले स्थान या सड़क किनारे फेंक देना आम बात है। रास्ते चलते खाली हुए नमकीन के पैकेट, पानी की बोतलें या छोटे-मोटे रैपर को इधर-उधर फेंक देना असभ्यता नहीं माना जाता ! किसी पार्क में या सैर-सपाटे के दौरान अल्पाहार का मजा ले उस जगह को साफ़ कर भी दिया तो उस कूड़े को पास की झाडी इत्यादि के हवाले कर अपने फर्ज की इतिश्री मान ली जाती है ! जबकि अधिकांश जगहों पर कूड़ा पेटी लगी रहती है पर उस तक जाना भी कई लोग गवारा नहीं करते ! ऐसे ही कचरे को जानवर इत्यादि पॉलीथिन समेत निगल रोग ग्रस्त हो जाते हैं ! कई तो अकाल मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते हैं। यही लावारिस कचरा बरसात के दौरान पानी के साथ गलबहियां डाल नालियों और सीवर में पहुँच जाता है। फिर जो होता है, वह तो होना ही होता है। 

जब मुसीबत गले पड़ती है तब हमें यह ज़रा भी ध्यान नहीं आता कि इसका कारण कमो-बेस हम ही हैं ! हमारी लापरवाही हमारे शहर की साफ-सफाई में बाधा डाल, कर्मचारियों पर बोझ तो बढ़ाती ही है साथ ही पर्यावरण को हानि पहुंचाने में भी उसका योगदान कम नहीं होता। इधर बरसात हुई, उधर नाली-सीवर में कचरा फंसा। पानी का दम घुटा ! वह सांस लेने पलटा और बाहर आ कर हमारे साथ-साथ सारे नगर और नगरवासियों का हवा-पानी-खाना-सोना सब हराम कर दिया ! पर इंसान ठहरा इंसान ! उसको कहां अपनी भूल-गलतियों का एहसास रहता है ! वह तो सर झुकाए लग पड़ता है आन पड़ी विपदा से येन-केन पिंड छुड़ाने, उससे किसी तरह पार पाने की जुगत में ! क्योंकि वह एक तरह से मान चुका है कि ऐसा तो होता ही रहता है !

इधर ऐसा सुनहरा सुअवसर पा विपक्ष पिल पड़ता है सरकार पर ! निगम पर ! कर्मचारियों पर ! आरोप-प्रतिरोप का दौर शुरू ! आम आदमी की परेशानियों को दरकिनार कर बात जा पहुंचती है राजनीति के अखाड़े में ! वहां विपक्ष, यह भूल कि चंद दिनों पहले वह भी सत्ता सुख में लिप्त था, को मौका मिल जाता है दुसरों पर आरोपों की बौछार करने का ! वादों के सपने दिखाने का ! अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने का !  पर मूल समस्या से ज्यादा छेड़-छाड़ नहीं की जाती ! उसे तकरीबन जस का तस रहने दिया जाता है कभी आगे आने वाले समय में सदुपयोग के लिए ! 

इसलिए और किसी पर भरोसा ना कर अवाम को खुद ही समझदार, जागरूक और विवेकशील होने की जरुरत है। हम सब को समझना होगा कि नगर, शहर, परिवेश को साफ रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। इधर -उधर, खाली जगहों में, सड़कों पर कचरा फेंकने के बजाय अगर सभी लोग डस्टबीन में कचरा डालने की आदत बना लें तो सफाई कर्मचारियों को भी अपने काम करने में आसानी होगी। हमें भी बेहतर सेवा मिल पाएगी। इसके साथ ही अब यह कोशिश भी होनी चाहिए कि पॉलीथिन के बजाए कपड़े या जूट के थैलों का इस्तेमाल किया जाए। ऐसा नहीं है कि इस समस्या से पार नहीं पाया जा सकता ! बस थोड़ी सी इच्छाशक्ति को मजबूत करने की जरुरत है। एक बार आदत पड़ गई तो फिर शहरों के आस-पास से कुतुबमीनार जितने ऊँचे कचरे के पहाड़ रूपी दानवों से मुक्ति मिलते देर नहीं लगेगी। 

16 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सटीक और सार्थक।

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
बहुत-बहुत आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आयना दिखाती सुन्दर पोस्ट।

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 21-08-2020) को "आज फिर बारिश डराने आ गयी" (चर्चा अंक-3800) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

"मीना भारद्वाज"

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

शुभा ने कहा…

वाह!सुंदर और सटीक ! सही बात कही आपने ,इच्छा शक्ति को मजबूत बनाकर हमें ही बीडा उठाना होगा ,घर ,मोहल्ला., गलियां ,नगर ,देश को स्वच्छ बनाना होगा ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शुभा जी
शुरू में शायद मुश्किल लगे पर फिर आदत में शुमार हो जाता है। जापान जैसे देश उदहारण हैं

Kadam Sharma ने कहा…

Virat samaya ko darshati post

CHETAN ने कहा…

Really horrible situation

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
पधारने हेतु अनेकानेक धन्यवाद । समस्या का हल हमें ही निकालना है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चेतन जी
स्थिति बदतर जरूर हुई है, पर अभी भी सम्भाल जा सकती है, एकजुट हो कर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी बात सही पर इसका हल उतना ही मुश्किल ... प्लास्टिक है रहगा और कब जाएगा कोई नहीं बता सकता ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
सच तो यही है कि पूर्णतया छुटकारा पाना फिलहाल तो असंभव ही लगता है

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