चौथा वर्ग समाज और देश के दुश्मनों का है ! ये जान-बूझ कर अवाम को खतरे में धकेलने का उपक्रम करता है। बेवजह घर के बाहर निकलना, रक्षा कर्मियों के साथ बदसलूकी, अक्खड़पन, उद्दंडता से भरपूर ये लोग बार-बार समझाने को अपनी जीत और व्यवस्था की कमजोरी समझने की भूल करने लगते हैं। ऐसे शठों को उन्हीं की भाषा में समझाना जरुरी है। लंका अभियान पर समुंद्र के आड़े आने पर तीन दिन बाद ही प्रभु राम ने और शिशुपाल के हद लांघने पर श्री कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों ने भी दंड देने में कोताही नहीं बरती थी ! ज्ञात्वय है कि उनका बैर सिर्फ एक इंसान से था ये लोग तो पूरी जात-बिरादरी और समाज के दुश्मन हैं फिर इतनी ढिलाई क्यों ...........?
#हिन्दी_ब्लागिंग
देश या दुनिया में यदि कभी कुछ अप्रत्याशित घटता है तो हर बार उसके कई तरह के परिणाम देखने को मिलते हैं ! अब जैसे इस कोरोना रूपी दानव के आतंक से विश्व भर में त्राहि-त्राहि मची हुई है ! आबालवृद्ध सभी आक्रांत हैं, भयभीत हैं ! तथाकथित विश्व के अग्रणी, शक्तिशाली, विकसित देश भी आज घुटनों पर आ गए हैं। वहीं गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भूख, असंतोष, भ्रष्टाचार, षडयंत्र, चिकित्सा साधनों की कमी से त्रस्त हमारे देश ने इस विकट आपदा में बहुत बड़ी हद तक अपने को इस संकट से बचा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिसाल कायम की है। जिसके कारण विश्व भर में उसकी सराहना की जा रही है। साथ ही पचास से ऊपर देशों को कुनैन की दवा भेज एक त्राता के रूप में भी उभर कर सामने आया है। यह कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है। परंतु अपने ही देश में कुछ लोगों के लिए यह बात अपच का कारण बन गई है।
आज लगभग सारे राज्य और उनके मुख्य मंत्री केंद्र की सलाह को मान उसका पालन कर रहे हैं, पर एक-दो कुतर्की, पूर्वाग्रही अभी भी जनता की सहायता के बदले उसे मिल रही सुविधाओं में कमियां खोजने में लगे हुए हैं। हालांकि उनकी बेढब बातों पर कोई ध्यान नहीं देता फिर भी वे अपने बचे-खुचे अस्तित्व के प्रदर्शन और सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने को अपना बेतुका राग अलाप देते हैं। इन छुटभइयों और इनके आकाओं को यह समझ नहीं आता कि यही समय अवाम की सहायता कर उसके दिल को जीतने का है। ये मुफ्त में राशन, बिना काम वेतन, कर्ज माफ़ी, मजदूरों की वापसी की मांग तो करते हैं पर उसके लिए पैसा कहां से आएगा ये नहीं बता पाते ! यदि पैसों के इंतजाम के लिए सरकार कुछ करती है तो फिर ये बुद्धिहीन उसका विरोध शुरू कर समझते हैं कि हमने लोगों का दिल जीत लिया जबकि होता बिल्कुल विपरीत है। काश दूसरों की मीन-मेख निकालने और बातें बनाने की जगह की जगह कुछ अपनी तरफ से भी सकारात्मक सहयोग की पहल की होती।
इसी जमात के साथ समाज के चार और वर्ग इस दौर में सामने आए हैं। पहला, जो सबसे आदरणीय है वह है सेवा कर्म में जुटे लोग ! फिर वे चाहे डॉक्टर हों, सेवाकर्मी हों, सफाईकर्मी हों, जरुरत का सामान बेचने वाले हों या बेसहारा लोगों को भोजन प्रदान करने वाले ! वे सब आज देवतुल्य हैं।
दूसरे वर्ग में वे तमाम आम जन हैं जो स्वस्थ रहने के लिए दी गई हिदायतों का पूरी तरह पालन करते हैं। ये सब भी प्रशंसा के पात्र हैं क्योंकि इन्हीं की वजह से आज देश अपने आप को संभालने में सफल हो पाया है।
तीसरे वर्ग में वे मासूम लोग आते हैं जो हाल-बेहाल हो परिस्थितिवश अपने आश्रय से निकल बाहर आने को मजबूर हो जाते हैं। इनका ध्यान रखना सरकार और समाज दोनों की प्राथमिकता होनी चाहिए। यही वे लोग हैं जो सबसे ज्यादा उपेक्षित होते हुए भी समाज की रीढ़ हैं।
चौथा वर्ग समाज और देश के दुश्मनों का है ! ये जान-बूझ कर अवाम को खतरे में धकेलने का उपक्रम करता है। बेवजह घर के बाहर निकलना, रक्षा कर्मियों के साथ बदसलूकी, अक्खड़पन, उद्दंडता से भरपूर ये लोग बार-बार समझाने को अपनी जीत और व्यवस्था की कमजोरी समझने की भूल करने लगते हैं। ऐसे शठों को उन्हीं की भाषा में समझाना जरुरी है। पता नहीं क्यों व्यवस्था ने इतनी ढ़ील दे रखी है। लंका अभियान पर समुंद्र के आड़े आने पर तीन दिन बाद ही प्रभु राम ने और शिशुपाल के हद लांघने पर श्री कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों ने भी दंड देने में कोताही नहीं बरती थी ! ज्ञात्वय है कि उनका बैर सिर्फ एक इंसान से था ये लोग तो पूरी जात-बिरादरी और समाज के दुश्मन हैं फिर इतनी ढिलाई क्यों ?
आज जनता प्रत्यक्ष हर चीज देखना चाहती है चाहे वह छूट हो, सहायता हो या फिर दंड ! दोषी को दंड मिलता देख ही दूसरे दोषियों को सबक मिलेगा और भय रहेगा कुकर्म करते समय और समाज को संतोष और विश्वास की प्राप्ति होगी व्यवस्था के प्रति !!
#हिन्दी_ब्लागिंग
देश या दुनिया में यदि कभी कुछ अप्रत्याशित घटता है तो हर बार उसके कई तरह के परिणाम देखने को मिलते हैं ! अब जैसे इस कोरोना रूपी दानव के आतंक से विश्व भर में त्राहि-त्राहि मची हुई है ! आबालवृद्ध सभी आक्रांत हैं, भयभीत हैं ! तथाकथित विश्व के अग्रणी, शक्तिशाली, विकसित देश भी आज घुटनों पर आ गए हैं। वहीं गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भूख, असंतोष, भ्रष्टाचार, षडयंत्र, चिकित्सा साधनों की कमी से त्रस्त हमारे देश ने इस विकट आपदा में बहुत बड़ी हद तक अपने को इस संकट से बचा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिसाल कायम की है। जिसके कारण विश्व भर में उसकी सराहना की जा रही है। साथ ही पचास से ऊपर देशों को कुनैन की दवा भेज एक त्राता के रूप में भी उभर कर सामने आया है। यह कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है। परंतु अपने ही देश में कुछ लोगों के लिए यह बात अपच का कारण बन गई है।
आज लगभग सारे राज्य और उनके मुख्य मंत्री केंद्र की सलाह को मान उसका पालन कर रहे हैं, पर एक-दो कुतर्की, पूर्वाग्रही अभी भी जनता की सहायता के बदले उसे मिल रही सुविधाओं में कमियां खोजने में लगे हुए हैं। हालांकि उनकी बेढब बातों पर कोई ध्यान नहीं देता फिर भी वे अपने बचे-खुचे अस्तित्व के प्रदर्शन और सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने को अपना बेतुका राग अलाप देते हैं। इन छुटभइयों और इनके आकाओं को यह समझ नहीं आता कि यही समय अवाम की सहायता कर उसके दिल को जीतने का है। ये मुफ्त में राशन, बिना काम वेतन, कर्ज माफ़ी, मजदूरों की वापसी की मांग तो करते हैं पर उसके लिए पैसा कहां से आएगा ये नहीं बता पाते ! यदि पैसों के इंतजाम के लिए सरकार कुछ करती है तो फिर ये बुद्धिहीन उसका विरोध शुरू कर समझते हैं कि हमने लोगों का दिल जीत लिया जबकि होता बिल्कुल विपरीत है। काश दूसरों की मीन-मेख निकालने और बातें बनाने की जगह की जगह कुछ अपनी तरफ से भी सकारात्मक सहयोग की पहल की होती।
इसी जमात के साथ समाज के चार और वर्ग इस दौर में सामने आए हैं। पहला, जो सबसे आदरणीय है वह है सेवा कर्म में जुटे लोग ! फिर वे चाहे डॉक्टर हों, सेवाकर्मी हों, सफाईकर्मी हों, जरुरत का सामान बेचने वाले हों या बेसहारा लोगों को भोजन प्रदान करने वाले ! वे सब आज देवतुल्य हैं।
दूसरे वर्ग में वे तमाम आम जन हैं जो स्वस्थ रहने के लिए दी गई हिदायतों का पूरी तरह पालन करते हैं। ये सब भी प्रशंसा के पात्र हैं क्योंकि इन्हीं की वजह से आज देश अपने आप को संभालने में सफल हो पाया है।
तीसरे वर्ग में वे मासूम लोग आते हैं जो हाल-बेहाल हो परिस्थितिवश अपने आश्रय से निकल बाहर आने को मजबूर हो जाते हैं। इनका ध्यान रखना सरकार और समाज दोनों की प्राथमिकता होनी चाहिए। यही वे लोग हैं जो सबसे ज्यादा उपेक्षित होते हुए भी समाज की रीढ़ हैं।
चौथा वर्ग समाज और देश के दुश्मनों का है ! ये जान-बूझ कर अवाम को खतरे में धकेलने का उपक्रम करता है। बेवजह घर के बाहर निकलना, रक्षा कर्मियों के साथ बदसलूकी, अक्खड़पन, उद्दंडता से भरपूर ये लोग बार-बार समझाने को अपनी जीत और व्यवस्था की कमजोरी समझने की भूल करने लगते हैं। ऐसे शठों को उन्हीं की भाषा में समझाना जरुरी है। पता नहीं क्यों व्यवस्था ने इतनी ढ़ील दे रखी है। लंका अभियान पर समुंद्र के आड़े आने पर तीन दिन बाद ही प्रभु राम ने और शिशुपाल के हद लांघने पर श्री कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों ने भी दंड देने में कोताही नहीं बरती थी ! ज्ञात्वय है कि उनका बैर सिर्फ एक इंसान से था ये लोग तो पूरी जात-बिरादरी और समाज के दुश्मन हैं फिर इतनी ढिलाई क्यों ?
आज जनता प्रत्यक्ष हर चीज देखना चाहती है चाहे वह छूट हो, सहायता हो या फिर दंड ! दोषी को दंड मिलता देख ही दूसरे दोषियों को सबक मिलेगा और भय रहेगा कुकर्म करते समय और समाज को संतोष और विश्वास की प्राप्ति होगी व्यवस्था के प्रति !!